मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह नसीहत वाजिब है कि सड़कों पर आवागमन सुरक्षित बनाने के लिए हर संभव उपाय किया जाना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि बिहार में यातायात नियमों की अनदेखी, हेलमेट पहनने में कोताही और वाहनों की अनियंत्रित गति की प्रवृत्ति अधिक है। पिछले कुछ सालों में राजमार्गों और अन्य प्रमुख सड़कों की हालत में काफी सुधार आया है यद्यपि अभी भी स्थिति को आदर्श नहीं माना जा सकता। खराब सड़कों के कारण परिवहन की परिस्थितियां कोढ़ में खाज जैसी बन चुकी हैं। मुख्यमंत्री का यह सुझाव पूरी तरह दुरुस्त है कि अभियंताओं को नियमों की ‘लक्ष्मणरेखा’ के पार जाकर सड़क सुरक्षा के उपायों पर विचार करना चाहिए। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सड़क हादसों का सर्वाधिक खामियाजा युवाओं और बच्चों को भुगतना पड़ता है। इस नजरिये से देखें तो यह ‘राष्ट्रीय क्षति’ जैसा विषय है। सड़क सुरक्षा सिर्फ टेक्नोलॉजी के जरिए नहीं बढ़ाई जा सकती। इसके लिए यातायात का इंफ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने के अलावा नागरिकों में सड़क सुरक्षा बोध विकसित करना होगा। सड़क हादसों का एक अहम किन्तु छिपा कारण वाहनों की बहुतायत भी है लिहाजा इसके लिए भी कोई नीति बनाई जानी चाहिए।

वाहनों, खासकर सवारी और माल ढोने वाले वाहनों के रखरखाव के प्रति उदासीनता भी सड़क हादसों की एक वजह है। बच्चों की इच्छाएं पूरी करने के प्रति अभिभावकों की ‘अति-उदारता’ का नतीजा यह है कि बड़ी संख्या में स्कूल जाने वाले नाबालिग बच्चे यातायात नियमों और सुरक्षा उपायों की अनदेखी करके हाई पिकअप मोटर साइकिलें दौड़ा रहे हैं। शहरों में रेड लाइट और जेब्रा लाइन को लेकर तो शायद ही कोई संवेदनशील रहता है। बेहतर होगा कि यातायात और परिवहन विभाग सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान शुरू करें। स्कूल-कॉलेज इस मुहिम में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इंटरमीडिएट तक के विद्यार्थियों के लिए बाइक पर स्कूल आना प्रतिबंधित होना चाहिए। वाहनों में स्पीड गवर्नर लगवाने की अनिवार्यता लागू करके स्थिति किसी हद तक नियंत्रित की जा सकती है। विशेषज्ञ विचार करेंगे तो कई अन्य रास्ते मिलेंगे। जैसे भी हो, सड़कों को यथासंभव सुरक्षित बनाया जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]