Bihar Assembly Election 2020: विधान सभा चुनाव से पहले सभी विधायकों को सता रहा है छंटनी का डर
Bihar Assembly Election 2020 हर राजनीतिक दल के मुख्यालय के सामने टिकट के उम्मीदवारों की भीड़ उमड़ रही है। बमुश्किल 40-50 विधायकों को टिकट मिलने का पक्का भरोसा है। 2015 के चुनाव परिणाम में 100 विधायकों को हार का मुंह देखना पड़ा था।
पटना, अरुण अशेष । Bihar Assembly Election 2020: यह डर है। 243 सदस्यीय विधानसभा के 242 सदस्य चुनाव मैदान में जाना चाहते हैं। बमुश्किल 40-50 विधायकों को टिकट मिलने का पक्का भरोसा है। बाकी को खुद पर तो भरोसा है, लेकिन नेतृत्व उनके दावे पर आंख बंद कर भरोसा नहीं कर पा रहा है। नतीजा: पटना में उम्मीदवारों की भीड़ लगी हुई है। उधर विधानसभा क्षेत्रों में सन्नाटा पसरा हुआ है। इक्का-दुक्का विधायक क्षेत्र में जा रहे हैं। उनसे हिसाब मांगा जा रहा है। कहीं-कहीं अप्रिय आचरण का भी सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति उम्मीदवारों और उनके दलों के नेतृत्व की चिंता बढ़ा रही है।
2010 में जीते सौ विधायक चुनाव हार गए थे
राजनीतिक दल विगत चुनाव के अनुभव के आधार पर अगले चुनाव की रणनीति बनाते हैं। मुद्दे उसी आधार पर तय होते हैं। 2015 के चुनाव का परिणाम यह था कि 2010 में जीते सौ विधायक चुनाव हार गए थे। मतलब लगभग 40 फीसदी विधायक नकार दिए गए थे। 143 विधायक ऐसे थे, जिन्होंने दूसरी बार जीत हासिल की थी। उनमें भी कई ऐसे थे, जिन्हें 2010 के चुनाव में जनता ने ब्रेक दे दिया था। यह परिणाम नेतृत्व को प्रेरित कर रहा है कि वह टिकट देने से पहले जीत की संभावना पर गौर करे।
टिकट देने से पहले सर्वे भी कराया जा रहा
टिकट देने से पहले कार्यकर्ताओं से बातचीत की जा रही है। उनसे क्षेत्र और उम्मीदवार का हाल पूछा जा रहा है। बात इतने से नहीं बन रही है। निजी सर्वे एजेंसियों को क्षेत्र में भेजा जा रहा है। उनके पास दावेदारों की सूची रहती है। एजेंसियां संभावित उम्मीदवारों के नाम के साथ लोगों से उनकी जीत की गुंजाइश के बारे में पूछती हैं। निजी एजेंसियों की सेवा सभी दल ले रहे हैं। कुछ पार्टियां तो एक एजेंसी से मिली जानकारी की जांच दूसरी एजेंसी से करवा रही हैं। सख्ती को समझिए। मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार किसी विधायक से पूछ बैठे कि आपके क्षेत्र से बड़ी संख्या में दावेदार क्यों आ रहे हैं?
