Haryana: हार के मंथन से ही BJP को हासिल होगा भविष्य में जीत का मंत्र
वर्ष 2014 में वर्षों बाद भाजपा पहली बार अकेले दम पर सत्ता में आई थी मगर एक पारी बाद ही पार्टी को बैसाखियों का सहारा लेना पड़ गया।
रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। विधानसभा चुनावों में उम्मीद से कम सफलता का कारण जानने के लिए भाजपा पूरा मंथन कर रही है। गुरुग्राम में शुक्रवार को हुई समीक्षा बैठक में कई चीजें स्पष्ट हुई हैं। पार्टी का मानना है कि मर्ज पता लगने पर ही उपचार का तरीका तय होगा। हार के मंथन से ही भविष्य में जीत का मंत्र हासिल होगा। छोटे-बड़े किसी भी चुनाव में पार्टी उन गलतियों को नहीं दोहराएगी, जिसके चलते बड़ा लक्ष्य लेकर चली पार्टी 40 सीटों पर सिमट गई। वर्ष 2014 में वर्षों बाद भाजपा पहली बार अकेले दम पर सत्ता में आई थी, मगर एक पारी बाद ही पार्टी को बैसाखियों का सहारा लेना पड़ गया। भाजपा के दिग्गज नेताओं के मन में यही सबसे गहरी टीस है।
टटोलकर देखें, जुबान पर है सब कुछ
जमीन से जुड़े भाजपा के किसी भी प्रमुख पदाधिकारी को टटोलकर देखिए। उनकी जुबान पर सब कुछ है। भाजपा की हार अपनी गलतियों से हुई है। पार्टी ने 75 पार का जो नारा दिया था, वह लोकसभा चुनाव के आधार पर था, परंतु विधानसभा की स्थिति वैसी नहीं थी। इतना अवश्य माना जा रहा था कि भाजपा अकेले सत्ता में अवश्य आ जाएगी। दक्षिण हरियाणा सहित प्रदेश के सात जिलों का गणित समङों तो भाजपा ने वर्ष 2014 से बेहतर प्रदर्शन किया। रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, गुरुग्राम, नूंह, फरीदाबाद, पलवल व सोनीपत जिलों में पिछली बार भाजपा ने 16 सीटें जीती थी। इस बार यह संख्या 17 हो गई है।
वहीं दूसरी ओर मुस्लिम बहुल नूंह जिले में भी वोटों में अच्छा खासा इजाफा हुआ है, परंतु शेष हरियाणा में झटका लगा है। गहरी समीक्षा वहीं की होनी चाहिए। गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ व रेवाड़ी जिले में सिर्फ तीन सीटों का नुकसान हुआ है। यहां भी कारण पार्टी के प्रति नाराजगी नहीं, बल्कि दूसरे रहे हैं।
कुछ कारण सामने आए कुछ नहीं
सूत्रों के अनुसार अभी तक के मंथन में कुछ कारण सामने आ चुके हैं, जबकि कुछ नहीं। गलत टिकट वितरण जैसे कारणों के अलावा क्लर्क भर्ती के लिए युवाओं को दूर भेजना व चुनाव के समय थोक के भाव चालान काटना भी महंगा पड़ा। अपनों को दुत्कार और परायों से प्यार भी भारी पड़ा। इससे मतदान प्रतिशत कम हुआ। यही हार का बड़ा कारण बना। एक वरिष्ठ नेता के अनुसार पार्टी को न केवल दूसरे दलों से आए नेताओं को सम्मान देना होगा बल्कि पुराने कार्यकर्ताओं का सम्मान भी बढ़ाना होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो फिर से बैसाखियों की जरूरत पड़ेगी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने भाजपाई बने गैर भाजपाइयों व पुराने भाजपाइयों के बीच सामंजस्य बिठाना ही सबसे बड़ी चुनौती है। उन्हें राव इंद्रजीत को भी राजी रखना है और उन्हें भी जिनकी राव से पटरी नहीं बैठती।
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