Bihar Assembly Elections 2020: मंदार और कोकून के रास्ते खुलेगा बांका के विकास का रास्ता
बांका का समग्र विकास अब तक नहीं हो सका है। कटोरिया इलाके की बड़ी आबादी परदेश पलायन को मजबूर है। जंगल के ढलान वाले इलाके में थोड़ी-बहुत खेती हो जाती है। इससे परिवार का साल भर जुगाड़ संभव नहीं है। युवाओं को घर-परिवार छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ता है।
बांका, जेएनएन। भौगोलिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा कटोरिया विधानसभा सीट 2010 से फिर जनजाति आबादी के लिए सुरक्षित है। इस सीट पर पांच आदिवासी चेहरों को छह बार प्रतिनिधित्व का मौका मिल चुका है।
कटोरिया के साथ बौंसी प्रखंड को मिलाकर इस सीट का निर्माण हुआ है। यह बिहार की सर्वाधिक आदिवासी आबादी वाली सीटों में एक है। इस सीट पर कांग्रेस, स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ, जनता पार्टी, जनता दल, राजद, लोजपा का कब्जा रह चुका है। इस सब के बाजवूद इस इलाके का संकट दूर नहीं हुआ। खेत बंजर है और हाथों को कोई काम नहीं है। कटोरिया इलाके की सबसे बड़ी आबादी परदेश पलायन को मजबूर है।
पहाड़ी व जंगली भूमि बना अभिशाप
इलाके का अधिकांश भौगोलिक क्षेत्र पहाड़ और जंगल वाला है। इस कारण खेती सीमित है। जंगल के ढलान वाले इलाके में थोड़ी-बहुत खेती हो जाती है। इससे परिवार का साल भर जुगाड़ संभव नहीं है। रोजी-रोटी के लिए कोई उद्योग धंधा भी नहीं है। ऐसे में अधिकांश परिवार के युवाओं को काम के लिए परदेश की शरण में जाना पड़ता है। कोलकाता, ङ्क्षसकदराबाद से दिल्ली तक इलाके के कामगार भरे पड़े हैँ। परिवार का पेट भरने के लिए युवाओं को घर-परिवार छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ता है।
मुद्दा-दो
डेढ़ दशक से लटका रोपवे का निर्माण
बांका की बड़ी पहचान मंदार पर्वत इसी इलाके में है। मंदार पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। इस पर्वत पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए डेढ़ दशक से रोप-वे निर्माण की दिशा में काम चल रहा है। छह साल पूर्व इसका काम शुरु हुआ। पिछले दो साल से हर बार इसे अगले बौंसी मेला में चालू कर देने की घोषणा होती है। लेकिन रोपवे है कि चालू होता ही नहीं है। आगे भी यह कब चालू होगा, कहना मुश्किल है। मंदार पर पहले भी कुछ काम हुआ है। रोपवे के साथ इस पर पर्यटन विकास के लिए कई और सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है।
कोकून उत्पादन के काम को देना होगा विस्तार
पहाड़ी जमीन पर लगे अर्जुन वनों पर डेढ़ दो दशक से रेशम धागा के लिए कोकून उत्पादन का काम शुरु हुआ है। पिछले दो साल से इसमें गति भी आई है। जररूत है कि इससे हर किसानों से जोडऩे की। इसके लिए बंजर भूमि पर बड़ी मात्रा में अर्जुन वन लगाकर रेशम कीट पालन को बढ़ाना देने की दरकार है। पिछले कार्यकाल में दो बार खुद मुख्यमंत्री कलस्टर बना कर इसके बढ़ावा की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन काम इतना तेजी से नहीं बढ़ा कि लोगों को इससे लाभ हो सके। सिस्टम किसानों के तैयार कोकून की बिक्री का भी सही इंतजाम नहीं कर सका। इससे लाभयदायक बनाने पर इलाके का पलायन निश्चित रूप से कम होगा।
कई गांव सड़क से अब भी दूर
सुंदर सड़क इस इलाके की बड़ी समस्या रही है। अभी कटोरिया-देवघर मुख्य सड़क भी लोगों की परेशानी का कारण बना हुआ है। जयपुर इलाके का कलाहजारी, कोकरीतरी, तसरिया, हजारी जैसा गांव अब भी पगडंडी वाला है। आदर्श ग्राम कोल्हासार के कई टोलों में सड़क नहीं बन सकी है। जिन गांवों में सड़कें बनीं, वह भी टूटकर खराब हो गई है। मुख्य सड़क को अविलंब ठीक किया जाना जरूरी हो गया है।
बौँसी में खरीद कर पानी, जोर गांवों का सहारा
सरकार हर गांव तक नल का जल पहुंचाने का दावा कर रही है। लेकिन बौंसी बाजार का अधिकांश घर सालों भर खरीद कर पानी पी रहा है। कुछ चुङ्क्षनदा चापानल का बाजार की गलियों में पानी बिकता है। कुछ लोग डब्बाबंद पानी पीते हैं। ग्रामीण इलाकों में अब भी पेयजल के लिए जोर की निर्भरता खत्म नहीं हो सकी है। सुखनिया नदी में चुहाड़ी खोद अब भी रोज घर तक पानी पहुंच रहा है। जयपुर इलाके में भी पीने के पानी की समस्या बरकरार है। नल योजना कई गांवों तक नहीं पहुंची है, जहां पहुंची वहां की सप्लाई घटिया निर्माण की भेंट चढ़ गई है।