देश की राजधानी में जाम की समस्या जिस कदर बढ़ रही है वह चिंता की बात है। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री भी शुक्रवार को इंडिया गेट सर्किल पर जाम में फंस गए। इससे पहले भी कई वीआइपी जाम में फंस चुके हैं। आम लोगों के लिए तो यह रोजाना का अनुभव है। घर से कार्यालय आने जाने में दिल्लीवासियों को रोजाना घंटों जाम से जूझना पड़ता है। दिल्ली का शायद ही कोई ऐसा इलाका होगा जो जाम से न जूझता हो। इससे न सिर्फ लोगों का कीमती वक्त बर्बाद होता है बल्कि इससे ईंधन की बर्बादी और वायु प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है। इसे लेकर अक्सर चिंता भी व्यक्त की जाती है। सियासत भी होती है, लेकिन दिल्लीवासियों को इससे मुक्ति दिलाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा रहा है। दरअसल, दिल्ली की सड़कों पर वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां एक करोड़ से ज्यादा वाहन पंजीकृत हैैं। इस अनुपात में सड़कों का विस्तार नहीं हुआ है। नई सड़कें, फ्लाईओवर की घोषणाएं तो की जाती हैैं, लेकिन उस पर काम नहीं हो रहा है। वहीं, सड़कों पर अतिक्रमण, अवैध ढंग से वाहन खड़े करने व रेहड़ी पटरी से सड़कों की चौड़ाई कम होती जा रही है जिससे जाम की समस्या और गंभीर होती जा रही है।
वाहन चालकों की मनमानी और यातायात पुलिस की लापरवाही भी जाम का बड़ा कारण है। अक्सर लोग रेड लाइट का पालन नहीं करते हैं। यातायात से संबंधित अन्य दिशा-निर्देशों का उलंघन करते हैं जिससे जाम लगने के साथ ही दुर्घटनाएं भी होती रहती है। वहीं यातायात पुलिस की प्राथमिकता यातायात को सुगम बनाने के बजाय बड़े अधिकारियों द्वारा दिए गए चालान के लक्ष्य को पूरा करने की होती है। इन स्थितियों में तत्काल सुधार की जरूरत है। इसके लिए तकनीक का भी सहारा लेना होगा। इसके साथ ही वाहनों की संख्या कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत है। लंबित योजनाओं को भी जल्द पूरा करना होगा जिससे कि सड़कों पर वाहनों का बोझ कम हो सके। इसके लिए आम नागरिक को भी सहयोग देना होगा। उन्हें अतिक्रमण के खिलाफ आगे आने के साथ सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अपनाने की आदत डालनी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: दिल्ली ]