पिछली बार तो नहीं दिखी थी सहानुभूति, अब क्या गुल खिलाएगी झीरम घाटी
दरभा ब्लॉक के झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस के काफिले को एंबुश में फंसाया था।
रायपुर। झीरम घाटी का नाम सुनते ही जेहन में नक्सलियों का वह नृशंस नरसंहार सामने आ जाता है। 25 मई 2013 को अंजाम दिए गए इस नरसंहार के बाद झीरम देश दुनिया में चर्चित हो गया। बस्तर जिले के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में शामिल झीरम घाटी का ज्यादातर हिस्सा जगदलपुर सामान्य विधानसभा सीट में शामिल है। घाटी का दक्षिणी भाग कोंटा विधानसभा में और पश्चिम का हिस्सा चित्रकोट विधानसभा में आता है। झीरम नरसंहार के छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नहीं जीत पाई और जहां यह कांड हुआ था वहां तो इस नरसंहार का कोई असर ही नहीं दिखा था।
झीरम घाटी के बूथों में कांग्रेस और भाजपा को वोट नहीं पड़े थे। झीरम के बूथों में सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिले थे, दूसरे नंबर थी सीपीआई। जगदलपुर सीट में भाजपा की विजय हुई थी यानी जहां इतनी बड़ी वारदात हुई वहां कांग्रेस के लिए कोई सहानुभूति लहर नहीं चल पाई।
कांग्रेस के दिग्गज नेता महेंद्र कर्मा इस घटना में मारे गए थे। दंतेवाड़ा सीट पर उनकी पत्नी देवती कर्मा जीतीं तो यही माना गया कि उन्हें सहानुभूति मिली है। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे की हत्या के बाद खरसिया में उनके छोटे बेटे उमेश पटेल ने विजय दर्ज की।
राजनांदगांव के पूर्व विधायक रहे उदय मुदलियार की जगह उनकी पत्नी को टिकट मिला था लेकिन वे हार गईं। धरसींवा से कांग्रेस नेता योगेंद्र शर्मा की पत्नी अनिता शर्मा भी हार गई थीं। इसके बावजूद बस्तर में 12 में से आठ सीटें कांग्रेस जीती तो उसकी वजह झीरम कांड को भी माना गया। इस बार झीरम कांड का कोई असर तो नहीं दिख रहा है। फिर भी क्या झीरम कोई गुल खिलाएगा इस पर सबकी नजर है।
क्या हुआ था झीरम में-
दरभा ब्लॉक के झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस के काफिले को एंबुश में फंसाया था। कांग्रेस नेता सुकमा से परिवर्तन रैली करके लौट रहे थे। अचानक फायरिंग होने लगी। इस घटना में नक्सल विरोधी आंदोलन चलाने वाले कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उदय मुदलियार समेत कांग्रेस के कई नेताओं समेत 30 से ज्यादा लोग मारे गए थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल की बाद में उपचार के दौरान मौत हुई थी। जन प्रतिनिधियों पर यह अब तक का सबसे बड़ा हमला है। झीरम कांड के बाद अब दूसरी बार चुनाव हो रहे हैं।
नक्सलियों ने कहा था, नोटा पर वोट दो
पिछले चुनाव में नक्सलियों ने बहिष्कार का ऐलान नहीं किया था बल्कि नोटा पर वोट देने का फरमान सुनाया था। अंदरूनी इलाकों में ग्रामीणों को डमी ईवीएम के जरिये नोटा में वोट देना सिखाया भी था। झीरम घाटी में जिस जगह वारदात हुई थी, वह कमकानार पंचायत में आता है। घाटी के दायरे में इसके अलावा एलंगनार और टाहकवाड़ा पंचायतें भी हैं। इन सभी जगहों पर नोटा पहले नंबर पर रहा था। कांग्रेस इस इलाके में तीसरे नंबर पर थी जबकि दूसरे नंबर पर सीपीआई रही थी।