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आया राम-गया राम की राजनीति... यह आस्था की नहीं, विधानसभा के भीतर पहुंचने की बात है

आया राम-गया राम की राजनीति के लिए मशहूर हरियाणा में संसदीय चुनावों के दौरान पाला बदलने का जो ‘खेल’ शुरू हुआ वह विधानसभा चुनाव में चरम पर पहुंच गया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 27 Sep 2019 02:30 PM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 05:15 PM (IST)
आया राम-गया राम की राजनीति... यह आस्था की नहीं, विधानसभा के भीतर पहुंचने की बात है

चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। हरियाणा में चुनावी दौर है। यानी कि नेताजी की मन की मुराद पूरी होने का समय। लोकसभा में पहुंचने का सपना पूरा नहीं हो पाया तो अब मन में विधायक बनने का लड्डू फूट रहा। विधानसभा में जाना है तो किसी न किसी दल का टिकट भी चाहिए। यूं तो चुनावी अखाड़े में निर्दलीय भी किस्मत आजमा सकते हैं, लेकिन इसमें जोखिम ज्यादा है। सो सियासी दलों में हर छोटा-बड़ा नेता टिकट की जुगत में ‘पिला’ पड़ा है। आया राम-गया राम की राजनीति के लिए मशहूर इस प्रदेश में संसदीय चुनावों के दौरान पाला बदलने का जो ‘खेल’ शुरू हुआ, वह विधानसभा चुनाव में चरम पर पहुंच गया है।

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चुनावी गणित में अतीत के सारे गिले-शिकवे छोड़ धुर-विरोधियों का दामन थाम रहे अधिकतर नेताओं की आस्था दल विशेष के प्रति नहीं, बल्कि यह विधानसभा में पहुंचने का कारगर फंडा है, यह तो सभी जानते हैं। सत्ता में आने का लालच इतना कि सियासी दलों से वर्षो पुराना नाता तोड़ विपरीत विचारधारा वाले दलों में एंट्री से भी परहेज नहीं। कोई टिकट के दावेदारों की सूची में खुद को पिछड़ता देख दूसरे दलों की ओर दौड़ रहा तो कोई सियासी कॅरियर बनाने-सुरक्षित करने के लिए पाला बदलने में नहीं हिचकता।

सियासी हवाओं का रुख भांप अधिकतर नेताओं की पहली पसंद कमलदल बना है। यही वजह है कि भाजपा का कुनबा तेजी से बढ़ता जा रहा। इनेलो विधायकों से लेकर विभिन्न दलों के पूर्व मंत्रियों, सांसदों और पूर्व विधायकों की फेहरिस्त लंबी है, जो दशक-डेढ़ दशक पुराना पटका बदलते हुए भगवा पहन चुके या फिर पार्टी ज्वाइन करने की तैयारी में हैं। खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी सीना ठोककर बता रहे कि भाजपा में ज्वाइनिंग का दौर अभी चलता रहेगा। चुनाव के दौरान भी और चुनाव के बाद भी।

चुनावी रण में कूदने के लिए हरियाणा पुलिस की नौकरी छोड़ चुकी अंतरराष्ट्रीय पहलवान बबीता फौगाट ने कमल थाम लिया तो ओलंपियन योगेश्वर दत्त भी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ भाजपा की चुनावी नैया पर सवार होने को तैयार हैं। दल-बदलुओं की दूसरी पसंद बनी है कांग्रेस, जो अधिकतर सीटों पर सीधे मुकाबले की स्थिति में है। पार्टी में हालांकि टिकट के दावेदारों की लंबी कतार है, लेकिन आलाकमान की नजर ऐसे नेताओं पर भी है जो भाजपा में टिकट नहीं मिलने पर उसके खेमे में आ सकते हैं। ऐसे संभावित नेताओं पर पार्टी के रणनीतिकार पूरी शिद्दत से डोरे डालने में जुटे हैं। तेजी से पाला बदलते नेताओं का अंजाम क्या होगा, यह देखना अभी बाकी है क्योंकि यह पब्लिक सब जानती है।

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