लालू टिकट दावेदारों को तुरंत तेजस्वी के पास भेज दे रहे
एक दौर में राजद टिकट के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद अंतिम प्राधिकार होते थे। इन दिनों जितने लोग अपना बायोडाटा लेकर लालू प्रसाद से मिल रहे है, वह उसे तुरंत विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के पास अग्रसारित कर देते हैं। अपनी ओर से वह कोई आश्वासन नहीं दे रहे हैं।
लोकसभा चुनाव की जीत गारंटी नहीं
दलों का डर लोकसभा और विधानसभा के विपरीत परिणामों को लेकर भी है। बीते 20 साल में पहली बार 2009 के लोकसभा और 2010 के विधानसभा चुनाव के परिणाम एक जैसे रूझानों के साथ आए। दोनों चुनावों में एनडीए के घटक दलों-जदयू और भाजपा की शानदार जीत हुई। इससे पहले 2004 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन यूपीए-कांग्रेस-राजद-लोजपा को जबरदस्त कामयाबी मिली थी। 2005 के विधानसभा चुनाव में यूपीए राज्य की सत्ता से बेदखल हो गया। यही हाल 2014 के लोकसभा चुनाव के अगले साल हुए विधानसभा चुनाव में हुआ। लोकसभा की 31 सीटों पर जीत हासिल करने वाला एनडीए विधानसभा की 58 सीटों पर सिमट गया। यह अतीत आज भी एनडीए को सतर्क कर रहा है कि वह 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम की पुनरावृति की कल्पना इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में न करे। इसमें जीत हासिल करने के लिए अतिरिक्त सावधानी की मांग है।
बदला हुआ समीकरण
ऐसे तो भाजपा और जदयू का गठबंधन अपने आप में अपराजेय रहा है। 2005 में सरकार गठन के बाद 2010 में विधानसभा का चुनाव हुआ तो राज्य सरकार के झोले में उपलब्धियों की भरमार थी। सरकार ने घोषणा पत्र के अनुरूप अपराध पर नियंत्रण किया था। विकास की रफ्तार तेज थी। सड़कें गडढों से बाहर निकल गई थीं और बिजली हालत सुधर गई थी। सरकार की योजनाएं इस तरह बनाई गई थीं कि राज्य के हर आदमी उसके दायरे में आ गया था। यह सब वोट की इकतरफा गोलबंदी के तौर पर सामने आया। लेकिन, 2015 में समीकरण बदल गया था। अलग-अलग लडऩे का खराब अनुभव भाजपा-जदयू-दोनों को हुआ। अब जबकि दोनों एक साथ हो गए हैं, 2015 के परिणाम के विश्लेषण में यह भ्रम आज भी कायम है कि उसमें राजद और कांग्रेस का कितना योगदान है। यह भ्रम एनडीए के साथ-साथ राजद और कांग्रेस को भी है।
राजद में सबसे अधिक नए विधायक
सौ नए विधायकों में सबसे अधिक राजद में आए। उसके 47 ऐसे विधायक हैं जो पहली बार 2015 में चुनाव जीते। कांग्रेस में इनकी संख्या 13 थी। लगभग 50 प्रतिशत। लोजपा के दो, रालोसपा के एक, भाजपा के 17, जदयू के 14 और एक एआइएआइएम के अलावा एक निर्दलीय एवं एक सीट पर भाकपा माले की भी जीत हुई। एआइएआइएम की जीत उप चुनाव में हुई। पहली बार जीत वाले विधायकों की सीट को बचाने के लिए भी उम्मीदवारी में फेरबदल की संभावना है।
इन सौ सीटों पर मिली थी पहली जीत
बाल्मीकीनगर, नरकटियागंज, बगहा, चनपटिया, बेतिया, नरकटिया, हरसिद्धि, गोबिंदगंज, केसरिया, पीपरा, चिरैया, ढाका, रीगा, परिहार, सुरसंड, सीतामढ़ी, रून्नी सैदपुर, हरलाखी, बेनीपट्टी, मधुबनी, झंझारपुर, लौकहा, त्रिवेणीगंज, रानीगंज, फारबिसगंज, अररिया, जोकीहाट, किशनगंज, पूर्णिया, बरारी, कोढ़ा, बिहारीगंज, सहरसा, सिमरी बख्तियापुर, बेनीपुर, बहादुरपुर, केवटी, जाले, मीनापुर, बोचहा, सकरा, कुढनी, कांटी, बरुराज, बैकुंठपुर, जीरादेई, रधुनाथपुर, दरौंदा, महराजगंज, तरैया, छपरा, अमनौर, लालगंज, वैशाली, महुआ, राघोपुर, महनार, उजियारपुर, मोरवा, मोहिउद्दीननगर, तेघड़ा, बेगूसराय, बखरी, अलौली, बिहपुर, पीरपैंती, कटोरिया, बरबीघा, राजगीर, इस्लामपुर, हिलसा, बख्तियारपुर, दीघा, मसौढ़ी, पालीगंज, विक्रम, संदेश, बड़हरा, आरा, अगिआंव, तरारी, जगदीशपुर, शाहपुर, ब्रहमपुर, बक्सर, रामगढ़, नोखा, काराकाट, जहानाबाद, मुखदुमपुर, गोह, ओबरा, कुटुम्बा, औरंगाबाद, गुरुआ, टिकारी, रजौली, सिकंदरा और चकाई।