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Bihar Election 2020: चंदे के 250 रुपये से किया नामांकन और जीत गए चुनाव-जानें कैसे

पहले चुनाव में बाहुबल और धनबल इतना हावी नहीं था। अब विधानसभा चुनाव में बड़ा अंतर आ गया है। 1977 में जनता पार्टी से छपरा विधानसभा के टिकट पर चुनाव लड़े मिथिलेश सिंह ने चंदे में मिले मात्र 250 रुपये से चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर ली।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 04:35 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2020 04:35 PM (IST)
जनता दल युनाइटेड नेता व पूर्व मंत्री मिथिलेश कुमार सिंह।

नीरज कुमार, पटना। पहले और अब के चुनाव में काफी अंतर है। पहले बाहुबल और धनबल इतना हावी नहीं था, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। पूर्व मंत्री मिथिलेश कुमार सिंह पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, 1977 में जनता पार्टी से छपरा विधानसभा के लिए टिकट मिला। उस समय मेरे पास पैसे नहीं थे। टिकट की घोषणा होने के बाद मैं भारत साधु समाज के महामंत्री स्वामी हरिनारायणानंद से मिलने गया। उन्होंने आशीर्वाद एवं चंदा स्वरूप 250 रुपये दिए। उस समय नामांकन के लिए 250 रुपये लगता था। उन्हीं के पैसे से नामांकन किया।

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न तो एक रुपये चंदा लिया, न ही किसी को एक रुपये दिया

मिथिलेश बताते हैं, इसके बाद मैंने किसी से न तो एक रुपये चंदा लिया, न ही किसी को एक रुपये दिया। कितना खर्च हुआ यह भी आज तक पता नहीं चला। सारा खर्च कार्यकर्ताओं ने किया। गांवों में जाने पर लोग अपने स्तर से व्यवस्था करते थे। पोस्टर-बैनर पार्टी की ओर से मिल गया था। छात्र नेता होने के कारण लोग जानते थे। जिस गांव में गया, लोग खाना खिला देते थे। चुनाव के दौरान लोगों में गजब का उत्साह था। कब सुबह हुई और कब शाम, पता ही नहीं चलता था। एक गांव से निकले नहीं कि दूसरे गांव के लोग अपने यहां जाने के लिए तैयार रहते थे। नेता होने के कारण कोशिश होती थी कि कोई निराश नहीं हो। दिनभर गांवों में प्रचार और रात में कार्यकर्ताओं के साथ बैठक। प्रचार से ही लगने लगा था कि जीत सुनिश्चित है। 

नेताओं पर जनता का भरोसा 

पहले नेताओं पर जनता का काफी भरोसा था। पहले नेताओं पर लोगों का इस तरह भरोसा था, एक बार मुंबई में संगठन कांग्रेस का सम्मेलन चल रहा था। बिहार से काफी संख्या में युवा नेता सम्मेलन में भाग लेने गए थे। उस समय मुंबई के प्रसिद्ध नेता एवं संगठन कांग्रेस के कोषाध्यक्ष एसके पाटिल से मिलने का समय लिया। उन्होंने मात्र तीन मिनट मिलने का समय दिया। हमलोग उनसे मिलने गए तो ढाई मिनट निकल चुका था। उन्होंने घड़ी दिखाई और कहा आधा मिनट है बाकी है, बोलो। हमलोग सन्न रह गए। कुछ बोल पाते तब तक वे कमरे से निकल गए। हमलोगों को काफी निराशा हुई। उस समय उनके एक इशारे पर पार्टी में चंदों की भरमार हो जाती थी। हमलोग लौटते समय रिक्शा लेकर एसके पाटिल की शिकायत करते हुए वापस आ रहे थे। अभी कुछ ही कदम आगे बढ़े थे कि अचानक रिक्शा रुक गया। मैंने रिक्शा चालक से पूछा, क्या हुआ? उसने जवाब दिया, आप लोग हमारे नेता की शिकायत कर रहे हैं। आपलोग रिक्शा से उतर जाइए। उसने कहा, आपलोग उन्हें नहीं जानते हैं, उनकी ईमानदारी के बारे में पूरा महाराष्ट्र जानता है। उनका एक बेटा फैक्ट्री में लेबर का काम करता है, जबकि दूसरा कंपनी में क्लर्क है। ऐसे व्यक्ति की शिकायत भला कोई नहीं सुन सकता। इस तरह था पहले नेताओं पर लोगों का भरोसा। हमलोग रिक्शा चालक की बात सुनकर दंग रह गए। आजकल नेताओं पर लोगों का भरोसा दिनोंदिन टूटता जा रहा है। पता नहीं कब इस पर विराम लगेगा।


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