सरकारी अनुदानप्राप्त विद्यालयों में नियुक्तियों में धांधली का सच सही रूप से सामने आएगा तो इससे व्यवस्थागत खामियां दुरुस्त करने में काफी मदद मिलेगी।
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प्रदेश के जिन सहायताप्राप्त अशासकीय विद्यालयों में नियुक्तियों की जांच में धांधली सामने आई है, उन पर शिकंजा कसना अब तकरीबन तय माना जा रहा है। नियुक्तियों की जांच के लिए नामित जांच अधिकारी अपनी रिपोर्ट शिक्षा महकमे को सौंप चुके हैं। अब इस रिपोर्ट पर शिक्षा अधिनियम और विनियमों के प्रावधानों के मुताबिक कार्रवाई को लेकर तीन सदस्यीय समिति का गठन भी कर दिया गया है। इस समिति की संस्तुति के आधार पर सरकार की ओर से कार्रवाई की जाएगी। नियुक्तियों में धांधली सामने आने के बाद ही सरकार की ओर से सहायताप्राप्त विद्यालयों में बीते जुलाई माह में नियुक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह प्रतिबंध अब तक खत्म नहीं किया गया है। जांच रिपोर्ट में अशासकीय विद्यालयों में नियुक्तियों में गड़बड़ी की पुष्टि होती है तो इससे महकमे पर भी अंगुली उठना अस्वाभाविक नहीं होगा। अधिनियम और विनियमों के मुताबिक इन विद्यालयों में शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार प्रबंध समितियों को है, लेकिन चयन के लिए गठित की जाने वाली समितियों में शिक्षा महकमे के जिम्मेदार प्रतिनिधि भी शामिल रहते हैं। यही नहीं, शिक्षा महकमे का अनुमोदन मिलने के बाद ही नियुक्तियां को हरी झंडी मिलती है। अब जांच रिपोर्ट में सामने आई गड़बडिय़ों में महकमे के स्तर पर बरती जाने वाली लापरवाही या अनियमितता भी सामने आ सकेंगी। वैसे भी सहायताप्राप्त विद्यालयों में प्रबंध समितियों की भूमिका को बेहद सीमित कर दिया गया है। नतीजतन इन समितियों की रुचि विद्यालयों में होने वाली नियुक्तियों तक ही सिमटना चिंताजनक है। विद्यालयों में शैक्षिक उन्नयन को लेकर न तो उनमें उत्साह दिखता है और न ही इच्छाशक्ति। हालत ये है कि भौतिक संसाधनों के मामलों में सरकारी विद्यालयों से कहीं बेहतर होने के बावजूद सहायताप्राप्त विद्यालयों में भी छात्रसंख्या में सुधार नहीं हो रहा है। वहीं उनके नजदीकी निजी विद्यालयों में छात्रसंख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में पिछड़ेपन का खामियाजा सहायताप्राप्त विद्यालयों के छात्र-छात्राएं भुगतने को विवश हैं। इस नीरसता को तोडऩे के लिए सरकार को भी प्रबंध समितियों की भूमिका को व्यापक और अधिक जवाबदेह बनाने पर विचार करना होगा। लेकिन, गैर जरूरी हस्तक्षेप और सिर्फ नियंत्रणकारी मानसिकता के बूते शायद ही ये मुमकिन हो।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]