जब एक ही सीट से जीते कांग्रेस और जनसंघ के उम्मीदवार, पढ़िए- देश का यह चौंकाने वाला मामला
दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा हो चुका है। हम बात कर रहे हैं पहली बार दिल्ली विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव की।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। एक विधानसभा क्षेत्र और दो सदस्य निर्वाचित, वह भी दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दल से! इस बात पर किसी को भी हैरानी हो सकती है। लोगों के लिए इस बात पर भरोसा करना भी आसान नहीं है। मौजूदा व्यवस्था में यह संभव भी नहीं है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा हो चुका है। हम बात कर रहे हैं पहली बार दिल्ली विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव की। इस चुनाव में दिलचस्प बात यह थी कि छह निर्वाचन क्षेत्रों से दो-दो उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसमें से एक सीट से कांग्रेस और जनसंघ दोनों के उम्मीदवार विजयी घोषित हुए थे। हालांकि, बाद में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में ऐसा मौका दोबारा नहीं आया क्योंकि विधानसभा जल्दी ही भंग कर दी गई और दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था भी बदल गई।
पहली बार हुए चुनाव में आया मामला
दरअसल, पार्ट सी स्टेट एक्ट 1951 के तहत मार्च 1952 में पहली बार दिल्ली विधानसभा अस्तित्व में आई। इसके लिए 23 मार्च, 1952 को पहली बार दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। इसमें 42 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 58.52 फीसद मतदान के साथ पांच लाख 21 हजार 766 लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया। छह निर्वाचन क्षेत्र ऐसे थे, जहां दो सीटें थीं। ये छह निर्वाचन क्षेत्र थे रीडिंग रोड, सीताराम बाजार तुर्कमान गेट, पहाड़ी धीरज बस्ती जुल्लाहान, रैगरपुरा देव नगर, नरेला व महरौली।
चौधरी ब्रह्म प्रकाश बने थे दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री
चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार, रीडिंग रोड क्षेत्र से जनसंघ के अमीन चंद व कांग्रेस के प्रफुल्ल रंजन चक्रवर्ती विधानसभा सदस्य घोषित किए गए। अन्य पांच क्षेत्रों से कांग्रेस के दो-दो उम्मीदवार जीते। इस तरह 42 विधानसभा क्षेत्रों के 48 सीटों पर उम्मीदवारों का चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस के 39 व जनसंघ के पांच व अन्य के पांच सदस्य विजयी होकर विधानसभा में पहुंचे थे। इस तरह पहली विधानसभा का गठन हुआ। चौ. ब्रह्म प्रकाश पहले मुख्यमंत्री बने। तब प्रशासनिक बागड़ोर मुख्य आयुक्त के हाथ में होती थी।
तब विधानसभा को था कानून बनाने के अधिकार
मंत्री परिषद की भूमिका मुख्य आयुक्त के सलाहकार व जनता की नुमाइंदगी की थी। जनता क्या चाहती है, इसे विधानसभा के सदस्य मुख्य आयुक्त के समक्ष रखते थे। विधानसभा को कानून बनाने का भी अधिकार था। इसके करीब चार साल सात माह बाद ही वर्ष 1956 में राज्य मान्यता अधिनियम लागू हुआ। तब दिल्ली को पार्ट सी राज्य की सूची से हटाकर केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। इस तरह विधानसभा भंग कर दी गई। सितंबर 1966 से दिल्ली की राजकाज में एक बार फिर बदलाव हुआ। इसके साथ दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन हुआ और शासन की कमान उपराज्यपाल को मिली। इसके बाद वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन के तहत दिल्ली को एनसीटी (नेशनल कैपिटल टेरिटरी) घोषित कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम लागू किया गया व विधानसभा के गठन का फैसला लिया गया। लिहाजा, वर्ष 1993 में विस का चुनाव हुआ और दिल्ली में पहली राज्य सरकार सत्ता में आई। इसके बाद अब सातवीं विधानसभा के गठन के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई है।
अंग्रेजी हुकूमत के वक्त बना था विधानसभा का भवन
दिल्ली विधानसभा का भवन अंग्रेजी हुकूमत के दौरान वर्ष 1912 में बना। इसका निर्माण इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल की बैठक के लिए किया गया था। इसका डिजाइन ई मोंटेग थॉमस ने बनाया था। 27 जनवरी 1913 को इसमें विधान परिषद की बैठक हुई थी।