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Bihar Election 2020: वह दौर खत्म जब कहते थे- पार्टी का फैसला सिर-आंखों पर, अब तुरंत बदल रहे दल

Bihar Election 2020 समय के साथ-साथ भारतीय राजनीति में भी बदलाव आया है। पहले नेतागण पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर भी पार्टी की साख थामे रखते थे। पर अब वो बात नहीं रही। टिकट नहीं मिलने पर बड़े नेताओं का भी पार्टी से मोह भंग हो रहा है।

By Bihar News NetworkEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 01:04 PM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 01:04 PM (IST)
विधानसभा चुनाव में सक्रिय विभिन्‍न दलों के नेता। प्रतीकात्‍मक कार्टून।

राज्य ब्यूरो, पटना : राजनीति का वह दौर खत्म हो गया, जब बेटिकट हुए लोग कह देते थे... पार्टी का फैसला सिर आंखों पर। पार्टी ने जिसे उम्मीदवार बनाया है, हम उसे जीत दिलाएंगे। एक से एक तपस्वी का तप भंग हो रहा है। खुद को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद से प्रभावित रामदेव महतो बुरी तरह नाराज हैं। वे नारा लगा रहे हैं- सच कहना अगर बगावत है तो...। महतो मधुबनी से भाजपा टिकट पर कई बार विधायक बने। इसबार यह सीट वीआइपी के कोटे में गई। भाजपा के ही एक अन्य नेता सुमन महासेठ वीआइपी के उम्मीदवार होंगे। महतो की माने तो पैसे के बल पर खेल हो गया है। वे बर्दाश्त नहीं करेंगे। आसार उनके निर्दलीय चुनाव लडऩे के हैं।

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विक्रम कुंवर का राजद से मोह भंग, जाप का थामा दामन

जेपी आन्दोलन के जरिए राजनीति में आए पूर्व विधायक विक्रम कुंवर कुछ दिन पहले तक राजद में थे। टिकट मिलने का भरोसा दिया गया था। यह भरोसा टूटा। वे पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी में चले गए। इससे पहले उन्होंने भाजपा की भी सेवा की थी। लालगंज के पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला का जदयू से पुराना लगाव रहा है। वे खुद विधायक बने। उनकी पत्नी विधायक बनीं। जदयू ने 2009 में मुन्ना शुक्ला को वैशाली से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया था। हार गए। फिर भी पार्टी में बने रहे। रविवार को पता चला कि लालगंज से जदयू उन्हें उम्मीदवार नहीं बना सकता है। खबर मिलते ही निर्दलीय चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी।

वक्त के साथ नई पार्टी का थामते रहे दामन

मुजफ्फरपुर जिला के साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र की उम्मीदवारी दिलचस्प है। राजू कुमार सिंह फरवरी 2005 में लोजपा टिकट पर चुनाव जीते। उसी साल अक्टूबर में हुए चुनाव में वे जदयू के उम्मीदवार बने। 2010 में राजू जदयू के टिकट पर ही चुनाव लड़े। 2015 में भाजपा के उम्मीदवार बन गए। 2020 में वीआइपी के टिकट की आस है। भाजपा और वीआइपी के बीच तालमेल है। राजू कुमार सिंह को टिकट लेने में परेशानी हो रही है। वीआइपी उनके साथ आम उम्मीदवारों जैसा व्यवहार कर रही है।

सत्येंद्र ने तीन दिन पहले किया दल परिवर्तन

सत्येंद्र सिंह के लिए लोजपा पहली और अंतिम पार्टी थी। 2015 में वे फतुहा विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के उम्मीदवार बने। 2020 में यह क्षेत्र भाजपा के कोटे में आया। सत्येंद्र ने तीन दिन पहले दल परिवर्तन किया। रविवार को फतुहा से उम्मीदवार बना दिए गए। उजियारपुर से भाजपा के उम्मीदवार बनाए गए शील कुमार राय कुछ दिनों पहले तक दूसरे दल में थे। पार्टी की सदस्यता के कुछ दिन बाद सिंबल मिल गया। वैसे, वे गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के नियमित संपर्क में रहे हैं।

पार्टियों ने भी दिया बढ़ावा

उम्मीदवार उछल कूद कर रहे हैं। शायद इसलिए भी कि राजनीतिक दल उन्हें मैदान उपलब्ध करा रहे हैं। लोजपा, वीआइपी, रालोसपा के अलावा कई अन्य दलों ने सभी उम्मीदवारों के लिए दरवाजा खोल दिया है। इन दलों के नेता उम्मीदवारों से दलीय प्रतिबद्धता के बारे में कतई नहीं पूछते हैं। लोजपा के पास फिर भी अपने उम्मीदवारों की कमी नहीं है। लेकिन, एनडीए से 11 सीट लेने के बाद वीआइपी की उम्मीदवारों की खोज अभी पूरी नहीं हुई है। हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा को उम्मीदवार खोजने में दिक्कत नहीं हुई। उसके हिस्से में साते सीटें आई हैं। तीन उम्मीदवार घर में ही मिल गए हैं।


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