वाघेला की टनाटन सरकार का वादा, कांग्रेस के खिलाफ जनविकल्प मोर्चा
कांग्रेस के समर्थन से खुद सीएम बने और 22 साल पहले अपनी पार्टी राजपा का कांग्रेस में विलय कर दिया, बीते कई दशक बाद ये पहला चुनाव है जिसमें बापू अप्रासंगिक हो गए हैं,
राज्य ब्यूरो, अहमदाबाद। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला जनविकल्प मोर्चा के झंडे तले अपने पुराने क्षत्रपों के दम पर गुजरात की सत्ता पर फिर काबिज होने को मैदान में है। कांग्रेस उन पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगा रही है लेकिन वाघेला दोनों ही दलों पर हमला करते हुए टनाटन सरकार का वादा कर रहे हैं।
गुजरात के दिग्गज नेता शंकरसिंह वाघेला अक्टूबर 1996 से 1997 तक सूबे के सीएम रह चुके हैं, वाघेला 1995 में अपने समर्थकों के साथ बगावतकर 35 भाजपाई विधायकों को खजुराहो ले गए थे, जिसके बाद राज्य की सुरेश मेहता सरकार गिर गई व राष्ट्रपति शासन लग गया था, बाद में वाघेला जिन्हें प्यार से लोग बापू कहते हैं
कांग्रेस के समर्थन से खुद सीएम बने और 22 साल पहले अपनी पार्टी राजपा का कांग्रेस में विलय कर दिया, बीते कई दशक बाद ये पहला चुनाव है जिसमें बापू अप्रासंगिक हो गए हैं, हालांकि वे कहते हैं कि मेरा काम 18 दिसंबर यानी चुनाव परिणाम के दिन नजर आएगा। कभी संघ की शाखा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व पूर्व सीएम केशुभाई पटेल, पूर्वमंत्री दिवंगत काशीराम राणा के साथ राजनीति के पाठ पढनेवाले वाघेला ने एक एक कर अपने सभी साथियों से बैर मोल ले लिया लेकिन इनकी दोस्ती फिर भी बरकरार है।
जनविकल्प मोर्चा ट्रेक्टर निशान पर अपने उम्मीदवार लडा रहा है, यह निशान राजस्थान की एक पंजीक्रत पार्टी आल इंडिया हिन्दुस्तान कांग्रेस का है। बापू पिछले 22 साल से कांग्रेस में थे इसलिए उनके अधिकांश समर्थक भी उसी दल के होंगे। अधिकांश उम्मीदवार भी कांग्रेस के करीबी या समर्थक होने से बापू के इस दांव का सीधा नुकसान कांग्रेस को होने की आशंका है।
हालांकि कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत का मानना है कि वाघेला किसके इशारे पर काम कर रहे हैं सब जानते हैं। कांग्रेस ने उनहें अध्यक्ष, मंत्री से लेकर नेता विपक्ष तक के कई पद दिए लेकिन चुनाव से पहले उन्होांने कांग्रेस को धोखा दे दिया।
प्रवक्ता पार्थ पटेल बताते हैं कि इस चुनाव में उनका नारा रोटी, रहे ठाण यानि आवास व रोजगार है। बापू कहते हैं कि उनकी एक साल की सरकार को लोग टनाटन सरकार के नाम से जानते हैं जिसमें उन्होंने मंत्रियों की लालबत्ती उतारने व राष्ट्रीय पर्व अलग अलग जिलों में मनाने का फैसला किया था। राज्यसभा चुनाव से पहले तक बापू कांग्रेस के साथ थे लेकिन सीएम पद की दावेदारी व एनसीपी व जदयू से गठबंधन के मामले में उनका पार्टी से मोहभंग हो गया था। हालांकि चुनाव नहीं लडने के अपने फैसले पर वे कायम हैं लेकिन उनके इस फैसले ने उनके विधायक पुत्र महेन्द्र सिंह वाघेला के राजनीतिक कैरियर पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। वाघेला के इशारे पर कांग्रेस छोडने वाले एक दर्जन विधायकों में से कईयों को भाजपा चुनाव लड़ा रही है।