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एंटी इंकम्बेंसी के गणित में उलझी कांग्रेस-भाजपा पार्टी, अपने-अपने दावे

रअसल प्रथम चरण के चुनाव में 12 सीटें बस्तर की हैं। बस्तर में भाजपा चार और कांग्रेस आठ सीटों पर जीती थी।

By Hemant UpadhyayEdited By: Published: Thu, 25 Oct 2018 08:12 PM (IST)Updated: Thu, 25 Oct 2018 08:12 PM (IST)
एंटी इंकम्बेंसी के गणित में उलझी कांग्रेस-भाजपा पार्टी, अपने-अपने दावे
एंटी इंकम्बेंसी के गणित में उलझी कांग्रेस-भाजपा पार्टी, अपने-अपने दावे

रायपुर। छत्तीसगढ़ में प्रथम चरण के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर या एंटी इन्कम्बेंसी को लेकर कांग्रेस और भाजपा गणित में उलझ गए हैं। दोनों प्रमुख दलों के दावे अलग-अलग हैं। कांग्रेस को लगता है कि भाजपा सरकार के खिलाफ अपने आप लहर बन रही है जबकि भाजपा के लोगों का मानना है कि सरकार भले ही भाजपा की थी स्थानीय नेता तो वही हैं।

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दरअसल प्रथम चरण के चुनाव में 12 सीटें बस्तर की हैं। बस्तर में भाजपा चार और कांग्रेस आठ सीटों पर जीती थी। इस बार कांग्रेस ने अपने सात विधायकों पर भरोसा जताया है और उन्हें दोबारा मैदान में उतार दिया है। भाजपा ने भी कमोबेश पिछले चुनाव के प्रत्याशियों पर ही दांव खेला है। अब भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच गणित यह लग रहा है कि सरकार भले ही भाजपा की थी विधायक तो कांग्रेस के थे। जो हारे थे वे भाजपा के थे इसलिए उनके प्रति सहानुभूति होगी।

एंटी इन्कम्बेंसी किसके खिलाफ है?

बस्तर भाजपा के प्रदेश स्तर के एक नेता जो आजकल संवैधानिक पद पर होने की वजह से सक्रिय राजनीति से दूर हैं सवाल उठाते हैं-एंटी इन्कम्बेंसी किसके खिलाफ है? आप बताएं। यह व्यक्ति के खिलाफ है या सरकार के खिलाफ। सरकार के खिलाफ तो कहीं नहीं दिखती। भाजपा ने प्रथम चरण में प्रत्याशी नहीं बदले हैं लेकिन जो मैदान में हैं वे सरकार में नहीं रहे, तो उनके खिलाफ लहर का तो सवाल ही नहीं उठता।

उक्त नेता का कहना है कि सरकार के खिलाफ प्रदेश में कहीं कोई माहौल नहीं है। स्थानीय विधायकों के खिलाफ हो सकता है लेकिन बस्तर में हमारे विधायक कम ही थे। उनके दावों में कितनी सच्चाई है यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा लेकिन कांग्रेसियों की उम्मीदें सत्ता विरोधी लहर से कुछ ज्यादा ही है।

कांग्रेस के एक नेता कहते हैं-यहां भाजपाइयों का विकास हुआ है। लोग देख रहे हैं कि कैसे पिछले 15 सालों में माहौल बिगड़ा है। नक्सलवाद हावी है। जो निर्माण हुए हैं उनमें भ्रष्टाचार की छाप साफ दिखती है। दोनों प्रमुख दलों के दावे के बीच छोटे दल भी हैं जो दोनों को ही खराब बताकर अपना प्रचार कर रहे हैं।

क्यों है ऐसी स्थिति

सत्ता विरोधी लहर को लेकर दोनों दल दावा करने की स्थिति में इसलिए हैं क्योंकि दोनों ने अपने पुराने प्रत्याशियों को ही रिपीट किया है। दंतेवाड़ा में देवती कर्मा, कोंडागांव में मोहन मरकाम, बस्तर में लखेश्वर बघेल, केशकाल में संतराम मरकाम, कोंटा में कवासी लखमा, भानुप्रतापपुर में मनोज मंडावी कांग्रेस के प्रत्याशी हैं।

ये सभी विपक्षी विधायक रहे हैं। भाजपा ने भी जगदलपुर से विधायक संतोष बाफना, बीजापुर से महेश गागड़ा, नारायणपुर से केदार कश्यप और अंतागढ़ से विक्रम उसेंडी को उतारा है। ये ऐसे चेहरे हैं जो लगातार चुनावी राजनीति में रहे हैं।

अन्य सीटों पर भी भाजपा और कांग्रेस ने उन्हें ही अवसर दिया है जो पिछले चुनाव में भी लड़े थे। ऐसे में सत्ता विरोधी लहर तो तभी काम करेगी जब लोग सरकार से गुस्सा होंगे। भाजपाइयों का यह दावा कितना कारगर होता है इसका पता नतीजों के बाद चलेगा।


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