अपनी ही सियासी चतुरायी के दांव में घिरे जिग्नेश मेवाणी
बनासकांठा जिले के दलित प्रभाव वाली वडगाम सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सिलाई मशीन चुनाव चिन्ह पर विधानसभा चुनाव लड़ रहे जिग्नेश मेवाणी ने इस सीट का चुनाव तो काफी सोच समझकर किया था।
संजय मिश्र, वडगाम/बनासकांठा। आंदोलन की सीढ़ी के सहारे सियासत में उतरे गुजरात के युवा दलित चेहरे के रूप में उभरे जिग्नेश मेवाणी चुनावी मैदान में अपनी ही राजनीतिक चतुराई के दांव में घिरते नजर आ रहे हैं। वहीं जिग्नेश के सहारे सूबे में दलितों के हित का सियासी चैंपियन बनने का कांग्रेस का दांव भी इस घेरेबंदी में फंस गया है। अपने पहले ही सियासी भंवर में घिरे जिग्नेश को बाहर निकालने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है, ताकि गुजरात में पाटीदारों और ओबीसी के साथ दलितों को साधने का पार्टी का सामाजिक समीकरण उसके सबसे हाईप्रोफाइल दांव में ही नाकाम साबित न हो।
बनासकांठा जिले के दलित प्रभाव वाली वडगाम सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सिलाई मशीन चुनाव चिन्ह पर विधानसभा चुनाव लड़ रहे जिग्नेश मेवाणी ने इस सीट का चुनाव तो काफी सोच समझकर किया था। मगर कांग्रेस के बागी उम्मीदवार अश्विन भाई दौलत भाई परमार ने जिग्नेश के मुकाबले निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। अश्रि्वन के पिता दौलत भाई परमार इस सीट से पूर्व में तीन बार विधायक रह चुके हैं। जिग्नेश के चुनाव लड़ने से कांग्रेस ने यह सीट उनके लिए छोड़ दी और अपने मौजूदा विधायक मणिभाई वाघेला को वहां से हटाकर इदर सीट पर भेज दिया। जबकि मणिभाई की यहां पैठ और छवि दोनों अच्छी है।
दलितों में सियासी संदेश देने के साथ मेवाणी का पूरे सूबे में इस्तेमाल करने के मकसद से कांग्रेस ने यह सीट उनके लिए छोड़ी थी। मगर कांग्रेस के बागी उम्मीदवार की राजनीतिक पैठ की वजह से मेवाणी के लिए सूबे में संदेश देना तो दूर अपनी सीट निकालने की भारी मशक्कत से रुबरू होना पड रहा है। इसकी वजह से दूसरी सीट पर भेजे गए कांग्रेस के मौजूदा विधायक मणिभाई को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र के बाबलचूडी गांव के निवासी रंजीत सिहार राजपूत कहते हैं कि कांग्रेस ने मणिभाई को दूसरी जगह भेजकर तो मेवाणी ने वडगाम आकर गलती की है।
मेवाणी की राजनीतिक सक्ति्रयता अहमदाबाद में ज्यादा रही है और वे उसी इलाके से चुनाव मैदान में रहते तो ज्यादा कारगर होता। जसवंत सिंह, गुलाब सिंह और हमीर सिंह राजपूत के साथ दलित समुदाय के ही अशोक कुमार मगाभाई जैसे लोगों ने कहा कि वे कांग्रेस के मणिभाई को वोट देना चाहते थे मगर जिग्नेश को लेकर ऐसी कोई प्रतिबद्वता उन्होंने नहीं दिखायी। भोगटोडिया और लिंबोई गांव के कुछ लोगों ने भी ऐसी ही राय जाहिर की। इनका मूड साफ संकेत करता है कि जिग्नेश को चुनाव लड़ाने का फैसला कांग्रेस की सियासी चूक साबित हो सकता है। इसका फायदा भाजपा उम्मीदवार विजय चक्त्रावती को मिलता दिख रहा है। वैसे जिग्नेश और अल्पेश ठाकोर को चुनाव नहीं लड़ाने की सलाह गुजरात कांग्रेस के नेताओं ने दी थी मगर हाईकमान ने दोनों के नाराज होने की आशंका में रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा।
चुनावी भंवर में घिरे जिग्नेश की उम्मीद आखिर में मुस्लिम वोटों के एकमुश्त अपने पाले में आने पर लगी है। वडगाम में दलितों के बाद करीब 70 हजार मुस्लिम वोटर हैं और अश्रि्वन की भी इस समुदाय में अपनी पकड़ है। गुजरात में दलित सियासत के शहंशाह बनने की मेवाणी की चुनौती उनके चुनाव अभियान में अधिकांश बाहरी लोगों की मौजूदगी है। वडगाम उनके लिए नई जगह है और स्थानीय स्तर पर उनका कोई राजनीतिक ढांचा नहीं जिसकी वजह से मेवाणी का पूरा प्रचार उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र या गुजरात के दूसरे इलाकों से आए युवा लोग प्रचार कर रहे हैं। हालांकि मेवाणी के प्रचार में शामिल गिरिश भाई और रमेश भाई जैसे लोगों ने यह दावा किया कि कांग्रेस नेता पूरी ईमानदारी से चुनाव अभियान में शामिल हो रहे हैं। मगर मैदान में मित्र दल के बागी उम्मीदवार को बाहरी कैडर के सहारे थामते हुए सिलायी मशीन से अपनी पहली चुनावी चादर की सिलायी जिग्नेश के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं दिख रही।
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