केंद्रीय सतर्कता आयोग के एक आयोजन में प्रधानमंत्री ने यह जो कहा कि निहित स्वार्थों वाले लोग भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने वाली संस्थाओं एवं एजेंसियों के काम में बाधा डालने और उन्हें बदनाम करने की कोशिश करते रहेंगे, उससे भ्रष्ट तत्वों के दुस्साहस का ही पता चलता है। इससे यह भी पता चलता है कि अभी वैसी स्थितियां बनी हुई हैं, जिसमें भ्रष्टाचारी सरकारी एजेंसियों को बदनाम करने में सक्षम हो जाते हैं। इन स्थितियों को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि आदर्श स्थिति यही है कि भ्रष्ट तत्व भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों से भयभीत दिखें।

यह ठीक है कि प्रधानमंत्री ने इन एजेंसियों को अपना पूरा समर्थन देने और खुलकर काम करने का संदेश दिया, लेकिन ऐसा कोई संदेश भ्रष्ट तत्वों के बीच भी जाना चाहिए कि उन्हें उनके किए की सजा मिलकर रहेगी और वे बच नहीं सकेंगे। इसी के साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि सरकारी एजेंसियां अनियंत्रित न होने पाएं और वे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के नाम पर लोगों का उत्पीड़न न करने लगें।

भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों को सक्षम बनाने के साथ यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए लोगों को समय रहते सही सजा मिले। आम तौर पर अभी ऐसा नहीं होता। ऐसे लोगों के मामले लंबे समय तक खिंचते रहते हैं। इससे समाज को कोई सही संदेश नहीं जाता।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि विभिन्न एजेंसियां भ्रष्टाचार में लिप्त तत्वों के यहां छापेमारी करती रहती हैं, क्योंकि इसके बाद भी ऐसे कोई प्रमाण नहीं दिख रहे हैं कि भ्रष्टाचार पर कोई निर्णायक लगाम लगती दिख रही हो। यह ठीक है कि केंद्र सरकार के उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार पर एक हद तक लगाम लगी है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उसके लिए कहीं कोई गुंजाइश नहीं रह गई है।

इसी तरह यह भी नहीं कहा जा सकता कि निचले स्तर के भ्रष्टाचार में कोई बड़ी कमी आई है। सच यह है कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार बेरोक-टोक जारी है। जैसे निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, वैसे ही रोजमर्रा के उस भ्रष्टाचार पर भी, जिससे आम लोग दो-चार होते हैं। भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है कि उन कारणों का निवारण किया जाए, जिनके चलते वह पनपता और फलता-फूलता है।

इससे इन्कार नहीं कि तकनीक के इस्तेमाल ने व्यवस्था को पारदर्शी बनाने का काम किया है, लेकिन अभी इस क्षेत्र में बहुत काम किए जाने की आवश्यकता है। ऐसी ही आवश्यकता राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मामले में भी है। सरकार कुछ भी दावा करे, यह कहना कठिन है कि चुनावी बांड की व्यवस्था के बाद राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया पारदर्शी बन गई है।