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बस्तर में पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून को मुद्दा बनाने की कोशिश

आदिवासियों को भावनात्मक रूप से उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों के हनन के नाम पर ही उकसाया जा रहा है।

By Sandeep ChoureyEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 03:07 PM (IST)Updated: Tue, 30 Oct 2018 03:07 PM (IST)
बस्तर में पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून को मुद्दा बनाने की कोशिश
बस्तर में पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून को मुद्दा बनाने की कोशिश

रायपुर । बस्तर में पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून के उल्लंघन को विपक्षी दल मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आदिवासी गांवों में प्रचार किया जा रहा है कि सरकार आदिवासियों को संविधान से मिले विशेष अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही है। इसका कितना असर होगा यह तो पता नहीं लेकिन भाजपा विपक्ष के इस दुष्प्रचार पर सतर्क जरूर हो गई है। बस्तर में पहले चरण में मतदान होना है। मतदान के लिए अब दो हफ्ते से भी कम समय बचा है लेकिन जमीन पर मुद्दे नदारद हैं।

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उत्तरी छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून जैसे मुद्दे प्रभावी रहे। आदिवासी अधिकारों को लेकर पत्थलगड़ी जैसे आंदोलन भी खड़े हुए थे। हालांकि बस्तर में इसका ज्यादा असर नहीं देखा गया था।

दरअसल उत्तरी छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास और कोयला खदानों की वजह से गांवों के विस्थापन की समस्या रही है। विपक्षी दल और सामाजिक संगठन इस मुद्दे को हवा भी देते रहे हैं। लेकिन बस्तर में बैलाडीला की लौह अयस्क की खदानों के अलावा खनन का और कोई बड़ा काम नहीं है।

उद्योगों के लिए जमीनों का अधिग्रहण 2008 के चुनाव में मुद्दा बना था लेकिन अब वैसा नहीं है। लोंहडीगुड़ा में टाटा और दंतेवाड़ा में एस्सार स्टील प्लांट की योजना विफल हो चुकी है। जगदलपुर के निकट नगरनार में एनएमडीसी के स्टील प्लांट के लिए भू अधिग्रहण 18 साल पहले किया गया था।

अब नगरनार में भू विस्थापितों का पुनर्वास हो चुका है इसलिए वहां भी पांचवीं अनुसूची या पेसा कानून जैसी कोई हवा नहीं बन पा रही है। दंतेवाड़ा से नगरनार तक लौह अयस्क ले जाने के लिए एनएमडीसी पाइप लाइन बिछाने की योजना पर काम कर रही है।

कुछ गांवों में इसका विरोध देखने को मिला था पर अब वह भी शांत हो चुका है। ऐसे में आदिवासियों को भावनात्मक रूप से उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों के हनन के नाम पर ही उकसाया जा रहा है। गांवों में प्रचार किया जा रहा है कि भाजपा ने आदिवासियों की जमीनें छीनी हैं, पंचायतों को अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं। वैसे इन आरोपों पर आम आदिवासियों की अभिव्यक्ति नहीं सुनी जा रही है। ऐसे में यह मुद्दा कितना कारगर होगा यह देखने वाली बात होगी।

बैलाडीला के निजीकरण को दे रहे हवा
दंतेवाड़ा जिले में बैलाडीला की विश्व प्रसिद्ध लौह अयस्क की खदानें हैं। केंद्र सरकार की कंपनी एनएमडीसी यहां लौह अयस्क का उत्खनन करती है। बैलाडीला की कुछ खदानों को निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी की जा रही है। चुनाव में सीपीआई इसे मुद्दा बना रही है।

दंतेवाड़ा सीट पर सीपीआई त्रिकोणीय संघर्ष में रहती है। गांवों में पार्टी इन्हीं मुद्दों को लेकर जा रही है। कांग्रेस भी पीछे नहीं है। कांग्रेस आदिवासियों की फर्जी नक्सल मामलों में गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।

भाजपा गिना रही आदिवासी इलाकों का विकास
विपक्षी दलों के दुष्प्रचार पर सतर्क हुई भाजपा जोरशोर से आदिवासी इलाकों में किए गए विकास के काम गिना रही है। बस्तर में धुर नक्सल प्रभावित इलाकों तक सड़कों का जाल बिछाया गया है। जगदलपुर में एयरपोर्ट बना है। नगरनार में स्टील प्लांट शुरू होने वाला है। जगदलपुर तक नई रेललाइन पर काम चल रहा है। अंदरूनी इलाकों तक मोबाइल नेटवर्क के लिए बस्तर नेट परियोजना चलाई जा रही है। भाजपा उज्ज्वला योजना से लेकर, आबादी पट्टा वितरण, मोबाइल वितरण तक सबकुछ गिना रही है।


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