पंजाब वित्तीय संकट से जूझ रहा है। इस समय प्रदेश पर लगभग 2.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। समय-समय की सरकारों ने हर चुनाव में पहले तो लोकलुभावन घोषणाएं की, बाद में उनकी पूर्ति पर कई करोड़ रुपये खर्च कर दिए। इससे प्रदेश का विकास तो हुआ नहीं, इसके विपरीत कर्ज का बोझ बढ़ता गया। इसके बाद सरकार ने भी कर्ज को कम करने के लिए कड़े निर्णय लेने की बजाय और कर्ज लेकर प्रबंध चलाने का सुगम रास्ता अपना लिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद कैप्टन अमङ्क्षरदर सिंह ने भी माना था कि पंजाब पर लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। उन्होंने यहां तक कहा था कि चुनाव पूर्व उनका अनुमान 1.5 लाख करोड़ रुपये कर्ज का था, लेकिन यह उससे अधिक निकला। प्रदेश की खराब वित्तीय स्थिति का बड़ा कारण लोगों के लिए मुफ्त में वस्तुएं और सुविधाओं पर अनावश्यक खर्च करना रहा है। पिछली सरकार ने सस्ता आटा-दाल, किसानों को मुफ्त बिजली व पानी और कई तरह की पेंशनों आदि पर खर्च कर दिया तो नई सरकार भी किसानों की कर्ज माफी और सस्ती बिजली देने के वादे कर चुकी है, लेकिन सरकार के समक्ष इन वादों को पूरा करने के लिए धन नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि अब तक की सरकारों ने प्रदेश की खराब वित्तीय स्थिति को सुधारने के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। इसका सीधा असर प्रदेश की व्यवस्था पर पड़ रहा है। गहरे वित्तीय संकट के कारण प्रदेश में विकास तो ठप हो ही गया है, सरकार के पास कर्मचारियों को वेतन तक देने के लिए पैसा नहीं है। लिहाजा गत दिन मुख्यमंत्री ने प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक कर राजस्व में वृद्धि करने का रास्ता तलाशने को कहा है। जाहिर है कि सरकार के पास अभी भी प्रदेश की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। इसलिए यह काम अधिकारियों के कंधे पर डाल दिया गया है। प्रदेश की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए बेहतर वित्तीय प्रबंधन की जरूरत है। सरकार को कर्ज लेकर कर्ज पाटने की बजाय कठोर और ठोस कदम उठाना चाहिए। साथ ही लोगों को मुफ्त वस्तुएं और सुविधाएं देने की जगह वस्तुओं की पर्याप्त उपलब्धता और बेहतर सुविधाएं प्रदान करने पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा सरकार को अपने खर्च में भी कटौती करने चाहिए।
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कर्ज लेकर कर्ज पाटने की बजाय कठोर और ठोस कदम उठाना चाहिए। साथ ही मुफ्त वस्तुएं और सुविधाएं देने की जगह वस्तुओं की पर्याप्त उपलब्धता और बेहतर सुविधाएं प्रदान करने पर ध्यान देना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]