भ्रष्टाचार के खिलाफ ईडी, सीबीआइ और आयकर विभाग की कई स्थानों पर छापेमारी यही बता रही है कि केंद्रीय एजेंसियों का मनमाना इस्तेमाल किए जाने के विपक्ष के तमाम आरोपों के बावजूद इन एजेंसियों की सक्रियता थमने वाली नहीं है। विपक्षी दल केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी पर कुछ भी कहें, जनता इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि रांची में नेताओं के करीबी माने जाने वाले एक व्यक्ति के यहां दो एके-47 राइफलें मिलीं।

इसी तरह कुछ दिनों पहले बंगाल के एक मंत्री की करीबी के यहां से अकूत संपदा मिली थी। ऐसे में जांच एजेंसियों को सक्रिय रहना ही चाहिए, लेकिन उनकी सक्रियता के साथ भ्रष्टाचार के मामलों का निस्तारण भी शीघ्रता से करने की कोई व्यवस्था बननी चाहिए। इसका कोई अर्थ नहीं कि छापेमारी के बाद जांच और सुनवाई का सिलसिला वर्षों तक जारी रहे। चूंकि फिलहाल ऐसा ही हो रहा है, इसलिए विपक्ष को यह कहने का मौका मिल रहा है कि राजनीतिक बदले की भावना से काम किया जा रहा है।

भ्रष्टाचार से जुड़े कई मामले ऐसे हैं, जिनकी जांच वर्षों से जारी है। चंद मामले ही ऐसे हैं, जिनमें भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोगों को सजा सुनाई जा सकी है। आम तौर पर यह सजा भी निचली अदालतों द्वारा ही सुनाई गई है। इस कारण दोषी करार दिए गए लोग यह दलील देते रहते हैं कि उनके मामलों का अंतिम तौर पर निस्तारण होना शेष है और उन्हें इसका भरोसा है कि ऊंची अदालतें उनके पक्ष में फैसला देंगी।

जितना आवश्यक यह है कि नेताओं और नौकरशाहों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जांच प्राथमिकता के आधार पर एक तय सीमा में हो, उतना ही यह भी कि निचली अदालतों के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के निस्तारण में उच्चतर अदालतें भी तत्परता बरतें। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों को हतोत्साहित नहीं किया जा सकता। यदि किसी मामले में अंतिम तौर पर फैसला होने में आवश्यकता से अधिक देरी होती है तो उसका न तो समाज पर अपेक्षित प्रभाव पड़ता है और न ही भ्रष्ट तत्वों को यह संदेश जाता है कि यदि वे गलत काम करेंगे तो बचेंगे नहीं।

क्या यह असामान्य नहीं कि बिहार के चर्चित चारा घोटाले से जुड़े मामलों का निस्तारण अभी तक उच्चतर अदालतों से नहीं हो सका है? इसी तरह कोई नहीं जानता कि 2जी घोटाले को लेकर सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले का निस्तारण उच्चतर अदालतें कब करेंगी? नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए यह भी आवश्यक है कि व्यवस्था के उन छिद्रों को बंद किया जाए, जिनका सहारा लेकर घपले-घोटाले किए जाते हैं।