सवर्ण और दलित कार्ड भी नहीं आया कांग्रेस के काम, 2015 की बजाय कांग्रेस की जमीन और खिसकी
Bihar Election Result 2020 कांग्रेस महागठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई। तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी अपना पुराना प्रदर्शन भी नहीं दोहरा सकी। यहां तक कि केंद्रीय नेतृत्व का जादू भी बिहार में नहीं दिखा। इसका नतीजा कई सीटों पर बड़े फासले से हार के रूप में दिखा।
पटना, जेएनएन। दो दशक से सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस एक बार फिर तमाम प्रयासों-कोशिशों के बाद भी सत्ता तक नहीं पहुंच पाई। सहयोगी राजद पर दबाव बनाकर कांग्रेस 70 सीटें हासिल करने में तो सफल रही पर सही प्रत्याशियों का चयन और चुनाव प्रबंधन दोनों में पार्टी की रणनीति फेल हो गई।
बंगाल और उत्तर प्रदेश में चुनावों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आलकमान ने बिहार में चुनाव कराने का दायित्व प्रदेश की बजाय कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को सौंपा था। केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार में प्रभार संभालते ही पार्टी की पुरानी जमीन वापस हासिल करने की रणनीति पर काम शुरू किया। इसकी शुरुआत जातीय समीकरण को साधने से हुई। टिकटों के बंटवारे में इस जातीय समीकरण का पार्टी ने विशेष ध्यान रखा।
सवर्णों पर जताया अधिक भरोसा
अक्टूबर महीने में पहले दौर के प्रत्याशियों को सिंबल देते हुए यह संकेत दे दिए थे कि पार्टी इस बार सर्वाधिक भरोसा सवर्ण पर करने जा रही है। उसकी सूची में दूसरे नंबर पर दलित इसके बाद अल्पसंख्यक रहे। कांग्रेस ने जो 70 सीटें हासिल की उसमें से 34 सीटें उसने सवर्ण समुदाय से आने वाले प्रत्याशियों को सौंपी। पार्टी ने 13 सीटों पर दलित उम्मीदवारों पर भरोसा जताया और उन्हें टिकट दिए। 10 सीटों पर अल्पसंख्यक और 10 सीटें ही पिछड़े वर्ग से आने वाले उम्मीदवारों को सौंपी गई। इस सूची में महज तीन उम्मीदवार ही ऐसे थे जो अति पिछड़ा समाज से आते थे।
और खिसक गई कांग्रेस की जमीन
टिकटों का बंटवारा करने के बाद पार्टी ने मैदानी लड़ाई शुरू की। पार्टी के स्टार प्रचारक घूम-घूमकर वोट की जद्दोजहद में लगे रहे लेकिन जिन परिणामों की उम्मीद कर कांग्रेस ने बाजी बिछाई थी उसमें वे विफल रहे। 2015 में 41 सीटें लड़कर 27 पर जीत दर्ज कराने वाली कांग्रेस 2020 के चुनाव में वोटरों का मिजाज सही तरीके से भांप नहीं पाई। पिछले चुनाव की बनिस्पत इस चुनाव कांग्रेस की जमीन और खिसकी।
50 से 55 सीटों की लगा रखी थी उम्मीद
पार्टी को उम्मीद थी कि वह बिहार के मतदाता उसके कम से कम 50 से 55 उम्मीदवारों को सदन तक भेजेंगे। पर परिणाम इसके उलट रहे 50-55 की कौन कहे कांग्रेस पिछले बार के जीत के आंकड़े से भी नीचे आ गई। इस चुनाव जनता ने उसके 70 में से मात्र 19 उम्मीदवारों को सदन तक भेजा। इनमें 10 सवर्ण बिरादरी से आते हैं। जबकि चार अल्पसंख्यक, तीन दलित, एक जनजाति और एक अतिपिछड़ा समाज से आते हैं। कांग्रेस की इस हार को लेकर विश्लेषक भी मानते हैं कि कांग्रेस को बिहार मे अभी और मेहनत करनी होगी वरना बिहार में उसके पत्ते यूं ही विफल होते रहेंगे।