चिंता की बात
पर्ची पर डॉक्टर की लिखावट साफ नहीं होने की वजह से दवा की अधिक मात्र ले लेने से 10 वर्षीय बच्चे की मौत चिंता की बात है।
पर्ची पर डॉक्टर की लिखावट साफ नहीं होने की वजह से दवा की अधिक मात्र ले लेने से 10 वर्षीय बच्चे की मौत चिंता की बात है। सिर्फ डॉक्टर की लिखावट का पता नहीं चलने के कारण बच्चे को लगातार 21 दिनों तक दवा की अधिक मात्र दी जाती रही जो उसके लिए जानलेवा साबित हुई। इस तरह की लापरवाही का यह पहला मामला है, लेकिन इससे एक बात तो साफ है कि अब भी डॉक्टर सरकार द्वारा बनाए गए नियम के अनुसार नहीं चल रहे हैं। नियम के अनुसार पर्ची पर सिर्फ कैपिटल लेटर में ही दवा का नाम लिखना है। इस तरह की लापरवाही करने वाले डॉक्टरों की पहचान होनी चाहिए ताकि इस तरह की घटना का दोहराव न हो सके।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन डॉक्टरों को मरीज भगवान का दर्जा देते हैं, उन्हीं की लापरवाही से किसी की जान चली जाए तो फिर मरीज किस पर यकीन करेगा। यह बात डॉक्टरों को क्यों नहीं समझ आती। उनकी एक गलती की वजह से मरीज का विश्वास डॉक्टरी पेशे से ही उठ जाता है। उन्हें साफ-साफ लिखने में क्या परेशानी है? कुछ डॉक्टर तो साफ-साफ इसलिए नहीं लिखते ताकि मरीज उनके द्वारा बताई गई दुकान से ही दवाओं की खरीदारी करें और बदले में उन्हें कमीशन मिलता रहे।
सरकार को चाहिए कि वह दवाओं के नाम कैपिटल लेटर में ही लिखने को सख्ती से लागू करे और जो कोई भी इस नियम को न मानें उनका पंजीकरण रद कर दे। साथ ही दवा विक्रेताओं को भी चाहिए कि जो मरीज उचित पर्ची लेकर नहीं आए उसे दवा न दें। ऐसा करने पर मरीज दोबारा डॉक्टर को परेशान करेगा और इससे बचने के लिए डॉक्टर मजबूरी में ही नियम का पालन करेंगे।
इसके अलावा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि डॉक्टर सिर्फ जेनरिक दवा ही लिखेंगे जिससे वे बेवजह लोगों को महंगी दवा खरीदने को मजबूर न कर सकें। डॉक्टरों को नियमों का पालन करने के लिए जागरूक करने की भी जरूरत है। इसके लिए अलग से काउंसिलिंग की जानी चाहिए। इस बात की भी पड़ताल होनी चाहिए कि डॉक्टर कहीं से कमीशन तो नहीं ले रहे। अगर कोई डाक्टर इस तरह की हरकत करता पकड़ा जाए तो उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करना चाहिए। साथ ही ऐसी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए कि दूसरों को उससे सीख मिल सके।
[ स्थानीय संपादकीय-नई दिल्ली ]