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सीपीआई ने छत्तीसगढ़ में 5 उम्मीदवारों के नाम का किया ऐलान

शनिवार को अचानक सीपीआई ने पांच सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 07:02 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 07:57 PM (IST)
सीपीआई ने छत्तीसगढ़ में 5 उम्मीदवारों के नाम का किया ऐलान

रायपुर, राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ में सीपीआई ने शनिवार को पांच उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर सभी को चौंका दिया है। दसअसल छत्तीसगढ़ में बसपा और अजित जोगी की पार्टी जकांछ के बीच गठबंधन होने के बाद सीपीआई भी इस गठबंधन में शामिल हो गई थी। इस गठबंधन के बाद सीपीआई को महज दो सीटें ही दी गई थीं। गठबंधन में दंतेवाड़ा व कोंटा सीट सीपीआई के खाते में आई थी, लेकिन शनिवार को अचानक सीपीआई ने पांच सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए।

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इसी के साथ सीपीआई ने गठबंधन से बाहर आकर अपने दम पर ही आगामी चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। राज्य में जोगी की पार्टी लगातार अपने गठबंधन का दायरा बढ़ाते हुए ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की कवायद कर रही है। इसी बीच गठबंधन में विवाद भी पनप रहे हैं। सीपीआई पहले भी बस्तर क्षेत्र की कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार कर चुनाव लड़ती रही है। कोंटा सीट पर सीपीआई का काफी प्रभाव भी रहा है।

इन प्रत्याशियों को मिली टिकट

- जगदलपुर से मंगल राम कश्यप

- कोंडगांव से रामचंद्र नाग

- केशकाल से राधिका सोढी

- दंतेवाड़ा से नंदराम सोढी

- कोटा से मनीष कुंजाम

छत्तीसगढ़ में उम्मीदवारों से जीत का अंतर छीनती रही है सीपीआइ
बस्तर की बारह सीटों पर परंपरागत रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है। इसके बाद भी सीपीआइ की उपस्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सीपीआइ को भले ही सफलता नहीं मिलती, मगर उसके प्रत्याशी दो प्रमुख प्रत्याशियों की हार- जीत के अंतर को घटाते जरूर रहे हैं। जाहिर है, अगर सीपीआइ मैदान में नहीं होती तो उसके वोट बहुत संभव है दो प्रमुख प्रत्याशियों भाजपा और कांग्रेस के बीच बंट जाते। वोट बंटने से किसका पलड़ा भारी हो जाता, कहा नहीं जा सकता।

2013 और 2008 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो सीपीआइ का वजन घटता- बढ़ता रहा है। एकमात्र दंतेवाड़ा सीट सीपीआइ के लिए फलदायी रही है। वहां राज्य बनने से पहले नंदराम सोरी सीपीआइ से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 2008 में दंतेवाड़ा सीट पर भले ही भाजपा को जीत मिली थी, मगर सीपीआइ ने कांग्रेस को तीसरे स्थान पर खिसका दिया था। कांग्रेस के उस वक्त के कद्दावर नेता महेंद्र कर्मा को कुल 25.07 प्रतिशत वोट मिले थे और सीपीआइ के मनीष कुंजाम ने 25.65 प्रतिशत वोट हासिल कर दूसरा स्थान पाया था। जीतने वाले भाजपा के प्रत्याशी भीमा मंडावी को 38.6 प्रतिशत वोट मिले थे। अब यह बहस का विषय है कि सीपीआइ के न होने पर कांग्रेस को फायदा मिलता या भाजपा को।

सीपीआइ के वोट बैंक का विश्लेषण करने से पता चलता है कि यह स्थिर नहीं रहा है। जैसे कोंटा सीट पर 2008 के चुनाव में 30.12 प्रतिशत वोट पार्टी के प्रत्याशी को मिले थे, जबकि पिछले चुनाव में यह घट कर 26.11 प्रतिशत रह गया। बीजापुर सीट पर उल्टा हुआ। वहां 2008 के चुनाव में 5.76 प्रतिशत वोट मिले और 2013 में बढ़ कर यह 8.40 प्रतिशत हो गया। चित्रकोट और जगदलपुर में भी वोट का प्रतिशत घटा, जबकि जगदलपुर में स्थिर रहा। कोंडागांव, केसकाल, नारायणपुर और भानुप्रतापुर में सीपीआइ ने 2008 में चुनाव नहीं लड़ा था। इसी तरह 2013 के चुनाव में कांकेर, भानुप्रतापुर और अंतागढ़ सीट पर इस पार्टी ने प्रत्याशी खड़ा नहीं किया था।

2013 में सीपीआइ का प्रदर्शन
(वोट प्रतिशत में)
कोंटा विधानसभा सीट- कांग्रेस 36.40, भाजपा 28.77, सीपीआइ 26.15
बीजापुर विधानसभा सीट- भाजपा 41.82, कांग्रेस 28.41, सीपीआइ 8.40
दंतेवाड़ा विधानसभा सीट- कांग्रेस 38.23, भाजपा 32.70, सीपीआइ 11.96
चित्रकोट विधानसभा सीट- कांग्रेस 42.16, भाजपा 31.83, सीपीआइ 9.30
जगदलपुर विधानसभा सीट- भाजपा 49.87, कांग्रेस 37.05, सीपीआइ 2.05
बस्तर विधानसभा सीट- कांग्रेस 50.59, भाजपा 33.85, सीपीआइ 2.93
कोंडागांव विधानसभा सीट- कांग्रेस 43.24, भाजपा 39.15, सीपीआइ 4.16
केसकाल विधानसभा सीट- कांग्रेस 37.99, भाजपा 31.86, सीपीआइ 4.80


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