अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग और तेज होने पर आश्चर्य नहीं। ऐसा होना तभी तय हो गया था जब सुप्रीम कोर्ट ने इस बहुप्रतीक्षित मामले की सुनवाई टालने का फैसला किया था। यह फैसला इसलिए कहीं अधिक निराशाजनक था, क्योंकि यह ठीक उस समय आया जब पूरा देश यह आशा कर रहा था कि अब इस मसले के निपटारे में अधिक देर नहीं होगी। दुर्भाग्य से जब यह अपेक्षित था कि अयोध्या विवाद की सुनवाई दिन-प्रतिदिन होगी तब सुप्रीम कोर्ट से यह सुनने को मिला कि इस प्रकरण पर गठित होने वाली नई पीठ ही यह तय करेगी कि सुनवाई अगले साल जनवरी, फरवरी, मार्च या फिर अप्रैल में होगी। यदि आम जनता और खासकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के आकांक्षी लोगों की ओर से इसे न्याय में देरी के रूप में देखा गया तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता।

अयोध्या विवाद की सुनवाई टलना न्याय में देरी का उदाहरण ही अधिक बना। इसलिए और भी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट 2011 के बाद से इस मामले की सुनवाई का अवसर नहीं निकाल सका। एक ऐसे समय जब इसके कोई ठोस संकेत नहीं कि अयोध्या विवाद का निपटारा कब होगा तब लोगों का और अधीर होना स्वाभाविक है। इसी अधीरता की अभिव्यक्ति गत दिवस अयोध्या में आयोजित धर्म संसद में हुई और साथ ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के संबोधन में भी।

अब जब यह साफ दिख रहा है कि आने वाले दिनों में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने या फिर अध्यादेश लाने की मांग और प्रबल होने वाली है तब फिर सरकार की ओर से यह देखा ही जाना चाहिए कि क्या किसी विधिसम्मत उपाय से राम मंदिर निर्माण की राह सुनिश्चित करना संभव है? उसकी ओर से कोई न कोई उपक्रम इसलिए भी किया जाना चाहिए, क्योंकि बीते चार वर्षों में उसने इस आस में कोई पहल नहीं की कि सुप्रीम कोर्ट अपना काम करेगा। चूंकि यह काम टल गया इसलिए सरकार को आगे आकर उन संभावनाओं को टटोलना चाहिए जिनकी चर्चा हो रही है।

आखिर यह एक तथ्य है कि अयोध्या की अधिग्रहीत भूमि का स्वामित्व उसके ही पास है। इसी तरह यह केवल मान्यता मात्र नहीं कि अयोध्या राम की है, बल्कि इसके ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण भी उपलब्ध हैं कि विवादित स्थल पर एक मंदिर के ऊपर ही मस्जिद बनाई गई थी। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि तमाम प्रमाणों के बाद भी देश की अस्मिता और सांस्कृतिक चेतना के प्रेरणास्नोत भगवान राम के नाम का मंदिर उनके ही जन्मस्थल पर बनने में अनावश्यक देर हो रही है।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पहल इसलिए भी होनी चाहिए, क्योंकि अब वे अनेक राजनीतिक दल भी विरोध के अपने सुरों को भूलकर यह पूछ रहे हैं कि मंदिर कब बनेगा? यह सही है कि राम मंदिर निर्माण की संभावित पहल को अदालत में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सरकार अपने दायित्वों का निर्वहन करने से बचे। यह ठीक नहीं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बरसों पुरानी मांग को पूरा करने के लिए कोई भी अपने दायित्वों का पालन करते न दिखे।