Bihar Assembly Election 2020: इसबार अलग है सीन, दलों में सीटों को लेकर आपस में मसला सुलझाने की होड़
इसबार सीटों के बंटवारे को लेकर मैदान में राजनीतिक विरोधियों से निपटने से पहले पार्टी को सहयोगियों के साथ लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इसी फेर में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन के घटक दल एक-दूसरे की हैसियत बताने में जुटे हैं।
अरुण अशेष, पटना। बिहार में इस बार विधानसभा चुनाव से पहले का सीन पिछले चुनावों के मुकाबले अलग है। दलों में होड़ मची है कि सीटों के बंटवारे के मसले पर पहले आपस में फैसला कर लिया जाए। ठेठ में समझिए तो फरिया लिया जाए। तब सत्ता के लिए असली लड़ाई होगी। इसी फेर में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन के घटक दल एक-दूसरे की हैसियत बताने में जुटे हैं। राजग में लोजपा अलग राह पकड़ ले रही। तेजस्वी बाकी दलों से और अन्य मित्र दल पहले उन्हीं से निबट लेना चाहते हैं।
2015 का अलग था हाल
2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 18 से अधिक जीती हुई सीटों की कुर्बानी देकर महागठबंधन का मजबूत ढांचा तैयार किया था। उस समय जदयू को छोड़ महागठबंधन के दोनों दलों (राजद और कांग्रेस) के पास खोने के लिए कुछ नहीं था। ताकत के तौर पर उसके पास राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद जैसे मध्यस्थ थे, जिनकी कोशिशों से चुनाव की अधिसूचना के जारी होने के पहले सीटों का विवाद सलट गया था। वह इस समय सशरीर हाजिर नहीं हैं, तो महागठबंधन स्वरूप नहीं ले रहा है।
तीसरे दल को जोड़ने की कोशिश
बहरहाल, राजग को देखें। राज्य में पुराना राजग भाजपा और जदयू के सहयोग से ही है। 2015 को छोड़ दें तो विधानसभा चुनाव में पहली बार किसी तीसरे दल को इसमें जोड़ने की कोशिश हुई है। एक पार्टी के नाते लोजपा की हैसियत और उसकी स्वतंत्र दावेदारी का सम्मान किया ही जाना चाहिए। लोजपा की धमकी और उसे मनाने के जतन में कुछ और चीजें देखी जा रही हैं। राजग के घटक दल चुनाव मैदान में जाने से पहले एकबार जदयूू से जोर आजमाइश कर लेना चाहते हैं, ताकि चुनाव के बाद भूल-चूक लेनी-देनी जैसा कुछ किया जा सके। यह बात गठबंधन के नेता भले न बोलें, आम लोग बोल रहे हैं कि लोजपा को जरूर कहीं से शह मिल रही। जदयू को भी इसका अहसास है। काट के लिए उसने पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को खुद से जोड़ लिया है। याद कीजिए। मांझी ने जदयू से जुडऩे के बाद पहला मोर्चा लोजपा के खिलाफ ही खोला था। यह भाजपा के लिए भी संदेश था कि दलितों के मुद्दे को उठाने के लिए आपके पास चिराग पासवान तो मेरे पास भी जीतनराम मांझी हैं।
सीटें बढ़ाकर सरकार में हुकूमत का इरादा
महागठबंधन के सबसे बड़े दल राजद से उसके बाकी सहयोगी दो-दो हाथ कर रहे हैं। रालोसपा और ङ्क्षहदुस्तानी अवाम मोर्चा निकल गए। विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी से महागठबंधन के अलावा राजग की उम्मीद बनी हुई है। अब कांग्रेस और वाम दल बचे हुए हैं। संयोग से राजद के साथ इन दलों का पुराना नाता है। 1990 से अब तक वाम दल राजद या पूर्ववर्ती जनता दल से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस बाद में जुड़ी। इन दलों को कभी साझे में तो कभी अकेले लडऩे का अनुभव रहा है। राजग के घटक दल अगर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से हिसाब करना चाह रहे हैं तो यही भाव राजद के प्रति महागठबंधन के घटक दलों का है। यहां भी वही हिसाब काम कर रहा है। अभी अधिक सीट हासिल हो गई तो सरकार बनाने में अपनी हुकूमत चलाएंगे। तमाम विवादों के बावजूद मानकर चलना चाहिए महागठबंधन में सीटों का मसला सलट गया है।