संसद के मानसून सत्र के पहले आयोजित सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री की ओर से विपक्ष से यह जो अपील की गई कि सदन में सार्थक और शांतिपूर्ण ढंग से चर्चा होनी चाहिए, वह कितना असर करती है, इसका पता पहले दिन ही चल जाएगा। आम तौर पर संसद के प्रत्येक सत्र की शुरुआत हंगामे से ही होती है। ऐसा इसके बावजूद होता है कि सरकार सभी मसलों पर सार्थक चर्चा के लिए तैयार होती है। सरकार की तैयारी के बाद भी विपक्ष कई बार अपनी ओर से उठाए गए मुद्दों पर बहस के लिए अड़ जाता है और कभी-कभी तो इस पर तकरार हो जाती है कि बहस किस नियम के तहत हो? ऐसा लोकसभा में भी होता है और राज्यसभा में भी। संसद के ऐसे सत्रों का स्मरण करना कठिन है जब संसदीय कार्यवाही बाधित न हुई हो। वास्तव में अब संसदीय कार्यवाही धीर-गंभीर चर्चा के लिए बहुत कम जानी जाती है। यदि संसद को अपनी उपयोगिता और महत्ता कायम रखनी है तो यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि वहां पर राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर सार्थक चर्चा हो। यह चर्चा ऐसी होनी चाहिए, जिससे देश की जनता को कुछ दिशा मिले। संसद में राष्ट्रीय महत्व के प्रश्नों पर सार्थक चर्चा के लिए दोनों ही पक्षों को योगदान देना होगा। संसद सत्र के पहले सर्वदलीय बैठकों में इसके लिए हामी तो खूब भरी जाती है, लेकिन अक्सर नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही अधिक रहता है।

विपक्ष संसद में किन्ही भी मुद्दों को उठाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन इस बार जिन मसलों पर चर्चा होना आवश्यक दिख रहा है, उनमें कोरोना संक्रमण की मौजूदा स्थिति, कोविड से हुई मौतें, स्वास्थ्य ढांचे की हालत, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम और किसानों की समस्याएं प्रमुख हैं। इसी के साथ देश की आर्थिक स्थिति और अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात पर भी चर्चा आवश्यक जान पड़ रही है। जिस एक और गंभीर मसले पर चर्चा होनी चाहिए, वह है बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा। इस हिंसा ने बंगाल के माथे पर कलंक लगाया है। यदि विपक्ष हंगामा करने को अपना मकसद नहीं बनाता और सत्तापक्ष उसकी ओर से उठाए गए मुद्दों को सुनने के लिए तत्पर रहता है तो संसद का मानसून सत्र एक नजीर बन सकता है। संसद में केवल ज्वलंत मसलों पर उपयोगी चर्चा ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि विधायी कामकाज भी सुचारु रुप से होना चाहिए। विपक्ष अपने मुद्दों को उठाने के लिए सजग रहने के साथ यह भी ध्यान रखे तो बेहतर होगा कि संसद के इस सत्र में करीब 30 विधेयक पेश होने हैं और इनमें से लगभग आधा दर्जन अध्यादेश के रूप में हैं।