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समय बड़ा बलवान... यूं ही नहीं पिघली चौटाला-रणजीत के 28 साल के रिश्तों पर जमी बर्फ

वक्त बड़ा बलवान होता है। बंसीलाल भी कड़क थे जब एक समय आया तो उन्हें लचीला होना पड़ा। अब ओमप्रकाश चौटाला का भी यह समय है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 02:09 PM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 05:43 PM (IST)
समय बड़ा बलवान... यूं ही नहीं पिघली चौटाला-रणजीत के 28 साल के रिश्तों पर जमी बर्फ
समय बड़ा बलवान... यूं ही नहीं पिघली चौटाला-रणजीत के 28 साल के रिश्तों पर जमी बर्फ

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके भाई पूर्व सांसद चौ. रणजीत सिंह के बीच नामांकन के आखिरी दिन हुई गुफ्तगू की पूरे प्रदेश में चर्चा है। ओमप्रकाश चौटाला और रणजीत सिंह के बीच कभी आज तक नहीं बनी। 1990 में जब ताऊ देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने, उसके बाद चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने मुख्यमंत्री के तौर पर कई बार सूबे की बागडोर संभाली। चौटाला को हालांकि सबसे ज्यादा पांच बार मुख्यमंत्री बनने का श्रेय हासिल है, लेकिन उनका राज ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया। राजनीतिक कारण चाहे जो भी रहे होंगे, लेकिन चौटाला को हर बार लगता रहा कि चौ. रणजीत सिंह के तवा बिखेरने की आदत के चलते वह ज्यादा दिन राज नहीं कर पाते।

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तब से लेकर दो दिन पहले तक कभी चौटाला और रणजीत सिंह के बीच मधुर रिश्तों की खबर सामने नहीं आई। चौ. ओमप्रकाश चौटाला की धर्मपत्नी स्नेहलता की रस्म पगड़ी के दिन प्रकाश सिंह बादल के साथ रणजीत सिंह ने भी अपनी तरफ से रिश्तों को मधुर करने की कोशिश की थी। रणजीत सिंह ने कहा था कि ओमप्रकाश चौटाला मेरे भाई हैं। वे जैसा कहेंगे, मैं वैसा करूंगा। तब रणजीत सिंह की बात को पारिवारिक संदर्भ में लिया गया, मगर उस समय की उनकी बात के राजनीतिक मायने थे। इसके बाद भी चौटाला ने रणजीत की इस बात पर कोई खास गौर नहीं फरमाया।

अब नामांकन के आखिरी दिन रणजीत सिंह की चौटाला से मुलाकात हुई। कांग्रेस ने रणजीत सिंह का रानियां से टिकट काट दिया है। इसकी वजह हालांकि रणजीत सिंह के बार-बार चुनाव हारने को बनाया गया, लेकिन रणजीत कांग्रेस के इस फैसले से काफी खफा हैं। नाराज और उदास रणजीत अपने भाई ओमप्रकाश चौटाला की शरण में गए। बातचीत हुई। तभी खबर आई कि रणजीत सिंह रानियां से इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। यहां से पिछड़ा वर्ग के अशोक वर्मा को चौटाला ने पहले ही टिकट दे रखा था। थोड़ी देर बार खबर आई कि रणजीत सिंह इनेलो के टिकट पर नहीं बल्कि आजाद चुनाव लड़ेंगे।

दरअसल, यह कोई अचानक हो गया घटनाक्रम नहीं है। यह चौटाला परिवार की रणनीति का एक हिस्सा है। रणजीत सिंह को लगा कि अगर वह इनेलो के टिकट पर लड़ लिए तो कांग्रेस का वोट उन्हें नहीं मिलेगा, इसलिए उन्होंने अपना निर्णय वापस ले लिया। सूत्र बताते हैं कि चौटाला के आशीर्वाद के चलते रणजीत की हार का कारण बनने वाले कुम्हार वोट इनेलो के अशोक वर्मा को पड़ जाएंगे तो रणजीत सिंह को राजनीतिक मदद हो सकती है। इसकी एवज में साथ लगते ऐलनाबाद हलके में अभय सिंह चौटाला की मदद के लिए रणजीत सिंह भीतर ही भीतर काम करेंगे।

रणजीत सिंह के प्रति नरममिजाजी का यह माहौल बनाने में अभय सिंह चौटाला ने अहम भूमिका निभाई है। आधार बनाया गया कि जब बंसीलाल अपनी ऐठन खत्म कर सकते हैं तो समय के हिसाब से ओमप्रकाश चौटाला को भी नरममिजाज अपनाने से गुरेज नहीं करना चाहिए और ऐसा हुआ भी, जिसके राजनीतिक फायदे रणजीत सिंह और अभय सिंह चौटाला के हक में बनते नजर आ सकते हैं।

दो दिन की अफरातफरी में मध्य हरियाणा में जजपा फाइट में नजर आएगी। अब स्थिति बदली हैं। भाजपा ने भी टिकटें दस काटी हैं और कांग्रेस ने भी नए प्रयोग किए हैं। सीरियस उम्मीदवारों की भी अनदेखी की है। कांग्रेस के में करप्शन के आरोप भी लगने शुरू हो गए हैं। पांच साल पार्टी चलाने वाले अशोक तंवर ने टिकटें बेचने के आरोप लगाए। हालांकि तंवर अब पार्टी छोड़ चुके हैं।तंवर ने कहा कि पार्टी में अब कोई अकेला फैसला नहीं लेता है। इसलिए ऐसी बातें बेमानी हैं, लेकिन अशोक तंवर के आरोप को रानियां में रणजीत ने दोहाराए। टिकटें बेची गई हैं। गुजरात और बिहार जैसा होगा। लागतार चुनाव हार रहे हैं रणजीत सिंह इसलिए काटी है।

एक बड़ी घटना हुई है चौटाला व रणजीत सिंह के बीच सहमति बनी कि जिसकी कोई उम्मीद नहीं। वक्त बड़ा बलवान होता है। बंसीलाल भी कड़क थे, जब एक समय आया तो उन्हें लचीला होना पड़ा। अब ओमप्रकाश चौटाला का भी यह समय है।

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