इसमें संदेह है कि राहुल गांधी की इस घोषणा के बाद राजस्थान कांग्रेस में आपसी खींचतान खत्म हो जाएगी कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट, दोनों ही पार्टी के लिए संपदा हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि राहुल गांधी के ऐसा कहने के बाद संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को दोनों नेताओं में सुलह कराने के लिए जयपुर जाना पड़ा। उनकी उपस्थिति में दोनों नेता एक साथ दिखे और उन्होंने मिलकर काम करने पर सहमति भी जताई, लेकिन इसे भूला नहीं जा सकता कि चंद दिनों पहले ही अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को गद्दार करार दे दिया था। इसके पहले वह उन्हें निकम्मा बता चुके हैं।

जयपुर पहुंचे केसी वेणुगोपाल ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट में कथित तौर पर समझौता कराने के बाद जिस तरह यह कहा कि यदि इन दोनों नेताओं के समर्थकों ने अनावश्यक टिप्पणी की तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा, उससे यही स्पष्ट होता है कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं। इसी मौके पर उन्होंने पंजाब कांग्रेस के प्रभारी और राजस्थान के विधायक हरीश चौधरी को उनके इस बयान के लिए फटकारा कि यदि किसी के मन में कुछ है तो वह बोलेगा ही।

यह भी ध्यान रहे कि केसी वेणुगोपाल को जयपुर इसलिए जाना पड़ा, क्योंकि राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने इससे आजिज होकर त्यागपत्र दे दिया कि अनुशासनहीनता करने और गांधी परिवार को नीचा दिखाने वाले विधायकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है। कायदे से इस स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को सक्रिय होना चाहिए था, लेकिन उनके स्थान पर राहुल गांधी को हस्तक्षेप करना पड़ा।

यह किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस नेतृत्व को चुनौती देने वाले राजस्थान के विधायकों के खिलाफ कार्रवाई इसीलिए नहीं हो पा रही है, क्योंकि वे अशोक गहलोत के समर्थक हैं। इन्होंने तब सक्रिय भूमिका निभाई थी, जब इस आशय का प्रस्ताव पारित करने से इन्कार कर दिया गया था कि नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति में अगले मुख्यमंत्री का फैसला सोनिया गांधी करेंगी।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि राजस्थान कांग्रेस की कलह को शांत करने के लिए पार्टी नेतृत्व इसीलिए सक्रिय हुआ, क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा का राज्य में प्रवेश होने वाला है। इसके प्रबल आसार हैं कि तमाम सुलह-समझौते के बाद भी इस यात्रा के दौरान अथवा उसके बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की तनातनी फिर सतह पर आ जाएगी। एक ऐसे समय जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, तब वहां वैसे ही हालात उभर रहे हैं, जैसे पंजाब में चुनाव के पहले उभरे थे। यदि कांग्रेस नेतृत्व इससे अपरिचित है कि पंजाब में पार्टी की कैसी दुर्गति हुई तो इसका अर्थ है कि उसे भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल का कद बढ़ाने के आगे कुछ सूझ नहीं रहा है।