यह आश्चर्यजनक है कि संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन विपक्ष का वह अविश्वास प्रस्ताव मंजूर हो गया जिसे पिछले सत्र में हंगामे के बीच लाने की कोशिश हो रही थी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि बजट सत्र के दौरान न तो विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव आगे बढ़ाने को लेकर गंभीर था और न ही सत्तापक्ष उसे स्वीकार करने को लेकर। नि:संदेह विपक्ष को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार है, लेकिन आम तौर पर यह प्रस्ताव तो तब आता है जब इसे लेकर संदेह होता है कि सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल है या नहीं?

भले ही सोनिया गांधी ने आत्मविश्वास दिखाते हुए यह कहा हो कि कौन कहता है कि हमारे पास पर्याप्त संख्या नहीं है, लेकिन हकीकत यही है कि संख्या के खेल में विपक्ष सत्तापक्ष से पीछे है। तथ्य यह भी है कि कुछ विपक्षी दलों ने अभी यह तय नहीं किया कि वे अविश्वास प्रस्ताव पर किसका साथ देंगे? स्पष्ट है कि अविश्वास प्रस्ताव इसलिए नहीं लाया गया कि सरकार को संख्याबल के खेल में मात दी जा सके।

विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के जरिये भाजपा के सहयोगी के रूप में गिने जा रहे उन दलों की निष्ठा की परख भर कर सकता है जो मोदी सरकार से नाखुश माने जा रहे हैैं, लेकिन इस क्रम में खुद उसकी एकजुटता की भी परीक्षा होगी। पता नहीं विपक्ष इससे चकित है या नहीं कि अविश्वास प्रस्ताव की उसकी मांग तत्काल स्वीकार हो गई, लेकिन उसका यह दावा दमदार नहीं कि वह इस प्रस्ताव के जरिये उन मसलों पर बहस करा सकेगा जिन पर सरकार चर्चा से बचना चाहती है, क्योंकि वह तो हर मसले पर चर्चा की चुनौती दे रही है।

यह एक विडंबना ही है कि विपक्ष की ओर से जिस तेलुगु देसम पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव नोटिस को मंजूरी मिली वह कुछ समय पहले तक न केवल सत्तापक्ष के साथ थी, बल्कि सत्ता में भागीदार भी थी। विडंबना यह भी है कि यह अविश्वास प्रस्ताव नोटिस इस शिकायत पर केंद्रित है कि केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश को विशेष सहायता पैकेज नहीं दिया। आंध्र की विशेष सहायता पैकेज की मांग को सही ठहराने का मतलब है बिहार, पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों की ऐसी ही मांग को समर्थन देना।

क्या केंद्र सरकार के लिए एक साथ कई राज्यों को विशेष सहायता पैकेज देना संभव है? क्या यह विचित्र नहीं कि जिस मांग को पूरा करना संभव नहीं और जो न्यायसंगत भी नहीं उसे लेकर अविश्वास प्रस्ताव आ रहा है? अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्ष जिन अन्य मसलों को जोर-शोर से उठाने की तैयारी में है उनमें भीड़ की हिंसा और अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून में संशोधन का भी मामला है। विपक्ष इन मसलों को उठाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भीड़ की हिंसा के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने का जो निर्देश दिया है उसे पूरा करने में विपक्ष को भी सहयोग देना होगा। इसी तरह उसे इससे भी अवगत होना चाहिए कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून में संशोधन सरकार ने नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने किया है।