गुजरात की बाजी: पाटीदार आरक्षण पर 'हार्दिक' राग, सवाल मौजूं क्या ऐसा हो पाएगा
पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि वो किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं। लेकिन भाजपा उनकी स्वाभाविक प्रतिद्वंदी है, लिहाजा वो कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। 19 नवंबर 2017 को दिल्ली में कांग्रेस ने गुजरात चुनाव के लिए 70 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया। लेकिन उसका असर सूरत में दिखा। सूरत में पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और कांग्रेस समर्थकों ने एक-दूसरे के साथ जमकर मारपीट की। पाटीदार नेताओं का आरोप था कि कांग्रेस ने वादाखिलाफी की है। इसके विरोध में 20 नवंबर को हार्दिक पटेल के राजकोट के सभी कार्यक्रमों को रद कर दिया गया। राजनीतिक हल्कों में ये संदेश गया कि कांग्रेस और हार्दिक की एकता अटूट नहीं है।
राजनीतिक हलकों में मतभेद और मनभेद की खबरों पर विराम लगाने के लिए हार्दिक पटेल ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में विरोधाभाषी बयान देते हुए कहा कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। लेकिन भाजपा को हराना उनका मुख्य मकसद है। वो किसी पार्टी से नहीं जुड़ेंगे, लेकिन कांग्रेस का साथ देंगे। पाटीदारों को आरक्षण देने के मुद्दे पर कांग्रेस सहमत हो गई है। लेकिन एक सवाल उठना लाजिमी है क्या भारतीय संविधान 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण देने की इजाजत देता है। इसके साथ ही ये भी सवाल है कि क्या महज ये प्रोपगंडा है, जिसका उपयोग यूपी सरकार और आंध्र प्रदेश सरकार ने भी किया था। क्या सिर्फ गुजरात की बाजी जीतने के लिए सिर्फ शब्दों के जाल बुनकर चुनावी लाभ लेने की कोशिश है। इन सवालों के जवाब को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि पाटीदार आरक्षण के मुद्दे और भाजपा के खिलाफ उन्होंने क्या कुछ कहा।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में हार्दिक पटेल
-गुजरात के हित में हमारी मांग।
-पाटीदार आरक्षण पर कांग्रेस ने मांग मानी।
-सत्ता में आते ही आरक्षण पर बिल लाएगी कांग्रेस।
-50 फीसद से ज्यादा आरक्षण दिया जा सकता है।
-दूसरे राज्यों में इससे भी ज्यादा आरक्षण।
-भाजपा की नीयत में खोट है।
-मैं किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ूंगा।
-हमारे संयोजकों को खरीदने की कोशिश हुई।
-गुजराती खुद को मुर्ख न साबित होने दें।
-भाजपा के खिलाफ लड़ाई जरूरी।
-पाटीदारों का सर्वे कराएगी कांग्रेस
-हम कांग्रेस के एजेंट नहीं। मैं जनता का एजेंट हूं
-ढाई साल तक पार्टी नहीं ज्वाइन करूंगा।
-बीजेपी से लड़ने के लिए कांग्रेस को समर्थन।
हार्दिक का आरक्षण गणित
हार्दिक पटेल ने कहा कि कांग्रेस प्रयास करेगी कि पटेल समुदाय और अनारक्षित वर्ग को आरक्षण देने पर एससी, एसटी या ओबीसी समुदाय को मिले हुए 49 प्रतिशत आरक्षण में किसी भी प्रकार का नुकसान न हो। अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो विधानसभा के अंदर जल्द से जल्द अनुच्छेद 31 (सी),अनुच्छेद 46 के प्रावधानों के आधार पर बिल पारित कराया जाएगा। इस बिल में आर्टिकल 46 का उल्लेख किया जाएगा और उसको 15(4) और 16(4) के नीचे ओबीसी समुदाय को जो लाभ मिल रहा है, वो लाभ इन अनारक्षित जातियों को दिया जाएगा। 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण के सवाल पर हार्दिक पटेल ने कहा कि संविधान में ये कहां दर्ज है कि 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। देश के नौ राज्यों में 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट सुझाव दे सकती है, लेकिन 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण देने में कानूनी अड़चन नहीं है।
दैनिक जागरण से खास बातचीत में संवैधानिक मामलों के जानकार सुभाष कश्यप ने कहा कि सैद्धांतिक तौर पर दिक्कत नहीं है। लेकिन व्यावहारिक नहीं है। संविधान में संशोधन विधानसभा में नहीं होता है। संविधान में संशोधन सिर्फ संसद कर सकती है। ऐसे में अगर कांग्रेस गुजरात में सरकार बना भी ले तो संसद में बिल कैसे पारित कराएगी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक बिरादरी अपने फायदे के लिए इस तरह से ऐलान करती रहती है। सच ये है कि पाटीदार आरक्षण का मुद्दा नीति और नीयत से ज्यादा राजनीति से जुड़ी है। वोट बैंक की राजनीति के लिए जनता को गुमराह किया जा रहा है।
दरअसल हार्दिक को लगता है कि ये एक उचित मौका है जिसके जरिए वो भाजपा के विजय रथ को रोक सकते हैं। लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है कि कांग्रेस को गुजरात विजय के जरिए संजीवनी बूटी मिल सकती है, जिसकी मदद से वो दिल्ली की सत्ता से नरेंद्र मोदी को बेदखल करने का सपना देख सकते हैं। हालांकि गांधी की धरती पर हार्दिक और कांग्रेस का ये गठबंधन कितना कारगर होगा, इसे समझने के लिए 2012 के राजनीतिक हालात को समझने की जरूरत है।
