Bihar Election 2020: NDA व महागठबंधन दोनों ने भूलों को सुधारा, वोटिंग में आक्रामकता का दिखा ट्रेंड
Bihar Election 2020 बिहार चुनाव के दूसरे चरण के मतदान में दोनों प्रमुख गठबंधनों ने पहले चरण की चूकों से संबक लेते हुए नए कदम उठाए। कड़ी लड़ाई को देखते हुए एक-एक वोट सहेजने की कोशिश की। आर-पार की इस लड़ाई में दोनों ओर से आक्रामक वोटिंग हुई।
पटना, अरुण अशेष। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के बाद अब उसके विश्लेषण का दौर शुरू है। दूसरे चरण के मतदान का खास पहलू यह है कि दोनों प्रमुख गठबंधनों राजग और महागठबंदन ने पहले चरण में हुई चूक की भरपाई की कोशिश की। कितने कामयाब हुए, इसका सही हिसाब परिणाम के बाद ही लग पाएगा। पहले चरण में दोनों गठबंधन एनडीए और महागठबंधन ने नोट किया कि उनके बीच से निकल कर बागी बने उम्मीदवार अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं। दूसरे चरण में ऐसे उम्मीदवारों के असर को कम करने के उपाय किए गए। वोटरों को समझाया गया कि इन्हें वोट देने का कोई मतलब नहीं है। आपका वोट बेकार चला जाएगा। बहुत मामूली तौर पर ही सही, लेकिन इसका असर पड़ा। नेताओं ने कड़ी लड़ाई भांपकर एक-एक वोट सहेजने की कोशिश की। समर्थक भी इस चुनाव के महत्व को समझ गए हैं। आर-पार की लड़ाई देख दोनों ओर से आक्रामक वोटिंग का ट्रेंड दिखा।
दलों का उम्मीद: अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पाएंगे बागी
उम्मीद की जानी चाहिए कि विभिन्न दलों के बागी अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पाए होंगे। हां, उनकी बात अलग है जो किसी दल से गहरे जुड़े रहे। क्षेत्र में असर है। टिकट मिलने की संभावना भी थी। इस तरह के मजबूत दोनों गठबंधन में हैं। कुछ सीटों पर उनके दावे का जनता ने सम्मान भी किया। वोटरों का उत्साह पहले चरण की तुलना में अधिक था। अच्छी बात यह कि वे भाषण देने वाले नेताओं की तरह उत्तेजित नहीं थे। वोट देने से रोकने की कोशिश नहीं हुई। मर्जी की पार्टी को वोट दिलाने के लिए लोग आपस में उलझे भी नहीं। यही कारण है कि मतदान शांतिपूर्ण रहा।
बीच चुनाव हो गया चूक का अहसास, किए सुधार
देर से ही सही दोनों गठबंधनों को अहसास हो रहा है कि गठबंधन से जुड़ी नीति में कुछ चूक रह गई है। मसलन, गठबंधन के दलों के बीच सीटों का बंटवारा और उम्मीदवारों के चयन में कुछ और बेहतर करने की गुंजाइश थी। सभी दलों ने जीतने की संभावना से अधिक सीटों की संख्या पर जोर दिया। कुछ दलों को दबाव में सीटें तो दे दी गई, मगर वे ढंग के उम्मीदवार नहीं खोज पाए। एनडीए की कतारों में मतदान के दिन इस बात की चर्चा हुई कि कुछ सीटों का त्याग कर संभावनाओं को बेहतर बनाया जा सकता था। एक बात और-वोटरों ने आंख मूंद कर पार्टी के थोपे उम्मीदवार को स्वीकार नहीं कर लिया। जिन सिटिंग विधायकों के खिलाफ नाराजगी थी, वह टिकट दे देने से कम नहीं हुई। समर्थकों ने अपने ढंग से भूल सुधार भी किया।
गठबंधनो ने नहीं किया मूल मुद्दों में बदलाव
पहले और दूसरे चरण के मूल मुद्दे में अधिक फर्क नहीं था। एनडीए विकास के साथ-साथ लालू-राबड़ी शासन के 15 वर्षों को याद करने की अपील पहले चरण से कर रहा है। दूसरे चरण में इस मुद्दे पर अधिक जोर दिया गया। कहीं-कहीं तो विकास से अधिक कथित जंगलराज की भी चर्चा हुई। बेरोजगारी के सवाल पर युवाओं को गोलबंद करने की कोशिश दोनों ओर से हुई। 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा को असंभव बताने के लिए दूसरे चरण में तर्कों का सहारा लिया गया। बताया गया कि कुछ अन्य मशहूर चुनावी जुमलों की तरह ही है, जो कभी पूरे नहीं होते। युवाओं ने मतदान में हिस्सा लिया। फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने नौकरी के वादे को जुमला समझा या हकीकत। युवाओं की भागीदारी बता रही है कि वह फैसले में शामिल होने को उत्सुक थे।