बढ़ने लगी चुनावी सरगर्मी, फिर भी मंदा है बैनर, पोस्टर, होर्डिंग्स का धंधा
घरेलू काम से निवृत्त होने के बाद वे अपने समाज व परिचितों से मेल-मुलाकात के बहाने वोट मांगने जा रहे हैं।
रायपुर। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के खर्च की लिमिट 28 लाख रुपये निर्धारित की गई है। इसके बावजूद शहर के चौक-चौराहों और शहर के वार्डों में प्रत्याशियों के झंडे, पोस्टर और बैनर नदारद है। पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना करें तो इस बार शहर में बैनर, पोस्टर उंगलियों पर गिनने लायक ही नजर आ रहे हैं।
इसकी वजह से इस बार प्रिंटिंग प्रेस के कारोबार पर भी खासा असर पड़ता दिखाई दे रहा है। राजधानी के प्रिंटिंग प्रेस के व्यवसायी ने बताया कि पिछले चुनाव में जहां पार्टियों को समय परबैनर-पोस्टर उपलब्ध कराना चुनौती रहती थी, वहीं इस चुनाव में गिने-चुने ऑर्डर ही आए हैं।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है। प्रत्याशियों ने अपने-अपने क्षेत्र में प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया है। चुनाव आयोग की सख्ती से प्रत्याशी फूंक-फूक कर कदम रख रहे हैं।
इसका उदाहरण है कि राजधानी में राजनीतिक पार्टियों के बैनर, पोस्टर और झंडे नजर नहीं आ रहे हैं। इसके साथ ही प्रत्याशियों का प्रचार करने वाले वाहन भी घूमते दिखाई नहीं दे रहे हैं। प्रत्याशियों के समर्थक बैनर, पोस्टर से प्रचार-प्रसार करने के बजाय दिन रात घर-घर दस्तक देने में ज्यादा विश्वास कर रहे हैं।
रिश्तेदारों के पास चूल्हे-चौके की कमान
विधानसभा चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की पत्नियां भी समाज की महिलाओं, परिचितों व सहेलियों के साथ सुबह से देर रात घर-घर जाकर पति के लिए समर्थन मांग रही हैं। ऐसे में घर-गृहस्थी, चूल्हा-चौका संभालने के लिए उनके रिश्तेदार भी यहां आ चुके हैं। घरेलू काम से निवृत्त होने के बाद वे अपने समाज व परिचितों से मेल-मुलाकात के बहाने वोट मांगने जा रहे हैं।
बैनर-पोस्टर गायब, रोजी-रोटी पर पड़ रहा असर
व्यापारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चुनावी सीजन के बावजूद उनके पास नाममात्र के ऑर्डर आए हैं और वे भी कुछ बड़े राष्ट्रीय दलों से छोटी पार्टियां तो ऑर्डर देने की हिम्मत ही जुटा नहीं पा रही हैं। कभी चुनाव का मौका हजारों परिवारों के लिए रोजी-रोटी का जरिया बनता था।
चुनाव आते ही व्यापारियों को जहां धड़ा धड़ ऑर्डर मिलते थे, वहीं सैकड़ों गरीब परिवार झंडे-बैनर बनाकर, पोस्टर चिपकाकर या जगह-जगह उम्मीदवारों के प्रचार बैनर टांगकर अपने के लिए कई महीनों की रोटी का जुगाड़ कर लेते थे, लेकिन इस बार लोग झंडा-बैनर और पोस्टर की जगह लोग मोबाइल ग्रुप के माध्यम से प्रचार-प्रसार में जुटे हैं।