2012, पाटीदार राग और केशुभाई पटेल
2012 में केशुभाई पटेल ने गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाकर भाजपा के खिलाफ ताल ठोंकी थी। 167 सीटों पर वो चुनाव लड़े और दो सीटों पर विजय हासिल की। 1995 के बाद ये पहला मौका था जब कांग्रेस और भाजपा के अलावा तीसरी पार्टी चुनाव में हिस्सा ले रही थी। केशुभाई पटेल ने पाटीदारों के साथ हो रहे अन्याय को मुद्दा बनाया था। पटेलों की अस्मिता के नाम पर चुनावी लड़ाई में केशुभाई पटेल के दल को 3.63 फीसद मत हासिल हुए थे।इस चुनाव में आधे से अधिक मतदाता 40 साल से कम उम्र के हैं। गुजरात में पाटीदारों का हिस्सा 12 फीसद है। करीब 71 सीटों पर 15 प्रतिशत पाटीदार मतदाता हैं जो चुनाव की दिशा बदल सकते हैं। पाटीदारों की संख्या पर राजनीतिक पकड़ मजबूत रखने में हो सकता है कि केशुभाई पटेल की उम्र आड़े आ गई हो। लेकिन हार्दिक अपने युवा चेहरे को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस कड़ी में दो वर्ष पहले अहमदाबाद शहर हार्दिक के शक्ति प्रदर्शन का गवाह भी बना।
एक बड़ी रैली की काट कुछ यूं हुई
अगस्त 2015 में हार्दिक पटेल ने अहमदाबाद में एक बड़ी रैली की, जिसके बाद हार्दिक की गिरफ्तारी की गई थी। पाटीदार आंदोलन में करीब 14 लोगों की मौत हो गई थी। 2002 के बाद 2015 का आंदोलन एक बड़े रूप में गुजरात की गलियों और कूचों को अपनी गिरफ्त में ले रहा था। पाटीदारों को खुश करने के लिए भाजपा ने आर्थिक तौर पर कमजोर पिछड़ों को 10 फीसद आरक्षण देने के लिए अध्यादेश जारी किया था। ये बात अलग है कि इस मुद्दे पर गुजरात सरकार के फैसले को हाइकोर्ट ने अवैध करार दिया। गुजरात सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील भी की है। अदालत में आरक्षण का मामला सिर्फ गुजरात तक ही सीमित नहीं है।
पाटीदार समर्थन से चुनावी भंवर पार करने की कोशिश
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण विधानसभा चुनाव में पाटीदारों के गढ़ उत्तरी गुजरात की 53 सीट पर कांग्रेस को 49 फीसद और भाजपा को 44 फीसद वोट मिलने के आसार जता रहे हैं। इससे साफ है कि पाटीदार युवाओं के लिए अब अस्तित्व की लड़ाई शायद हिंदुत्व से कहीं अधिक अहम हो गई है। सरदार बल्लभभाई पटेल के कारण अपने पीछे चार दशक तक लामबंद रहे पाटीदारों का चुनावी समर्थन फिर से जुटाने की कांग्रेस जी-तोड़ कोशिश कर रही है मगर आरक्षण का कांटा उसके भी हलक में गड़ रहा है। हालांकि पाटीदार आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस की चाल भी साफ नजर आ रही है। कांग्रेस ने सीधे तौर पर कुछ कहने की जगह पाटीदार नेता हार्दिक को आगे किया। हार्दिक की मांग और विचार के साथ कांग्रेस उन युवा पाटीदार मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है जो पहली बार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेंगे, ये वो युवा हैं जिन्होंने एक ऐसी सरकार को देखा जो बिना रुके शासन कर रही थी। ऐसे हालात में ये जाहिर है कि युवा मतदाताओं के दिलोदिमाग में सरकार विरोधी छवि काम करे, जिसका फायदा कांग्रेस उठा सके। लेकिन ऐसा नहीं है कि कांग्रेस से पाटीदार नाराज नहीं रहे।
जब कांग्रेस ने की थी वादाखिलाफी
पाटीदार 1985 में मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक रूप में पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में दस फीसद आरक्षण देने में खुद को नजरअंदाज किए जाने पर कांग्रेस से नाराज रहे हैं। हालांकि पाटीदार अब कांग्रेस से ही सौदेबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस ने उन्हें बताया है कि विशिष्ट पिछड़ी जाति, आर्थिक दुर्बल वर्ग अथवा पिछड़ी जातियों की सूची बढ़ाकर आरक्षण दिया जा सकता है, लेकिन पाटीदारों को कांग्रेस पिछड़ा कतई घोषित नहीं कर सकती, क्योंकि पिछड़ों के नेता अल्पेश ठाकोर राहुल गांधी का हाथ थामकर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इसीलिए कांग्रेस ने बाकी दो वर्ग में आरक्षण की पेशकश की है।
क्या करेंगे अल्पेश और जिग्नेश
अगर गुजरात की गद्दी पर कांग्रेस काबिज होकर पाटीदारों को आरक्षण देती है तो दूसरे जातीय समूह इसके लिए सड़क पर आ जाएंगे। ठीक वैसे ही जैसे 1985 के चुनाव के बाद पाटीदार आंदोलन ने ‘खाम’ समीकरण के रचयिता मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी को गद्दी से हटाकर ही दम लिया था। इस बार पाटीदार अनामत आंदोलन समिति से पिछड़ों की गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना के तालमेल के बावजूद अपने कोटे में बंटवारा उन्हें मंजूर नहीं है। राज्य में पिछड़ों की 40 फीसद जनसंख्या पाटीदारों की 14 फीसद आबादी से करीब तीन गुना है और 146 जातियां आरक्षित हैं।
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