कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जन आक्रोश रैली के जरिये एक प्रकार से मोदी सरकार के खिलाफ अपने गुस्से का ही इजहार किया। भले ही उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की हो कि देश में कहीं कुछ नहीं हो रहा और चारों और निराशा है, लेकिन यह एक विडंबना ही है कि जिस दिन वह यह सब कुछ कह रहे थे उस दिन सरकार की इस उपलब्धि की चर्चा हो रही थी कि उसने देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का काम तय समय से पहले ही पूरा कर दिया। दरअसल जब किसी की आलोचना नीर-क्षीर ढंग से नहीं की जाती तब ऐसा ही होता है। राहुल गांधी को चारों तरफ गड़बड़ी और अव्यवस्था नजर आ रही है तो संभवत: इस कारण कि वह गुस्से से भरे हुए हैं। क्या यह अजीब नहीं कि जो राहुल गांधी कुछ समय पहले तक यह प्रचारित किया करते थे कि मोदी सरकार गुस्से वाली सरकार है वही अब स्वयं गुस्से का प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं? शायद यही कारण है कि वह विदेश नीति पर भी सरकार की निराधार आलोचना करने में संकोच नहीं कर रहे? समझना कठिन है कि नरेंद्र मोदी की हाल की चीन यात्र को निशाना बनाने की क्या जरूरत थी? राहुल गांधी ने सवाल पूछा कि क्या प्रधानमंत्री ने चीनी नेतृत्व से डोकलाम पर चर्चा की? यह सवाल उछालने के पहले अच्छा होता कि वह यह स्पष्ट करते कि जिस समय डोकलाम में तनातनी जारी थी उस समय उन्हें चीनी राजदूत से मुलाकात करने और उसे छुपाने की क्या आवश्यकता थी? और भी अच्छा यह होता कि वह यह स्पष्ट करते कि क्या उस दौरान उन्होंने डोकलाम में चीनी सेना के हस्तक्षेप पर प्रतिवाद किया था?

जन आक्रोश रैली में राहुल गांधी ने जिस तरह यह कहा कि उन्हें देश का कायाकल्प करने के लिए 60 माह चाहिए उससे यह तो साफ हुआ कि वह प्रधानमंत्री बनने के लिए व्यग्र हैं। यह कोई बुरी बात नहीं, लेकिन आखिर उन्होंने एक तरह से नरेंद्र मोदी के शब्दों का ही इस्तेमाल क्यों किया? ध्यान रहे कि 2014 के आम चुनाव के पहले मोदी भी ऐसा ही कहते थे। देश में कांग्रेस के लंबे शासन और मनमोहन सरकार के 10 साल के कार्यकाल को करीब से देखने वाले राहुल गांधी को इतना पता होना चाहिए कि इतने बड़े देश का कायाकल्प महज 60 माह में नहीं हो सकता। अगर ऐसा हो सकता होता तो फिर उन्हें बताना चाहिए कि कांग्रेस के 60 साल के शासन में सभी गांव बिजली से लैस क्यों नहीं हो सके? चूंकि अगले आम चुनाव करीब आ रहे हैं इसलिए यह सहज ही समझा जा सकता है कि राहुल गांधी अभी से चुनावी माहौल बनाने में जुट गए हैं, लेकिन यदि वह वास्तव में मोदी और भाजपा को चुनौती देना चाहते हैं तो फिर उन्हें कुछ तार्किक और तथ्यपरक बातें करनी होंगी। इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि वह वैकल्पिक विचारों और ठोस नीतियों के साथ सामने आएं। यह निराशाजनक है कि वह ऐसी प्रतीति करा रहे हैं कि मोदी सरकार की चौतरफा निंदा करने मात्र से उनका काम आसान हो जाएगा।

[ मुख्य संपादकीय ]