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गुजरात विधानसभा चुनावः अहमद पटेल की गैरमौजदगी कुछ कहती है

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के शक्तिशाली राजनीतिक सचिव अहमद पटेल चुनावी महासमर में सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Wed, 22 Nov 2017 10:43 PM (IST)Updated: Wed, 22 Nov 2017 10:43 PM (IST)
गुजरात विधानसभा चुनावः अहमद पटेल की गैरमौजदगी कुछ कहती है
गुजरात विधानसभा चुनावः अहमद पटेल की गैरमौजदगी कुछ कहती है

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, भरुच। गुजरात विधानसभा चुनाव की सियासी जंग में कांग्रेस ने अपना चाणक्य ही बदल लिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के शक्तिशाली राजनीतिक सचिव अहमद पटेल चुनावी महासमर में सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। आमतौर पर चुनावों के दौरान गुजरात की सियासत में अहमद पटेल की तूती बोलती रही है।

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कांग्रेस अपने दूसरे राज्यों से गुजरात चुनाव के लिए बुला रखा है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सबसे बड़े रणनीतिकार बन गये हैं। अहमद पटेल जैसे दिग्गज को चुनाव से अलग रखने की क्या मजबूरी हो सकती है। भरूच के लोगों को यह बहुत ही अटपटा लग रहा है, जो पच नही रहा है। अहमद भाई यहीं के मूल निवासी हैं, जिन्हें यहां बाबू भाई के नाम से जाना जाता है। कांग्रेसी कार्यकर्ता बल्लभ भाई कहते हैं, यह पार्टी की अपनी रणनीति हो सकती है, लेकिन इसके कोई अलग मायने निकालने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन जानकारों की मानें तो भाजपा के अंकलेश्र्वर के अस्पताल में आईएसआई कार्यकर्ता की गिरफ्तारी पर लगातार हमले को लेकर कांग्रेस सशंकित है। कांग्रेस की परेशानी की यह बड़ी वजह हो सकती है।

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने सीधे अहमद पटेल पर आरोप लगाते हुए हमला बोला था। हालांकि पटेल ने इसे खारिज कर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मामले की जांच कराने के लिए खत लिख दिया है। फिर भी कांग्रेस को लग रहा है कि भाजपा इस मुद्दे को उठाकर ध्रुवीकरण की चुनावी राजनीति को हवा दे सकती है। भाजपा भी जानती है कि अहमद पटेल कांग्रेस की कमजोरी हैं। इसीलिए तो भाजपा निशाना साधने से चूकना नहीं चाहती है।

कांग्रेस वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा की आक्त्रामक रणनीति को भूली नहीं है। उस समय भाजपा ने हमला करते हुए आरोप लगाना शुरु किया कि कांग्रेस चुनाव जीती तो अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनायेगी। कांग्रेस को लग रहा है कि उनकी यह चाल कांग्रेस पर भारी पड़ी और जबरदस्त ध्रुवीकरण होगा। इस बार कांग्रेस ऐसे आरोपों से निपटने की रणनीति पर पहले से ही सतर्क है।

अहमद भाई का गांधी परिवार से काफी पुराना संबंध है। वर्ष 1977 की कांग्रेस विरोधी आंधी में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थी, उस समय अहमद पटेल भरुच संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीत गये थे। राजीव गांधी के जमाने में युवा नेताओं को पार्टी आगे ला रही थी, उस समय अहमद पटेल को पार्टी का महासचिव बनाया गया था।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है। लेकिन इस बार के गुजरात चुनाव में उनकी जगह राज्य के पार्टी प्रभारी अशोक गहलोत यह भूमिका निभा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चाहत के बाद ही गहलोत को भी राष्ट्रीय राजनीति में जगह मिली थी। केंद्र में कई बार मंत्री रहे गहलोत राजस्थान में दो बार मुख्यमंत्री बने। गहलोत को चार दशकों का सियासी तजुर्बा है।

गुजरात कांग्रेस से शंकरसिंह बाघेला जैसे नेता की बगावत के बाद शक्ति सिंह गोहिल, भरतसिंह सोलंकी और अर्जुन मोडवाडिया जैसे नेता ही बचे है। ये सभी क्षेत्रीय नेताओें में शुमार हैं। इनमे किसी की राजनीतिक हैसियत पार्टी को अकेले जिताकर सत्ता में पहुंचाने वाली नहीं है। पार्टी नेताओं को बांधकर रखने और नये नेतृत्व के न उभरने देने का आरोप भी अहमद पटेल पर दबी जुबान से म़ढ़ा जाने लगा है।


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