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Haryana Assembly elections: खट्टी-मीठी है बादल व चौटाला परिवार की राजनीतिक केमिस्ट्री, रिश्तों में छिपी जीत की आस

एसवाईएल नहर निर्माण के मसले पर जिस अकाली दल और इनेलो की राजनीतिक राहें जुदा हो गई थी उन्हीं दोनों दलों ने अब भाजपा और कांग्रेस को मात देने की मंशा से एक बार फिर हाथ मिला लिए हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 10:19 AM (IST)Updated: Mon, 07 Oct 2019 10:15 AM (IST)
Haryana Assembly elections: खट्टी-मीठी है बादल व चौटाला परिवार की राजनीतिक केमिस्ट्री, रिश्तों में छिपी जीत की आस
Haryana Assembly elections: खट्टी-मीठी है बादल व चौटाला परिवार की राजनीतिक केमिस्ट्री, रिश्तों में छिपी जीत की आस

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। राजनीति में कभी भी और कुछ भी संभव है। हरियाणा की राजनीति में ऐसा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के रिश्तों को देखकर तो कमोबेश यही कहा जा सकता है। एसवाईएल नहर निर्माण के मसले पर जिस अकाली दल और इनेलो की राजनीतिक राहें जुदा हो गई थी, उन्हीं दोनों दलों ने अब भाजपा और कांग्रेस को मात देने की मंशा से एक बार फिर हाथ मिला लिए हैं।

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हरियाणा की राजनीति में अकालियों और चौटाला परिवार की दोस्ती कोई भी गुल खिलाने का माद्दा रखती है। दोनों परिवारों के बीच पुराने राजनीतिक संबंध हैं। दोनों परिवार एक-दूसरे के निजी सुख-दुख में भी बरसों से शामिल होते आए हैं। चौटाला परिवार के बीच जब राजनीतिक बिखराव हुआ था, तब सबसे ज्यादा दुख प्रकाश सिंह बादल को ही हुआ था। ओमप्रकाश चौटाला की पत्नी स्नेहलता की रस्म पगड़ी पर बकायदा प्रकाश सिंह बादल ने चौटाला परिवार में एकजुटता की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनके और खाप पंचायतों के लाख प्रयासों के बावजूद ऐसा हो तो नहीं सका, लेकिन बादल परिवार खुद चौटाला के साथ खड़ा नजर आ गया है।

हरियाणा में इनेलो ने 83 और अकाली दल ने तीन विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। चार विधानसभा सीटें महम, करनाल, अंबाला शहर और सिरसा को छोड़ दिया गया है। हालांकि इन चारों सीटों पर इनेलो द्वारा प्रत्याशी नहीं उतारे जाने की अलग-अलग वजह बताई जा रही हैं, लेकिन महम में अभय सिंह चौटाला भाजपा के बागी बलराज कुंडू को समर्थन देंगे। सिरसा में भी भाजपा के बागी गोकुल सेतिया को चौटाला परिवार का आशीर्वाद मिल गया है। करनाल में पार्टी प्रत्याशी का फार्म नहीं भर पाने को चुनाव न लड़ने का आधार बनाया जा रहा है, जबकि यही स्थिति अंबाला शहर की है।

दरअसल, अंबाला शहर की सीट इनेलो ने अकाली दल को दे दी थी, मगर ऐन वक्त पर अकाली दल ने इससे इंकार कर दिया, इसलिए जब तक इनेलो ने नया प्रत्याशी तय किया, तब तक काफी देर हो चुकी थी। अकाली दल के खाते में रतिया, कालांवाली और गुहला चीका सीटें आई हैं, जिन पर प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल ने अपनी पसंद के प्रत्याशी उतारे हैं।

आधा दर्जन सीटों पर फोकस

इनेलो ने हालांकि 83 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की कोशिश की है, लेकिन अभय सिंह चौटाला का पूरा फोकस आधा दर्जन सीटों पर रहने वाला है। अभय सिंह चौटाला खुद ऐलनाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके समधी दिलबाग सिंह को यमुनानगर से चुनावी रण में उतारा गया है। डॉ. सीता राम को डबवाली से टिकट दिया गया है। सीता राम और उनके पिता डबवाली तथा कालांवाली से कई बार विधायक बनते आ रहे हैं।

