नक्सलवाद पर छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री के सामने उम्मीदों का पहाड़
कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बस्तर में बदलाव की आस लगा रहे हैं मानवाधिकार कार्यकर्ता। जन सुरक्षा अधिनियम रद्द करने, निर्दोषों को रिहा करने की मांग।
रायपुर। छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के साथ ही पिछले 15 सालों से नक्सल इलाकों में मानवाधिकारों की रक्षा की मांग उठा रहे सामाजिक संगठनों की उम्मीदों को पर लग गए हैं।
नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नक्सलवाद से निपटने के पुरानी सरकार के तौर तरीकों से सहमत नहीं थे। विपक्ष में रहते हुए उन्होंने कई मौकों पर आदिवासियों की फर्जी मामलों में गिरफ्तारी और मुठभेड़ के नाम पर हत्या, पत्रकारों पर जन सुरक्षा अधिनियम लगाने, बस्तर में पुलिस अफसरों द्वारा गठित संगठनों की गुंडागर्दी आदि मामलों में अपनी और अपनी पार्टी की आवाज मुखर की।
बस्तर में पुलिस समर्थित संगठन बनाकर आदिवासियों की हत्या का समर्थन करने और मानवाधिकारवादियों पर हमला करने वाले अपनी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाया। बस्तर में पुलिस ने झीरम कांड के आरोपी नक्सलियों की शादी कराई और उसमें लाखों रूपए फूंके तब भूपेश की त्योरी चढ़ी रही।
जाहिर है कि ऐसे मुख्यमंत्री के आने पर मानवाधिकार संगठनों की उम्मीदें परवान पर हैं। उनसे उम्मीद लगाए बैठे सामाजिक कार्यकर्ता अब कह रहे हैं कि अनुसचित क्षेत्रों में पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित कराएं ताकि आदिवासियों का असंतोष कम किया जा सके। तीन हजार से ज्यादा आदिवासी फर्जी मामलों में जेलों में बंद हैं।
पिछली सरकार में जिसने भी कानून, संविधान या न्याय की बात की उस पर पुलिस और गुंडों ने हमले किए। दूसरे धर्म के पूजा स्थलों पर हमलों की जांच कराई जानी चाहिए। संविधान के पक्ष में नाबालिग आदिवासी लड़कियों से पुलिस की ज्यादिती पर आवाज उठाने की वजह से रायपुर की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे को निलंबित किया गया है। उन्हें बहाल कराएं। सरगुजा में लेधा कांड सुर्खियों में रहा। विवादित पुलिस अधिकारी एसआरपी कल्लूरी इस मामले में आरोपी रहे।
मामला रफा दफा कर दिया गया। अब इस केस को दोबारा खोला जाए। सोनी सोरी को जेल में प्रताड़ित करने वाले पुलिस अफसरों पर केस दर्ज हो। सामाजिक कार्यकर्ताओं नंदिनी सुंदर और अर्चना प्रसाद के खिलाफ दर्ज मामले वापस लिए जाएं। निर्दोष आदिवासियों को कानूनी मदद देने वाली शालिनी गेरा, ईशा खंडेलवाल और उनके सहयोगियों को जगदलपुर जाकर अपना काम शुरू करने दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुड़ूम पर जो निर्देश दिए हैं उनका पालन कराएं।
आदिवासियों के गांव जलाने, आदिवासी लड़कियों से दुष्कर्म करने वाले, उनकी हत्या करने वाले पुलिस अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हो और कोर्ट की मंशा के अनुरूप आदिवासियों को उनके नुकसान के लिए हर्जाना दिया जाए। जेलों में बंद आदिवासियों को रिहा कराने के लिए बनी निर्मला बुच समिति को सक्रिय किया जाए। नई सरकार आदिवासियों से बातचीत की प्रक्रिया शुरू करे।
पहले ही किया है वादा
सामाजिक कार्यकर्ता जो उम्मीद कर रहे हैं उसकी घोषणा कांग्रेस पहले ही कर चुकी है। चुनाव प्रचार के दौरान आदिवासियों की समस्याओं पर खूब चर्चा की गई। उनका समाधान निकालने के वादे भी किए गए। अब देखना है कि सरकार एक्शन कब लेती है।