बुजुर्गो, दिव्यागों और शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिए रेलवे ने एक बेहतरीन प्रयास किया है। ट्रेन में चढ़ते-उतरते समय सबसे ज्यादा परेशानी इन्हीं लोगों को होती है। इसलिए अब प्लेटफार्म पर मुड़ने वाले रैंप की व्यवस्था की जा रही है। रैंप को ट्रेन के दरवाजे के पास लगाकर व्हीलचेयर समेत यात्री को उतार लिया या चढ़ा दिया जाएगा। कुछ महीनों पहले त्रिवेंद्रम सेंट्रल स्टेशन से इस व्यवस्था का शुभारंभ किया गया। अब इलाहाबाद जंक्शन पर भी इसका ट्रायल किया गया है। जल्द ही यह सुविधा कानपुर सेंट्रल समेत प्रदेश के अन्य बड़े स्टेशनों पर भी मिलने लगेगी। इस सुविधा को कोई भी जरूरतमंद यात्री बिना शुल्क ले सकता है। रैंप और व्हीलचेयर के साथ कुल तीन रेलकर्मी ट्रेन तक यात्री के साथ जाएंगे और उन्हें चढ़ाकर वापस आएंगे। जैसे-जैसे व्हीलचेयर और रैंप की मांग बढ़ती जाएगी, रेलकर्मियों की संख्या बढ़ा दी जाएगी।

प्रतिदिन लाखों यात्री ट्रेन सुविधाओं का लाभ उठाते हैं। उनमें बड़ी संख्या बुजुर्गो और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की होती है। उनको ट्रेन में चढ़ाने या उतारने में घर वाले बहुत परेशान होते हैं पर इस नई सुविधा के कारण घरवालों को अब अधिक चिंता नहीं करनी पड़ेगी। रेलवे की यह सुविधा उत्तर प्रदेश के अन्य सरकारी दफ्तरों के लिए भी सबक है। तमाम सरकारी जाग्रति के बावजूद अब भी बहुत से कार्यालयों में रैंप नहीं बनाए जा सके हैं। राजधानी लखनऊ के इंदिरा भवन में एक तो बहुत ऊंची सीढ़ियां हैं और ऊपर से रैंप भी नहीं है। इसी भवन में राज्य कोषागार और पेंशन निदेशालय के दफ्तर हैं जहां सबसे अधिक बुजुर्गों का ही वास्ता पड़ता है। कभी-कभी तो कोई अधिक ही कमजोर वृद्ध सीढ़ियों पर बैठ बैठ कर कोषागार पहुंचते हैं लेकिन, संबंधित अधिकारी वहां रैंप और व्हीलचेयर का प्रबंध आज तक नहीं कर सके हैं। अन्य शहरों में तो और भी बुरा हाल है। सच तो यह है कि समाज के कमजोर तबकों और वृद्धजन के लिए कुछ अच्छा तभी किया जा सकता है जब करने वाले की सोच में कल्याण का भाव हो।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]