डबवाली से नैना सिंह चौटाला चुनाव लड़ती रही हैं मगर इस बार वह जननायक जनता पार्टी के टिकट पर बाढ़डा चली गई हैं। डबवाली में भाजपा ने ताऊ देवीलाल के परिवार के ही आदित्य देवीलाल चौटाला को चुनावी रण में उतारा है। पूर्व विधायक नफे सिंह राठी को बहादुरगढ़ और सुभान खान को पुन्हाना से टिकट दिए गए हैं। ओमप्रकाश चौटाला और अभय पार्टी के स्टार प्रचारकों में शामिल हैं और बादल पिता-पुत्र उनका सहयोग करेंगे।

पार्टी बदलकर फिर आमने सामने बलकौर सिंह और राजेंद्र सिंह

सिरसा जिले की कालांवाली विधानसभा सीट पर राजनीति का अलग ही नजारा देखने को मिला। अकाली दल के साथ हर तरह के गठबंधन से इंकार करते हुए भाजपा ने यहां से अकाली दल के एकमात्र विधायक बलकौर सिंह को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। इसके बाद अकाली दल ने 2014 में भाजपा के प्रत्याशी रहे राजेंद्र सिंह को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। यानी 2014 के चुनाव में जो बलकौर सिंह और राजेंद्र सिंह अकाली दल व भाजपा के टिकट पर आमने-सामने थे, इस बार वह भाजपा और अकाली दल के टिकट बदलकर आमने-सामने होंगे।

भाई रणजीत के प्रति नरम दिल हो गए थे चौटाला

इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के भाई कांग्रेस नेता रणजीत सिंह की अपनी पार्टी से बगावत चर्चा में है। रणजीत सिंह को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया है। यह रणजीत सिंह वही हैं, जो कांग्रेस समेत अन्य दलों को मिलाकर महागठबंधन बनाने का नारा देते थे। उन्हें कांग्रेस ने ही नजर अंदाज कर दिया। गुस्साए रणजीत सिंह जब अपने भाई ओमप्रकाश चौटाला की शरण में गए तो उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए उन्हें रानियां से टिकट के लिए हामी भर दी। पेपर भी तैयार हो गए और टिकट की पर्ची भी दे दी गई, लेकिन घर जाकर रणजीत सिंह का मन बदल गया। बहरहाल, रणजीत सिंह ने आजाद ही ताल ठोंकी।

कारगिल के सैनिकों व विकलांगों को आम आदमी पार्टी ने दी अहमियत

हरियाणा में आम आदमी पार्टी 48 विधानसभा सीटों पर अपनी ताल ठोंक रही है। पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, डॉ. सुशील गुप्ता और पंडित नवीन जयहिंद आप के स्टार प्रचारक हैं। पार्टी के अध्यक्ष नवीन जयहिंद हालांकि खुद इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन कार्यकर्ताओं को लड़ाने की उनकी जिम्मेदारी है। जयहिंद और सुशील गुप्ता की जोड़ी ने पार्टी के बीच में कार्यकर्ताओं को टिकट दिए हैं। उनका एक भी उम्मीदवार पैराशूट से नहीं आया। आम आदमी पार्टी एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसने इसराना से दिव्यांग आजाद सिंह को टिकट दिया है। बादली में कारगिल युद्ध लड़ने वाले सैनिक सुरेंद्र नांदल और गढ़ी सांपला किलोई में मुनिपाल को आम आदमी पार्टी ने आगे किया है। पंडित नवीन जयहिंद राज्यभर में इन उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे।

राजकुमार सैनी की लोसुपा ने 78 सीटों पर उतारे प्रत्याशी

हरियाणा के चुनावी रण में कुरुक्षेत्र के पूर्व सांसद राजकुमार सैनी के नेतृत्व वाली लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी भी चुनाव लड़ रही है। इस पार्टी ने राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी के साथ गठबंधन किया है। लोसुपा ने अपने पास 77 सीटें रखी, जबकि 13 सीटें राजपा को दी हैं। लोसुपा संयोजक राजकुमार सैनी खुद गोहाना से ताल ठोंक रहे हैं। राजकुमार सैनी खुद अपनी पार्टी के स्टार प्रचारकों में शामिल हैं।

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