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गुजरात की बाजी: कांग्रेस का दावा मुद्दों की कमी नहीं, सवाल फिर भी मौजूं क्या मिलेगी गद्दी

कांग्रेस और भाजपा के एक-दूसरे पर बयानों के जरिए हमला कर रहे हैं। लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा, किसके हाथ में होगी गुजरात की बाजी।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 02 Nov 2017 01:54 PM (IST)Updated: Thu, 02 Nov 2017 06:48 PM (IST)
गुजरात की बाजी: कांग्रेस का दावा मुद्दों की कमी नहीं, सवाल फिर भी मौजूं क्या मिलेगी गद्दी
गुजरात की बाजी: कांग्रेस का दावा मुद्दों की कमी नहीं, सवाल फिर भी मौजूं क्या मिलेगी गद्दी

नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क]। गुजरात विधानसभा चुनाव के इतिहास में वर्ष 1985 और 1995 दोनों महत्वपूर्ण साल हैं। आपको हैरानी होगी कि वर्ष 1985 और 1995 का ही जिक्र क्यों किया जा रहा है। दरअसल उसके पीछे की कहानी ये है कि 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 149 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उस वक्त माधव सिंह सोलंकी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। लेकिन 10 साल बाद गुजरात में राजनीति के रंगमंच से कांग्रेस नेपथ्य में चली गई। केसरिया रंग में गुजरात नहाने लगा था। कांग्रेस की तरफ से सत्ता वापसी की लगातार कोशिश होती रही, हालांकि नतीजा सिफर रहा। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी गुजरात को केसरिया रंग से मुक्ति दिलाने का दावा कर रही है। कांग्रेस का दावा है कि उनके पास जीएसटी, नोटबंदी, उना कांड, पाटीदार समुदाय से जुड़े तमाम मुद्दे हैं। लेकिन इसके बारे में जमीनी हकीकत परखने की दैनिक जागरण ने कोशिश की। 

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मोदी और शाह को आता है गुजरात जीतना
जगदीश सिंह चावडा न नेता हैं और न किसी दल विशेष के समर्थक। अहमदाबाद राजकोट हाईवे पर एक छोटे से गांव चोटिला में सड़क किनारे होटल में चाय पीते हुए मिल गए। उनकी एक प्रतिक्रिया गुजरात के चुनावी माहौल को समझने के लिए पर्याप्त है। चावडा ने कहा, ‘अभी जो माहौल दिख रहा है वह हवा हवाई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को पता है कि चुनाव कैसे जीता जाता है। जब उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में उन्होंने भाजपा की सरकार बनवा दी, तो यह तो उनका अपना घर है।’

चावडा के इस तर्क में दम है। बकौल चावडा इस समय भले ही पाटीदार आंदोलन, नोटबंदी, जीएसटी, राहुल गांधी, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी जैसे नेता सोशल मीडिया पर चमक रहे हैं। यह सोचना भी दुस्साहस होगा कि मोदी और शाह के पास इनकी काट नहीं है। कांग्रेस की आखिरी सरकार गुजरात में 1995 में बनी थी। इन 22 सालों में कांग्रेस पार्टी जीत का स्वाद लगभग भूल चुकी है।

ऐसा नहीं कि बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की कमी गुजरातियों को नहीं खलती है। वह यह कहने से भी नहीं हिचकते कि मोदी के जाने के बाद विकास में तेजी और धार कम हो गई है। गुजरात के आम लोगों को लगता है कि मोदी के गुजरात छोड़ने के बाद गुजरात का विकास जैसे थम सा गया। कांग्रेस शायद इसी को अपना हथियार बनाना चाहती है। लेकिन भाजपा यह भरोसा जताने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है कि मोदी के दिल में गुजरात है। पाटीदार आंदोलन को भाजपा अपने लिए बड़ा खतरा नहीं मानती।

भाजपा का कहना है कि पाटीदारों का बहुत बड़ा तबका आज भी उसके साथ ही है। सौराष्ट्र में जहां पाटीदारों की तादाद सबसे ज्यादा है, वहां भाजपा के कई बड़े नेता इसी समाज से आते हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जीतू भाई वाघाणी खुद इसी समुदाय से हैं। गुजरात अभी पूरी तरह से चुनावी रंग में रंगा नहीं है। राहुल गांधी के धुआंधार दौरे, हार्दिक पटेल की भीड़ भरी रैलियों के बावजूद अभी बहुत कुछ है, जो भाजपा के पिटारे से बाहर नहीं आया है। इसके लिए उम्मीदवारों के चयन, नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियों का भी इंतजार करना होगा। 

