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Bihar Assembly Election 2020 : वर्चुअल दुनिया से निकलकर आना ही पड़ा धरातल पर

Bihar Assembly Election 2020 पूर्व बिहार की 16 सीटों पर 28 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। 26 अक्टूबर को चुनाव प्रचार का शोर थम जाएगा। कोरोनाकाल के कारण आसमानी और जमीनी शोर बहुत अधिक नहीं है। शुरुआती दौर में वर्चुअल प्रचार को बहुत प्रचारित करने की कोशिश की गई।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 09:17 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 09:17 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020 : वर्चुअल दुनिया से निकलकर आना ही पड़ा धरातल पर
वर्चुअल दुनिया से सभी को निकलकर वास्तविक धरातल पर आना पड़ रहा है।

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। Bihar Assembly Election 2020 : बिहार के चुनावी महासमर की पहली लड़ाई (प्रथम चरण के मतदान) को महज आठ दिन शेष हैं। पूर्व बिहार की रणभूमि पूरी तरह से तैयार हो चुकी है। सभी दलों के चुनावी योद्धा मैदान में कूद चुके हैं। उनके पक्ष में बड़े-बड़े योद्धा हवाई मार्ग से आ रहे हैं।

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पूर्व बिहार की 16 सीटों पर 28 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। 26 अक्टूबर को चुनाव प्रचार का शोर थम जाएगा। हालांकि इसबार कोरोनाकाल होने के कारण आसमानी और जमीनी शोर बहुत अधिक नहीं है। शुरुआती दौर में वर्चुअल प्रचार को बहुत प्रचारित करने की कोशिश की गई, लेकिन यह एक्चुअल प्रचार का तोड़ नहीं बन पाई। इसके बाद राजनीतिक दलों की रणनीति बदल गई है। वर्चुअल दुनिया से सभी को निकलकर वास्तविक धरातल पर आना पड़ रहा है। वास्तविकता में चुनावी राजनीति को अपने उसी पुराने तरकीब को आजमाने को बाध्य होना पड़ा है।

भाजपा का तीन स्तर पर दिखने लगा प्रचार

भाजपा की ओर से तीन स्तर पर प्रचार कार्य दिख रहा है। प्रत्याशी और कार्यकर्ता अधिक से अधिक जनसंपर्क करने में जुटे हैं। बड़े नेताओं की जनसभाएं कराई जा रही है। भागलपुर में 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम तय है।

इसके दो दिन पहले 21 अक्टूबर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भी आएंगे। भाजपा नेताओं के मुताबिक चुनावी शोर थमने के पहले अब लगभग रोज ही कोई न कोई बड़े नेता आते रहेंगे। इसके अलावे कुनबाई आधार पर वोटरों को सेट करने के लिए दूसरे राज्यों के भी नेताओं को लगाया जा रहा है। अभी शुरुआती दौर में पार्टी ने झारखंड के अपने विधायकों को दायित्व देकर भेज दिया है। उदाहरण के तौर पर कहलगांव विधानसभा की बात करें, झारखंड के कोडरमा की विधायक नीरा यादव और गिरिडीह के विधायक प्रो. जयप्रकाश वर्मा यहां कैंप कर रहे हैं। प्रत्यक्ष तौर पर ये जनसंपर्क कर रहे हैं, पर इनका फोकस एरिया स्वजातीय इलाका है।

इस चुनाव में भाजपा की सहयोगी जदयू की ओर से स्वभाविक तौर पर प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। वे इस चुनाव में भी एनडीए का चेहरा हैं। वर्चुअल के साथ एक्चुअल एक्शन में भी आ गए हैं। बांका, मुंगेर, भागलपुर जिले में जदयू के हिस्से में आई सीटों पर उनकी सभाएं हो चुकी है। शेष जमीन पर भाजपा के प्रचार की तरह जदयू का प्रचार आक्रामक नहीं है। जमीनी स्तर पर जनसंपर्क और नीतीश का चेहरा ही प्रत्याशियों का संबल है।

