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पढ़िए- दिल्ली के इन 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों के सफर की कहानी, आज कोई भी नहीं है जिंदा

दिल्ली पर काबिज होने के लिए राजनीतिक दलों में सियासी घमासान शुरू हुआ है। ऐसे में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्रियों के सफर की कहानी जानना लाजमी है।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 01:05 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 08:14 PM (IST)
पढ़िए- दिल्ली के इन 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों के सफर की कहानी, आज कोई भी नहीं है जिंदा
पढ़िए- दिल्ली के इन 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों के सफर की कहानी, आज कोई भी नहीं है जिंदा

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामरिक दृष्टि से समृद्ध दिल्ली देश ही नहीं वैश्विक स्तर पर आकर्षण का केंद्र है। देश की सत्ता का केंद्र होना भी दिल्ली के आकर्षण की एक बड़ी वजह है। ऐसे में यहां विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही कड़ाके की ठंड में सियासी पारा चढ़ गया है। आजादी के बाद से अब तक सात मुख्यमंत्री दिल्ली की कमान संभाल चुके हैं। चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिंह, गुरुमुख निहाल सिंह से लेकर सुषमा स्वराज तक ने मुख्यमंत्री का ताज पहना, लेकिन सही मायने में देखा जाए तो दिल्ली की दबंग शीला दीक्षित ही रहीं। लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनीं शीला दीक्षित ने 15 साल तक दिल्ली पर राज किया। कांग्रेस से लेकर भाजपा तक को कुर्सी सौंपने वाली दिल्ली ने आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी को भी मौका दिया और प्रचंड 67 सीटें देकर अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की कुर्सी सौंपी। अब एक बार फिर दिल्ली पर काबिज होने के लिए राजनीतिक दलों में सियासी घमासान शुरू हुआ है। ऐसे में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्रियों के सफर की कहानी जानना लाजमी है।

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चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिंह (17 मार्च 1952 से 12 फरवरी 1955)

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिंह 33 वर्ष की आयु में ही दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बन गए थे। वर्ष 1952 से 1955 तक शासन करने वाले ब्रह्म प्रकाश सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। शकूरपुर निवासी ब्रह्म प्रकाश बाद में केंद्रीय मंत्री भी बने। राष्ट्र के प्रति उनके योगदान के लिए 11 अगस्त 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। कांग्रेस से बढ़ती दूरियों के कारण बाद में उन्होंने जनसंघ का दामन थाम लिया था।

गुरुमुख निहाल सिंह (12 फरवरी 1955 से एक नवंबर 1956)

राजस्थान के प्रथम राज्यपाल रहे गुरुमुख निहाल सिंह ने 12 फरवरी 1955 को दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन, एक दिसंबर 1956 को दिल्ली विधानसभा को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया, इसलिए पांच साल का वह कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। पाकिस्तान स्थित पंजाब में 14 मार्च 1895 में जन्मे निहाल सिंह महज 1 वर्ष 263 दिन के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 36 सालों तक दिल्ली में चुनाव नहीं हुआ। कांग्रेस के कद्दावर नेता में शुमार रहे गुरुमुख सिंह ने लंदन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बीएससी की उपाधि ली थी। वर्ष 1920 में वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर चुने गए थे।

मदन लाल खुराना (दो दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996)

वर्ष 1993 में केंद्र सरकार द्वारा संविधान में किए गए कुछ संशोधनों के बाद दिल्ली में फिर से विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई। यह पहला मौका था जब दिल्ली की सियासत में भाजपा का उदय हुआ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे मदन लाल खुराना तीसरे मुख्यमंत्री बने। पाकिस्तान के फैसलाबाद में जन्मे मदन लाल बंटवारे के बाद दिल्ली के कीíत नगर में शरणार्थी शिविर में रहे। किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक किया फिर मोतीनगर से विधायक बने। वह 2 दिसंबर 1993 से लेकर 26 फरवरी 1996 तक मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री रहे।

साहेब सिंह वर्मा (26 फरवरी 96 से 12 अक्टूबर 1998)

पार्षद के रूप में वर्ष 1977 में पहला चुनाव जीतने वाले साहेब सिंह वर्मा ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गुरु राधा किशन के नाम पर शपथ लेकर सुर्खियां बटोरी थीं। मदन लाल खुराना की सरकार में उन्हें शिक्षा और विकास मंत्रलय जैसा महत्वपूर्ण पद सौंपा गया। वर्ष 1996 में जब भ्रष्टाचार के आरोप में खुराना ने त्याग पत्र दिया तो साहेब सिंह मुख्यमंत्री बने। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1999 में बाहरी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से वह दो लाख से अधिक मतों के अंतर से जीते थे। साहेब सिंह वर्मा 26 फरवरी 1996 से लेकर 12 अक्टूबर 1998 तक मुख्यमंत्री रहे। 30 जून 2007 को दिल्ली-जयपुर हाइवे पर एक कार दुर्घटना में उनकी आकस्मिक मौत हो गई थी।

सुषमा स्वराज (12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998)

अचानक बदले राजनीतिक परिदृश्य में 12 अक्टूबर 1998 को साहेब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में कमान मिली। प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज भले ही 58 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन इस बीच उन्होंने लोगों के दिलों पर अपनी अलग छाप छोड़ी। सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री के तौर पर एक शानदार सफर तय किया। 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला जिले में जन्मीं सुषमा स्वराज ने 25 वर्ष की उम्र में अंबाला से अपना पहला चुनाव जीता और विधायक बनीं। चार साल तक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य रहीं सुषमा ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी संभाली। देवीलाल चौटाला की सरकार में मंत्री भी रहीं सुषमा स्वराज भाजपा की अहम रणनीतिकार थीं। देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी सुषमा स्वराज के नाम पर दर्ज है। बीमारी के कारण 6 अगस्त 2019 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

शीला दीक्षित (3 दिसंबर 1998 से 28 दिसंबर 2013)

दिल्ली की राजनीति और शीला दीक्षित। इन दोनों को एक दूसरे का पर्याय कहना गलत नहीं होगा। उत्तर प्रदेश से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाली शीला दीक्षित ने 3 दिसंबर 1998 को दिल्ली की छठी मुख्यमंत्री की कमान संभाली। दिल्ली की जनता के दिल पर शीला ने 15 साल से अधिक समय तक राज किया। वह 1984 से 1989 तक उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहीं। 1998 से लेकर 28 दिसंबर 2013 तक शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। उन्हें के कार्यकाल में दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स का भव्य आयोजन किया गया। पंजाब के कपूरथला में जन्मीं शीला दीक्षित ने दिल्ली के मिरांडा हाउस से इतिहास में स्नातक की डिग्री हासिल की। उनकी शादी उत्तर प्रदेश के आइएएस अधिकारी विनोद दीक्षित से हुई थी। 2013 में विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। 20 जुलाई 2019 को दिल्ली में उनका आकस्मिक निधन हो गया।


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