Bihar Assembly Election 2020: सुपौल के इन अस्पतालों में केवल होती है मरहम-पट्टी, संसाधन के अभाव में रेफर करना डॉक्टर की मजबूरी
सुपौल के पिपरा विधानसभा में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। यहां सबसे अधिक सिंचाई और स्वास्थ्य को लेकर लोग परेशान हैं। यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरहम पट्टी के अलावा रेफर को ही अपना मूल धर्म माना गया। ग्रामीण इलाकों के उपस्वास्थ्य केंद्र महज अपने का बोर्ड लटकाए रहे।
सुपौल, जेएनएन। Bihar Assembly Election 2020: पिपरा विधानसभा क्षेत्र 2010 में परिसीमन के बाद अपने स्वरूप में आया। इससे पूर्व इसका कुछ भाग त्रिवेणीगंज विधानसभा क्षेत्र तथा कुछ किसनपुर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था। 2010 के चुनाव में यहां से जदयू की सुजाता देवी विधायक चुनी गई थी। 2015 के चुनाव में इस पर राजद का कब्जा हो गया तथा यदुवंश कुमार यादव विधायक चुने गए।
विकास की जो सामान्य प्रक्रिया है वह यहां भी देखने को मिली लेकिन स्वास्थ्य सुविधा के मामले में यह क्षेत्र भी बिल्कुल पिछड़ता हुआ ही दिखा। यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरहम पट्टी के अलावा रेफर को ही अपना मूल धर्म माना गया। ग्रामीण इलाकों के उपस्वास्थ्य केंद्र महज अपने का बोर्ड लटकाए रहे। इसकी आठ पंचायतें हर साल कोसी का दंश झेलती रही। पिपरा बाजार नाले के अभाव में जलजमाव से कराहता रह गया। शिक्षा के मामले में कोई परिवर्तन नहीं हो सका और उच्च शिक्षा के लिए बाहर का ही भरोसा कायम रहा।
स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कभी प्रतिनिधियों की संवेदनशीलता नहीं झलकी। व्यवस्था पहले से बदतर होती चली गई। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पिपरा, किसनपुर की स्थिति लगभग एक जैसी। पिपरा प्रखंड के कटैया उपस्वास्थ्य केंद्र में सरकार ने अस्पताल भवन तो बना दिया लेकिन सुविधाएं नदारद। चिकित्सक के बिना स्वास्थ्य केंद्र उद्देश्यहीन साबित हो रहा है। सामान्य उपचार के लिए भी लोगों को दस किमी दूर सदर अस्पताल ही जाना पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में बना उपस्वास्थ्य केंद्र तो बस नाम का है। वर्षों पूर्व तो यहां कुछ-कुछ इलाज भी होता था लेकिन फिलहाल टीकाकरण अथवा किसी अवसर पर ही कोई स्वास्थ्यकर्मी नजर आते हैं।
आठ पंचायत की आबादी हर वर्ष झेलती है बाढ
विधानसभा क्षेत्र की आठ पंचायतें कोसी तटबंध के अंदर पड़ जाती है। इस आबादी की हर वर्ष बाढ़ की त्रासदी झेलना नियति है। ऐसा लगता है कि जैसे प्रतिनिधि और सरकार ने मान लिया है कि यह तो होना ही है। इसलिए बस राहत के घूंट मात्र पिलाए जाते हैं कभी इसके स्थाई निदान के क्षेत्र में कोई पहल नहीं होती। विकास की रूपरेखा तैयार करते वक्त ये कोसी नदी से प्रभावित और बाढ़ के अंदर के लोग माने जाते हैं। लेकिन चुनाव के वक्त इनकी बराबर की अहमियत होती है।
जलजमाव से बजबजाता पिपरा बााजार
पिपरा बाजार की एक बड़ी समस्या बन गई है जलजमाव। ये नाले के अभाव में और भी बढ़ता जा रहा है। संपूर्ण बाजार क्षेत्र में नाला नहीं रहने के कारण पानी सड़कों पर ही बहा करती है। बीच चौराहे पर सड़कें क्षतिग्रस्त हो चुकी है और साल के अधिकांश समय जलजमाव बना रहता है। जबकि यह बााजार दो हाइवे का क्राङ्क्षसग स्थल है। एनएच 107 और 327 ई एक दूसरे को काटती यहां से गुजरती है। नतीजा है जलजमाव के कारण अमूमन कोई न कोई गाड़ी गड्ढे में फंस जाती है और जाम की स्थित उत्पन्न हो जाती है।
शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ापन बरकरार
शिक्षा के मामले में इस क्षेत्र में आज तक कोई विकास का कार्य नहीं हो सका है। पूर्व से ही जो शिक्षण संस्थानें चली आ रही है वहीं चल रही है। यानी दसवीं पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए बाहर का ही रास्ता देखना पड़ता है। हालांकि सरकार की पॉलिसी के तहत उच्च विद्यालयों में प्लस टू की पढ़ाई का आदेश जारी है लेकिन ये विद्यालय अभी छात्रों के लिए व्यवस्थित नहीं हो पाए हैं। इसके अलावा उच्च शिक्षा के लिए कोई संस्थान हो इसके अब तक कोई प्रयास नहीं किया गया।
हर है लेकिन खेतों तक नहीं पहुंच पाता पानी
विधानसभा क्षेत्र में खेतों तक ङ्क्षसचाई के लिए नहरों की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। लेकिन किसानों के खेतों तक पानी पहुंचे इसके लिए कोई संवेदनशील अथवा जवाबदेह नहीं दिखाई देता। बड़ी नहर में पानी आ जाने के बावजूद खेतों तक यह पानी नहीं पहुंच पाता है। खेतों तक पहुंचाने के लिए जो चैनल बने हैं अथवा वितरणी है वह या तो क्षतिग्रस्त है या फिर जंगलात से भरा-पड़ा। नतीजा होता है कि किसान जो ङ्क्षसचाई के लिए सरकारी व्यवस्था पर आश्रित होते हैं उन्हें इस सुविधा से वंचित रह जाना पड़ता है।