मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को लखीमपुर और शाहजहांपुर के कई गेहूं खरीद केंद्रों और गन्ना तौल केंद्रों का निरीक्षण किया, जहां उन्हें कई खामियां मिलीं। किसानों ने भी अव्यवस्था की शिकायत की। मुख्यमंत्री की छापेमारी यह बताने के लिए पर्याप्त है कि सरकार भले ही किसानों के हित में तमाम कदम उठा रही है, लेकिन सरकारी मशीनरी अपने काम और जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह है। इसे लेकर किसानों में कहीं न कहीं असंतोष है, जिसकी धमक मुख्यमंत्री तक पहुंची और उन्हें खुद हालात देखने के लिए निकलना पड़ा। वस्तुत: जनहित में शासन की मंशा के अनुरूप जब प्रशासन कार्य करता है, तभी उसे सुशासन का नाम दिया जाता है। मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेस का सूत्र भी तभी सफल माना जाता है।

ताजा घटनाक्रम यह बताता है कि प्रदेश में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। यह सही है कि कुछ कृषि उत्पादों की सरकारी खरीद के लिए मूल्य का निर्धारण होता है, लेकिन उसके भी कुछ मानक और शर्ते होती हैं। कई बार खरीद केंद्रों पर इसके नाम पर किसानों का उत्पीड़न होता है। जबकि सभी को पता है कि बोआई से लेकर उसके पकने-कटने और खरीद केंद्रों तक पहुंचने के मध्य तमाम प्राकृतिक और मानवजनित आपदाएं फसल ङोल चुकी होती है कि सरकारी शर्तो पर पूरा खरा नहीं उतर पातीं, ऐसी उपज को लेकर किसानों का सबसे ज्यादा उत्पीड़न होता है। जो लोग ठीक-ठाक उत्पाद लेकर पहुंचते हैं उनका कुछ अलग तरह से उत्पीड़न होता है। दरअसल, कई बार पूरा तंत्र ऐसे संगठित गिरोह में बदल जाता है कि चाहे जो भी हो जाए, किसी न किसी रूप में हर किसान से उसके खून-पसीने की गाढ़ी कमाई का एक अंश उससे छीनना ही है। यही स्थिति अव्यवस्था के रूप में सामने आती है। इसे रोकने के लिए जिस मशीनरी को सरकार ने जिम्मेदारी सौंपी है, उसकी उदासीनता से किसान परेशान हैं। खेती-किसानी, उपज की खरीद-फरोख्त एक सतत प्रक्रिया है। इसे व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए जिम्मेदार तंत्र के पेंच कसने की जरूरत है। सरकार खुद भाग-भाग कर हर जगह मौजूद नहीं हो सकती। उम्मीद है योगी सरकार इस दिशा में अवश्य कोई कड़ा कदम उठाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]