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Delhi Assembly Election 2020: जानें अंग्रेजों द्वारा बसाए गए दिल्‍ली कैंट विधानसभा सीट के बारे में

मतदाताओं के आंकड़ों के अनुसार दिल्‍ली कैंट विधानसभा सीट तीसरी सबसे छोटी विधानसभा सीट है। यह नई दिल्‍ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में आता है।

By Monika MinalEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 06:15 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 06:15 PM (IST)
Delhi Assembly Election 2020: जानें अंग्रेजों द्वारा बसाए गए दिल्‍ली कैंट विधानसभा सीट के बारे में
Delhi Assembly Election 2020: जानें अंग्रेजों द्वारा बसाए गए दिल्‍ली कैंट विधानसभा सीट के बारे में

नई दिल्‍ली, ऑनलाइन डेस्‍क। Delhi Assembly Election 2020: दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से एक दिल्‍ली छावनी (कैंट) है जो यहां की तीसरी सबसे छोटी विधानसभा सीट है। यह नई दिल्‍ली जिले का हिस्‍सा है। सैन्‍य छावनी के लिए मशहूर यह इलाका नई दिल्‍ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में आता है।

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1951 में हुआ था पहली बार चुनाव


पहली बार यहां वर्ष 1951 में चुनाव आयो‍जित कराया गया था। इसमें कांग्रेस के राघवेंद्र सिंह को जीत मिली थी। इस विधानसभा सीट को कांग्रेस और भाजपा ने क्रमशा 4-4 बार जीता है। फिलहाल वहां के विधायक आम आदमी पार्टी के सुरेंदर सिंह हैं जो लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए हैं।

1914 में लगाई गई थी सेना की छावनी


वर्ष 1914 में इस क्षेत्र में सेना की छावनी लगाई गई। सेना का मुख्‍यालय होने के कारण इस क्षेत्र को दिल्‍ली कैंट के नाम से पहचान मिल गई। दिल्‍ली कैंट और अहमदाबाद कैंट को एक साथ अंग्रेजों ने ही बसाया था।

अधिक है ग्रामीण क्षेत्र

यहां ग्रामीण क्षेत्र अधिक हैं जिसमें पांच बड़े गांव हैं। ये गांव हैं- ओल्ड नांगल, झरेड़ा, बेहराम नगर, ईस्ट मेहराम नगर, प्रहलादपुर। साथ ही इस इलाके में पॉश कॉलोनियां भी आती हैं।

लेकिन 1979 में दिल्ली कैंट बोर्ड मेंबर चुनाव में बीजेपी के करण सिंह तंवर के जीत के बाद पासा पूरी तरह से पलट गया। करण सिंह तंवर चार बार यहां से बीजेपी एमएलए रहें। 2013 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर उलट- फेर हुआ। यहां से आम आदमी पार्टी से पहली आर्मी बैकग्राउंड से खड़े सुरेंद्र सिंह ने तंवर को हराया। दूसरी बार 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भी दोनों के बीच ही मुकाबला रहा और फिर एक बार सुरेंद्र सिंह ने तंवर को 11,198 वोटों से मात दी।

यहां की मुख्‍य समस्‍या

- पानी की समस्या

- ट्रैफिक जाम

- बाजारों में अतिक्रमण

- मोबाइल नेटवर्क क्योंकि यहां टावर लगाने की अनुमति नहीं है  


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