प्रधानमंत्री ने दूसरी बार केंद्र की सत्ता संभालने के बाद अपने पहले मन की बात कार्यक्रम के जरिये बिल्कुल सही समय पर यह कहा कि जल संरक्षण के लिए जन आंदोलन शुरू करने की जरूरत है। जल संरक्षण के लिए उन्होंने हर किसी से आगे आने का आग्रह भी किया। इस आग्रह पर ध्यान दिया ही जाना चाहिए, क्योंकि अपने देश में साल भर में वर्षा से जो जल प्राप्त होता है उसका केवल आठ प्रतिशत ही संरक्षित हो पाता है। एक ऐसे समय जब पानी की कमी से प्रभावित होने वाले इलाकों की संख्या बढ़ती जा रही है तब इसके अलावा और कोई राह नहीं कि पानी बचाने और उसे संरक्षित करने के हरसंभव उपाय किए जाएं।

प्रधानमंत्री ने यह उम्मीद जताई कि देशवासियों के सामर्थ्य, सहयोग और संकल्प से मौजूदा जल संकट का समाधान कर लिया जाएगा, लेकिन यह आसान काम नहीं और इसलिए नहीं, क्योंकि जल संरक्षण के तौर-तरीकों को अमल में लाने के मामले में सरकारी तंत्र की भूमिका काफी निराशाजनक है। इससे इन्कार नहीं कि विभिन्न राज्यों ने जल संरक्षण संबंधी नियम-कानून बना रखे हैं, लेकिन देखने में यही आता है कि वे कागजों तक ही अधिक सीमित हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सरकारी अमला आमतौर पर बारिश के समय ही सक्रिय होता है और दिखावटी खानापूरी करके कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। सरकारी तंत्र की ढिलाई के कारण देश के एक बड़े हिस्से में आम जनता चाह कर भी जल संरक्षण के काम में हिस्सेदार नहीं बन पाती। परिणाम यह होता है कि बारिश का अधिकांश जल व्यर्थ चला जाता है।

यह समय की मांग है कि केंद्र सरकार जल संरक्षण को जन आंदोलन का रूप देने के लिए न केवल खुद सक्रिय हो, बल्कि राज्य सरकारों के साथ-साथ उनकी विभिन्न एजेंसियों को भी सक्रिय करे। यह सक्रियता सतत नजर आनी चाहिए ताकि न केवल बारिश के जल का संरक्षण हो सके, बल्कि पानी की बर्बादी को भी रोका जा सके। यह ठीक नहीं कि जब जल संकट गंभीर रूप लेता जा रहा है तब पानी की बर्बादी को रोकने और उसे दूषित होने से बचाने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जब भूमिगत जल के अनावश्यक दोहन पर सख्ती से रोक लगाने की जरूरत है तब यह देखने में आ रहा है कि ऐसा करने से बचा जा रहा है।

एक समस्या यह भी है कि विभिन्न जल श्रोतों की सही तरह से देखभाल भी नहीं हो रही है। परंपरागत जल श्रोतों को बचाने का जो कार्यक्रम शुरू हुआ था वह कुछ ही स्थानों पर जैसे-तैसे आगे बढ़ता दिख रहा है। नि:संदेह इसकी वजह भी सरकारी तंत्र की शिथिलता ही है। यदि जल संरक्षण के कार्यक्रम को जन आंदोलन बनाना है तो यह सुनिश्चित करना ही होगा कि बारिश के जल को संरक्षित करने, पानी के दुरुपयोग को रोकने और उसे प्रदूषित होने से बचाने की जो योजनाएं जिस विभाग के तहत आती हैं वे अपना काम मुस्तैदी से करें। यह तभी सुनिश्चित हो पाएगा जब इन विभागों को जवाबदेह बनाने के साथ ही उनके कामकाज की सतत निगरानी भी की जाएगी।