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भाजपा को पुरबिया वोटरों का नहीं मिला साथ, प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी की बढ़ेगी मुश्किल

पूर्वांचल के लोगों का समर्थन नहीं मिलने और विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन से प्रदेश अध्यक्ष की मुश्किल भी बढ़ेगी क्योंकि उनके विरोधियों को एक मौका मिल गया है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 12 Feb 2020 12:08 AM (IST)Updated: Wed, 12 Feb 2020 07:16 AM (IST)
भाजपा को पुरबिया वोटरों का नहीं मिला साथ, प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी की बढ़ेगी मुश्किल
भाजपा को पुरबिया वोटरों का नहीं मिला साथ, प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी की बढ़ेगी मुश्किल

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली में पूर्वांचल के वोटरों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखकर भाजपा ने भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपी है। पार्टी को उम्मीद थी कि तिवारी के सहारे वह विधानसभा चुनाव में पुरबिया वोटरों को साधने में सफल रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बुराड़ी, संगम विहार, किराड़ी, द्वारका, उत्तम नगर सहित लगभग उन सभी सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा जहां उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग ज्यादा हैं।

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पूर्वांचल के लोगों का समर्थन नहीं मिलने और विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन से प्रदेश अध्यक्ष की मुश्किल भी बढ़ेगी, क्योंकि उनके विरोधियों को एक मौका मिल गया है। पहले भी कई नेता अंदर खाते उनके नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। अब इस हार के लिए वह उन्हें जिम्मेदार ठहराते हुए नेतृत्व बदलने की मांग कर सकते हैं।

2016 में सौंपी गई थी दिल्ली की कमान

भाजपा ने नवंबर, 2016 में तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपी थी। लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल वोटरों का साथ भाजपा को मिला था, लेकिन विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। पूर्वांचल से संबंधित भाजपा के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए।

भाजपा गठबंधन पार्टियों को नहीं मिली जीत

इसके साथ ही पार्टी ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से समझौता करके चुनाव में उतरी थी। बुराड़ी और संगम विहार सीट पर जदयू और सीमापुरी से लोजपा के प्रत्याशी मैदान में उतरे थे, लेकिन इसमें से किसी को भी जीत नसीब नहीं हुई।

चुनाव के दौरान मोदी सरकार के फैसले का भी नहीं मिला लाभ

इसी तरह से अनधिकृत कॉलोनियों में लोगों को उनके घर का मालिकाना हक देने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले का लाभ भी भाजपा को नहीं हुआ। इस फैसले से 40 लाख से ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचने का दावा किया जा रहा है। इन कॉलोनियों में भी अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग रहते हैं।


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