अहमद पटेल पर कुछ नहीं बोले राहुल गांधी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को अंकलेश्वर पहुंचे तो लोगों की नजरें इस पर थीं कि शायद वह पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल पर लग रहे आरोपों पर जवाब देंगे, लेकिन वह टाल गए। गुजरात में उनके तीन दिवसीय दौरे का बुधवार को पहला दिन था।तीन-चार दिन पहले ही खुद मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने अंकलेश्वर स्थित अस्पताल में काम करने वाले आतंकी का मुद्दा उठाकर अहमद पटेल पर सवाल खड़ा किया था। राहुल गांधी की सभा उस सरदार पटेल हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्यूट से सिर्फ एक किलोमीटर दूर हो रही थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल इस अस्पताल के ट्रस्टी रहे हैं। अंकलेश्वर अहमद पटेल का गृह क्षेत्र भी है। इसी अंकलेश्वर के वालिया चौकड़ी मैदान में राहुल गांधी की युवा रोजगार, खेड़ूत अधिकार नवसृजन यात्र की एक सभा का आयोजन किया गया था। माना जा रहा था कि इस सभा में राहुल गांधी कांग्रेस के एक वरिष्ठ सिपहसालार पर लग रहे आरोपों पर कुछ न कुछ सफाई अवश्य देंगे, लेकिन वह इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से कतरा गए।

यहां तक कि राहुल गांधी एक दिन पहले ही विश्व बैंक द्वारा जारी की गई ‘डूइंग बिजनेस 2018’ रिपोर्ट से भी किनारा करते नजर आए, जिसमें विश्व बैंक ने भारत को इस साल सबसे ज्यादा आर्थिक सुधार करने वाले दुनिया के 10 शीर्ष देशों की सूची में शामिल किया है। उन्होंने इस रिपोर्ट को नजरंदाज करते हुए कहा कि किसी विदेशी संस्था ने कहा है कि हिंदुस्तान में व्यवसाय करना आसान हो गया है, लेकिन आप कहीं भी चले जाइए, किसी से भी पूछ लीजिए कि क्या जीएसटी और नोटबंदी ने व्यापार करना आसान किया है या मुश्किल? पूरा हिंदुस्तान आपसे कहेगा कि मुश्किल कर दिया है। सवाल यह है बिजनेस किसका आसान हुआ है? छोटे व्यवसाइयों का उद्योग-व्यापार तो नष्ट हो गया है। राहुल गांधी का मानना है कि नोटबंदी की चोट देश में सबको लगी है, सिवाय 10-15 बड़े उद्योगपतियों के। आज यही 10-15 उद्योगपति सरकार से गुस्सा नहीं हैं और कोई आंदोलन नहीं कर रहे हैं। शेष पूरा गुजरात गुस्से में है।

राहुल गांधी द्वारा अहमद पटेल के चर्चित मुद्दे पर चुप्पी साध लेने पर स्थानीय कांग्रेस नेता कुछ भी कहने से बच रहे हैं, लेकिन गुजरात भाजपा ने इस मुद्दे पर राहुल गांधी को आड़े हाथों लिया है। गुजरात भाजपा के प्रवक्ता डॉ. हर्षद पटेल ने कहा कि राहुल किसी मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं। हिमाचल जाते हैं तो गुजरात की बात करते हैं और गुजरात आते हैं तो चीन की बात करते हैं। किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर वह चुप्पी साध जाते हैं। चाहे आरक्षण का मसला हो, जातिवादी समीकरणों की बात हो या तुष्टीकरण का मुद्दा हो। आतंकवाद जैसी घटनाओं पर भी कांग्रेस अपना रुख बिल्कुल स्पष्ट नहीं करती है। आतंकवाद को बढ़ावा कांग्रेस की इसी नीति के कारण मिलता रहा है।

साथ में राजकोट से ऋषि पांडे और अंकलेश्वर से ओमप्रकाश तिवारी

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