Bihar Assembly Elections 2020: सात दशक पूर्व कोसी क्षेत्र में साइकिल से आते थे प्रत्याशी, भोंपू से होता था प्रचार
103 वर्षीय रामसुंदर यादव बताते हैं कि 1957 में सहरसा विधानसभा का गठन हुआ था। उस समय यह इलाका सहरसा विधानसभा में पड़ता था। रिहायशी व्यवस्था से कोसों दूर प्रत्याशी तक साइकिल से और बड़े नेता बैलगाड़ी से आते थे। साइकिल में लगे भोंपू से प्रचार किया जाता था।
सहरसा, जेएनएन। पहले वो समय था जब आपस में ना कोई बैर रहता था और ना कोई कटुता रहती थी। रिहायशी व्यवस्था से कोसों दूर प्रत्याशी तक साइकिल से और बड़े नेता बैलगाड़ी से आते थे। साइकिल में लगे भोंपू से प्रचार किया जाता था। लेकिन अब तो समय ही बदल गया है। बड़ी-बड़ी गाडिय़ां, जात-पात, वैमनस्यता हावी हो गया है।
महिषी विधानसभा क्षेत्र के ओकाही पंचायत स्थित दुम्मा निवासी 103 वर्षीय रामसुंदर यादव ने बताया कि 1957 में सहरसा विधानसभा का गठन हुआ था। उस समय यह इलाका सहरसा विधानसभा में पड़ता था। कांग्रेस ने सत्तरकटैया प्रखंड के पटोरी निवासी विशेश्वरी देवी को अपना उम्मीदवार बनाया। तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के युवा नेता रमेश झा को पराजित कर जीत दर्ज कराई थी।उस वक्त वे पैदल ही गांव में घुमा करती थी। उन्होंने बताया कि कई मौकों पर सभी दलों के उम्मीदवार एक ही चौपाल से अपनी बात जनता के सामने रखते थे। प्रत्याशियों में दलीय प्रतिबद्धता अलग - अलग होने के बावजूद राजनीतिक व वैचारिक मर्यादा का सभी ध्यान रखते थे। तब चुनाव में ज्यादा हाय-तौबा नहीं था। प्रचार के लिए गाजे - बाजे की व्यवस्था कहां थी। भोंपू से होता था प्रचार।
बड़े नेता बैलगाड़ी से आते थे आज उडऩखटोला से आते हैं
उन्होंने बताया कि बड़े नेता बैलगाड़ी से आते थे आज उडऩखटोला से आते हैं। पहले उम्मीदवार एक साधारण लोग हुआ करते थे। सभा आदि का आयोजन किसी के दरवाजे पर होता था। चुनावी खर्च काफी कम था। उम्मीदवार का लिबास भी काफी साधारण था और बोलने और भाषण का लहजा भी साधारण था। राजनीतिक दल भी उस समय सही नेता को चुनते थे। तभी तो नेताजी को गांव में काफी इज्जत और सम्मान मिलता था। उसकी बात सभी मानते थे अब यह सब कहां अब ना तो उम्मीदवार को देखा जाता है ना ही उनकी योग्यता को।