बिहार विधानसभा चुनाव 2020 : तब अलग-अलग उम्मीदवारों के लिए होते थे अलग-अलग बक्से, बैलगाड़ी से पहुंचते थे मतदानकर्मी
1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में वोटिंग कमपार्टमेंट में उम्मीदवारों की संख्या के अनुपात में बक्से रखे जाते थे। बक्से पर उम्मीदवारों का नाम व चुनाव चिन्ह अंकित हुआ करता था। कई गांवों को मिलाकर एक मतदान केंद्र हुआ करता था।
कटिहार [विनोद कुमार राय]। चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है। वर्ष 1952 से लोकतंत्र के महापर्व एवं जनप्रतिनिधियों के निर्वाचन को लेकर प्रत्येक पांच वर्ष पर मतदान की प्रक्रिया का सिलसिला शुरू हुआ। प्रखंड के अरिहाना निवासी सेवानिवृत शिक्षक विजय कांत झा बताते है कि चुनाव प्रक्रिया में पिछले सात दशक में हर चुनाव में काफी बदलाव आया है।
मताधिकार के महत्व को लेकर जागरूक होने के कारण आमलोगों की भागीदारी चुनाव में बढ़ रही है। उन्होने बताया कि 1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में वोङ्क्षटग कमपार्टमेंट में उम्मीदवारों की संख्या के अनुपात में बक्से रखे जाते थे। बक्से पर उम्मीदवारों का नाम व चुनाव चिन्ह अंकित हुआ करता था। कई गांवों को मिलाकर एक मतदान केंद्र हुआ करता था। लेकिन मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की लंबी कतार देखाने को नहीं मिलती थी। सुरक्षा की भी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं रहती थी। संसाधन के अभाव में एक ही विधानसभा क्षेत्र में अलग-अलग दिन मतदान की तिथि निर्धारित होती थी। मतदानकर्मी बैलगाड़ी से बूथ तक पहु्ंचते थे। उन्होंने बताया कि शिक्षक बनने के बाद उन्होनें 1976 में मतदानकर्मी के रूप में प्रतिनियुक्त हुए थे। संसाधनों की कमी और चुनाव आयोग के दिशा निर्देश के अनुरूप निर्वाचन प्रक्रिया संपन्न कराना किसी चुनौती से कम नहीं होता था। नदी व खेत को पार कर पगडंडी से मतदानकर्मी मतदान केंद्रों तक पहुंचते थे। मतदान के बाद जिला मुख्यालय में बनाए गए वज्रगृृह में मतदान पेटी को जमा कराया जाता था। उस वक्त वोङ्क्षटग को लेकर मतदाताओं में भी जागरूकता का अभाव था। समय बदलने के साथ चुनाव आयोग भी सशक्त बना है। चुनाव संपन्न कराने को लेकर संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है। इवीएम, वीवीपैट जैसे आधुनिक मशीनो का उपयोग मतदान के लिए किया जा रहा है। लोगों में मतदान के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है। जिसका साकारात्मक प्रभाव मतदान प्रतिशत पर हुआ है। लोकतंत्र में वोट के महत्व को लोग समझ रहे हैं।