Bihar Election 2020: सरकार ही नहीं भविष्य की दिशा भी तय करेगा बिहार चुनाव
इस बार फिर से नीतीश ही राजग का मुख्यमंत्री चेहरा है और माना जा रहा है वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नीतीश बिहार में 20 साल का लगभग अभेद्य रिकार्ड बनाएंगे। अनौपचारिक रूप से यह भी माना जाता रहा है कि इसके बाद नीतीश संभवत अपने लिए कुछ नई भूमिका देखें।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। पिछले पच्चीस तीस साल में बिहार विधानसभा चुनाव ने कई प्रयोग, कई दांव, कई समीकरण देखे हैं। पर माना जा रहा है कि 2020 चुनाव अगले कई वर्षो की दिशा दशा तय करेगा। महत्वाकांक्षा के फन पर सवार कई दल व नेताओं के लिए सकारात्मक नकारात्मक संदेश होगा, कुछ का अस्तित्व बनेगा तो कईयों का बिखरेगा। दरअसल, यह मानकर चला जा सकता है कि 2020 के बाद का चुनाव अलग होगा जहां हर दल, हर चेहरे की पहचान नई हो सकती है।
दलों, चेहरों, एजेंडो पर छिड़ सकती है नई चर्चा
वर्ष 1995 से लेकर पंद्रह साल तक लालू प्रसाद- राबड़ी देवी और फिर 2005 से पंद्रह साल तक नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के स्थापित चेहरे रहे हैं। इस बार फिर से नीतीश ही राजग का मुख्यमंत्री चेहरा है और माना जा रहा है वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नीतीश बिहार में 20 साल का लगभग अभेद्य रिकार्ड बनाएंगे। अनौपचारिक रूप से यह भी माना जाता रहा है कि इसके बाद नीतीश संभवत: अपने लिए कुछ नई भूमिका देखें। अगर ऐसा होता है तो 2025 में जदयू के पास सर्वमान्य और नीतीश सरीखा ताकतवर चेहरा नहीं होगा।
वहीं भाजपा में अब तक कोई सर्वस्वीकार्य और पूरे प्रदेश में लोकप्रिय चेहरा नहीं है। जबकि लालू के पुत्र तेजस्वी और राम विलास पासवान के उत्तराधिकारी चिराग पासवान खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में ही हैं। यही कारण है कि इस चुनाव के नतीजों का महत्व महज सरकार गठन से परे भी होगा। तेजस्वी इस बार का चुनाव लालू की छाया से हटकर लड़ रहे हैं। उनके पोस्टरों तक में लालू-राबड़ी की झलक नहीं है।
यह बड़ा साहसिक प्रयोग है क्योंकि तेजस्वी माई समीकरण के सुरक्षा कवच से बाहर कदम बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, जो आसान नहीं कहा जा सकता है। बल्कि राजनीतिक रूप से खतरनाक है। लेकिन अगर प्रयोग सफल रहा तो तेजस्वी खुद को स्थापित करने में सफल होंगे। चिराग पासवान की भी यही कवायद है। लेकिन तेजस्वी की पार्टी राजद की तरह मजबूत परंपरागत वोटों के आधार के अभाव में उनके लिए लड़ाई ज्यादा दुरूह है।
ऐसे में उन्होंने प्रदेश सरकार के खिलाफ कुछ मुद्दे उठाकर व्यक्तिगत लोकप्रियता बनाने का आम आदमी पार्टी मॉडल चुना जिसमें जातिगत समीकरण टूटते हैं। जाहिर तौर पर इस फार्मूले को आजमाने के लिए खुले रास्ते की जरूरत होती है और ऐसे में संभव है राजग से जुदा होना पड़े। लेकिन उन्हें इसका भी अहसास है कि ठोस जातिगत समीकरण के अभाव में उन्हें भाजपा जैसे मजबूत दल का साथ भी चाहिए।
यही कारण है कि भाजपा से बैर नहीं. जैसे नारे भी तैयार हो रहे हैं। यानी चिराग अपने लिए एक बैसाखी बचाए रखना चाहते हैं। 2020 चुनाव यह भी तय करेगा कि उसे चिराग का तेवर भाता है या फिर तेजस्वी का नया राग। इस बार मैदान में उपेंद्र कुशवाहा भी रालोसपा-बसपा व कुछ अन्य छोटे दलों का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बन गए हैं। उनकी महत्वाकांक्षा की भी यह आखिरी लड़ाई मानी जा सकती है क्योंकि नीतीश के सामने वह खुद को ही स्वाभाविक हकदार मानते हैं।
बिखरे बिखरे गठबंधन और मोर्चों की लड़ाई में वह कितना दम दिखा पाते हैं यह नतीजा तय करेगा। पर इन सबसे ऊपर भाजपा और जदयू के लिए भी 2020 अहम है। यह किसी से छिपा नहीं कि साथी होने के बावजूद दोनों दलों के बीच अदृश्य दबाव है और हमेशा रहा है। एक लड़ाई आपसी भी चल रही है।
नीतीश के समकक्ष भाजपा में अब तक कोई चेहरा नही है। ऐसे में संभवत: वक्त का इंतजार हो। जबकि जदयू इससे वाकिफ है कि चुनाव की बात हो तो भाजपा की स्ट्राइक रेट अधिक होती है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि भाजपा धीरे धीरे मंडल राजनीति का तिलस्म तोड़ने में कामयाब होती जा रही है। ऐसे में 2020 चुनाव और उसके नतीजे के मायने बहुत अहम होंगे।