जिसे बैसाखी समझा वह बन गई गले की फांस
कांग्रेस के कार्यकर्ता उधारी नेताओं के भरोसे फार्मूले की सफलता को लेकर पशोपेश में हैं।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, वलसाड। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने दो दशक पुराने सियासी नुस्खे को अपनाकर जीत का दावा कर रही है। क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं को गोलबंद कर भाजपा का मुकाबला करने की रणनीति तैयार की है। इस चुनावी फार्मूले को तैयार करने में भारतीय जनता पार्टी के विरोध में खड़े नेताओं को जोड़ा गया है। लेकिन, इन सियासी घटकों को जोड़ने में आ रही मुश्किलें और बदली परिस्थितयों में इस गठबंधन के प्रभाव को लेकर पार्टी के भीतर ही संदेह व्यक्त किया जा रहा है। कांग्रेस के कार्यकर्ता उधारी नेताओं के भरोसे फार्मूले की सफलता को लेकर पशोपेश में हैं।
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने कथित रूप से चुनाव जिताऊ जिस फार्मूले को तैयार किया है, उसके प्रमुख स्तंभों में तीन युवा नेता हैं। पाटीदार आंदोलन के प्रमुख हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर। लेकिन कांग्रेस के पास अपना कोई ऐसा नेता है, जो विधानसभा चुनाव में पार्टी का बड़ा चेहरा बने। इस गफलत से भी पार्टी की चुनावी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल हैं। हार्दिक सीडी कांड के चलते साख और प्रमुख सहयोगी नेताओं के साथ छोड़ने से अपना सियासी अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची को लेकर राज्य के विभिन्न जिला मुख्यालयों पर पास कार्यकर्ताओं ने जबर्दस्त हिंसक विरोध किया है। सूरत में तो कांग्रेस के कई पदाधिकारियों ने इस्तीफा तक दे दिया है। इससे इन घटकों से गठबंधन को बनाये रखना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा।
कांग्रेस जातिवाद को साधकर चुनावी नैया पार कराने की रणनीति पर आगे बढ़ भी रही है। पार्टी के भीतर माना जा रहा है कि हार्दिक पटेल जहां पाटीदार मतों को गोलबंद करेगा तो मेवाणी से दलित मतदाताओं को रिझाने की उम्मीद की जा रही है। जबकि ठाकोर से अन्य पिछड़ी जातियों को साथ लेने की संभावना पर कांग्रेस आगे बढ़ रही है। लेकिन समस्या इन नेताओं की अपनी साख और सियासी ताकत की है। इन नेताओं की क्षमता और क्षीण होती ताकत कांग्रेस को मंझधार में छोड़ सकती है।
कमजोर गठबंधन
हार्दिक, मेवाणी और ठाकोर के अपने-अपने राजनीतिक एजेंडे हैं, जो लगातार कांग्रेस के समक्ष चुनौतियां खड़ा कर रहे हैं। तीनों नेताओं के अपनी सियासी अपेक्षाएं हैं। पिछड़ों व दलितों के नाम पर राजनीति करने वाले नेता जिस आरक्षण के मुद्दे पर अपने समाज के नेता बने बैठे हैं, उनकी अपेक्षाएं लगातार जोर मार रही हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इन मुद्दों को न अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करने की स्थिति में है और न ही सार्वजनिक मंच से इसकी घोषणा कर सकती है।
हालांकि ठाकोर ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली है। लेकिन बाकी दोनों नेता पटेल और मेवानी तो सिर्फ भाजपा विरोधी मंच बनाकर उसे हराने की रणनीति के तहत कांग्रेस के साथ हैं। इनका उद्देश्य भाजपा को हराना और नरेंद्र मोदी का विरोध करना है, न कि समस्याओं के समाधान करना। उनकी इस मंशा को जानकर ही उनके सहयोगियों ने उनसे किनारा करना शुरु कर दिया है। निकट सहयोगियों ने खुलकर मेवाणी और हार्दिक की आलोचना भी कर रहे हैं। दूसरे नेता ठाकोर खुद को अन्य पिछड़ी जाति के नेता के रूप में स्थापित करने में जुटे हुए हैं। वह मध्य गुजरात के सक्ति्रय भी रहे हैं। जबकि मेवानी दलितों की आवाज बनकर उभरना चाहते हैं। ठाकोर के पिता भी अहमदाबाद जिला कांग्रेस के नेता के रुप में स्थापित थे।
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