अभी अपने प्रत्याशियों के दम पर लोजपा

जदयू की सीटों पर भाजपाई वोटरों को कन्फ्यूज कर चुकी लोजपा हर सीट पर अब तक अपने प्रत्याशियों के दम पर दिख रही है। लोजपा की ओर से वर्चुअल प्रचार की शुरुआती रफ्तार भी अन्य प्रमुख पार्टियों के मुकाबले कमतर मानी जा रही थी। दस दिन पहले पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान की मौत के बाद इसमें भी एक शून्यता आ गई है। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान रोजाना ट्वीट कर हलचल बनाए हुए हैं। उनके चुनाव प्रचार में उतरने के बाद सीन और थोड़ा स्पष्ट होगा। वैसे वे कह चुके हैं अधिकतर प्रचार सड़क माध्यम से करेंगे। यहां वे लड़ाई को और जमीनी बनाने की कोशिश करेंगे।

महागठबंधन का इकलौता चेहरा तेजस्वी

महागठबंधन में भी जनसंपर्क ही सबसे बड़ा प्रचार का हथियार बना हुआ है। महागठबंधन की ओर से अभी तक प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा तेजस्वी यादव ही हैं। भागलपुर प्रमंडल में गठबंधन की अधिकतर सीटों पर उनकी सभाएं हो चुकी है। यहां भी चर्चा कहलगांव की। चूंकि कहलगांव में भाजपा ने यादव समुदाय से प्रत्याशी दिया है सो कांग्रेस की ओर से तेजस्वी को विशेष रूप सन्हौला इलाके में सभा करने के लिए बुलाया गया। महागठबंधन में फिलहाल तेजस्वी से बड़ा चेहरा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी आदि का माना जा रहा है। वे भी 23 अक्टूबर से बिहार में चुनाव प्रचार में कूद रहे हैं।

वास्तविकता का अहसास नहीं करा पाया वर्चुअल प्रचार

विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के मुताबिक आभासी प्रचार वास्तविक जुड़ाव का अहसास नहीं करा पाया। यह शुद्ध रूप से प्रोफेशनल्स का खेल है। इसमें कार्यकर्ता से अधिक पेड कार्यकर्ता महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इसके अलावा सामने से अगर आप किसी नेता को सुनते हैं तो अधिक देर तक सुन सकते हैं। नेता भी जनता के हावभाव को देखकर बोलते हैं। वर्चुअल माध्यम से बड़े एलईडी स्क्रीन पर लोग दस मिनट भी सुन लें तो बहुत है। मोबाइल पर तो दो मिनट काफी हो जाता है। इसमें वास्तविकता को कोई अहसास ही नहीं होता। ऐसे में जमीनी कार्यकर्ता भी धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं।

नहीं हुआ है एनडीए का संयुक्त प्रचार

पूर्व बिहार में प्रथम चरण के चुनाव प्रचार पर नजर डालें तो एनडीए की ओर से भाजपा और जदयू का संयुक्त प्रचार अभी कहीं दिखा नहीं है। पूर्व के चुनावों में एनडीए के प्रचार पर नजर डालें तो विशेष रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की जोड़ी अक्सर साथ दिखती थी। हालांकि, मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री ने रविवार को बक्सर और आरा में संयुक्त चुनावी प्रचार की शुरुआत कर दी है। वैसे पूर्व बिहार में इस दफे अभी तक भाजपा की ओर से भूपेंद्र यादव, सुशील मोदी, नित्यानंद राय, मनोज तिवारी आदि नेता अलग-अलग जगहों पर आ चुके हैं, लेकिन उनके साथ जदयू का कोई बड़ा नेता नहीं था। ये अभी तक भाजपा के उम्मीदवार वाली सीटों पर ही आए हैं। ऐसे ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनावी सभा जदयू की सीटों पर रहा है। लेकिन महागठबंधन से तेजस्वी राजद की सहयोगी पार्टियों की सीटों पर भी प्रचार में उतर चुके हैं।


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