Bihar Assembly Election 2020: कोसी तटबंध के अंदर लाखों की आबादी पर स्वास्थ्य सुविधाएं नदारद
1962 में कोसी तटबंध का निर्माण होने के बाद से अब तक यहां के लोगों को अस्पताल नसीब नहीं हो पाया है। यहां अंदर लाखों की आबादी बसी है लेकिन यह ऐसा दुरुह क्षेत्र है जहां जीवन बदतर है।
सुपौल, जेएनएन। कोसी तटबंध के अंदर लाखों की आबादी बसी है लेकिन यह ऐसा दुरुह क्षेत्र है जहां जीवन बदतर है। यह विडंबना ही है कि चुनाव के समय यहां के लोगों को आश्वासनों का झुनझुना थमा वोट तो ले लेते हैं और चुनाव पश्चात इनके स्वास्थ्य की चिता नहीं करते। 1962 में तटबंध का निर्माण होने के बाद से अब तक यहां के लोगों को अस्पताल नसीब नहीं हो पाया है। जब यहां का कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है और तत्क्षण इलाज की जरूरत पड़ती है तो उसे तटबंध के बाहर ही लाना पड़ता है। ऐसे में गंभीर मरीजों की मौत अक्सर रास्ते में ही हो जाती है। कई बार यहां के लोगों ने अस्पताल की मांग तो उठाई लेकिन उनकी आवाज अनसुनी कर दी गई।
15 किमी दूरी तय कर पहुंचते अस्पताल
कोसी नदी से घिरे दो दर्जन से अधिक गांवों के लोग आज भी अस्पताल के लिए तरस रहे हैं। स्थिति यह है कि किसी के बीमार पडऩे पर लोग मरीज को कंधे पर लाद कर या खाट पर लेकर 10 से 15 किलोमीटर की दूरी तय कर अस्पताल पहुंचाते हैं।
औरही, बनैनियां, बलथरबा, कटैया, भुलिया, ढोली, झखराही, सियानी, कबियाही, कड़हरी, बाजदारी, लौकहा-पलार, कोढ़ली पलार, उग्रीपट्टी आदि गांवों की यह स्थिति है। यहां पोलियो ड्रॉप पिलाने के अलावा बच्चों को डीपीटी, खसरा आदि के टीके भी नहीं लग पाते। किसी बच्चे के बीमार होने, सर्पदंश की घटना या फिर अन्य रोगों से ग्रसित होने पर लोग पहले ओझा-गुनी के पास जाते हैं। इससे ठीक नहीं होने पर ग्रामीण चिकित्सकों के पास और स्थिति काफी बिगड़ जाने के बाद खाट पर लादकर अस्पताल पहुंचाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इलाके की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि चुनाव के बाद कोई राजनेता इधर झांकना भी मुनासिब नहीं समझते।
एंबुलेंस की जगह चलती खाट
एंबुलेंस की जगह यहां खाट चलती है। तटबंध के अंदर गुजर-बसर करने वाले लोगों के लिए एक कड़वी सच्चाई है कि जब कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है तो उसे इलाज के लिए तटबंध के बाहर स्थित अस्पताल तक लाने के लिए खाट का ही सहारा होता है। यहां के लोग मरीज को खाट पर लाद चार व्यक्ति कंधे पर उठा अस्पताल की ओर चल देते हैं। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य सेवा की दिशा में तटबंध के अंदर के भू-भाग की क्या स्थिति है।
नहीं हो पाता समुचित इलाज
कोसी तटबंध के अंदर बसने वाले लोगों का बाढ़ से चोली-दामन का साथ रहा है। यहां के लोगों को लगभग हर साल बाढ़ की मार झेलनी पड़ती है। ये बाढ़ पहले तबाही और फिर बाद में बीमारी लाती है। ये वो बीमारियां होती है जिसका समुचित इलाज अस्पताल की कमी के चलते नहीं हो पाता है और अक्सर जानलेवा बन जाता है। मालूम हो कि बाढ़ के दौरान तटबंध के अंदर बसे लोगों को तटबंध या काम चलाऊ शरणस्थलों पर शरण लेनी पड़ती है। जिनमें लोगों को अपने मवेशियों के साथ रहना पड़ता है। स्वास्थ्य और सफाई संबंधी समुचित सुविधाओं के अभाव में बाढ़ पीडि़तों को अमानवीय दशा में तब तक रहने को मजबूर होना पड़ता है जब तक बाढ़ रहती है। ऐसे में लोगों को कई बीमारियों से जूझना पड़ता है।