विपक्षी राजनीतिक दलों को एकजुट करने के दावेदार जिस तरह बढ़ते चले जा रहे हैं, वह भी विपक्ष की एकजुटता में बाधक बने तो हैरत नहीं। अभी तक बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ही विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाए हुए थे, लेकिन हाल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं। उनकी सक्रियता और दिल्ली आगमन के बीच हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओमप्रकाश चौटाला ने यह घोषणा कर दी कि वह चौधरी देवीलाल की जन्मतिथि के अवसर पर फतेहाबाद में एक सभा का आयोजन करेंगे और उसमें सभी विपक्षी दलों को आमंत्रण भेजेंगे।

उन्होंने आमंत्रण भेजने शुरू भी कर दिए हैं। देखना है कि उनकी सभा में कितने विपक्षी दल शामिल होते हैं और वहां विपक्षी एकता की कोई बुनियाद तैयार हो पाती है या नहीं? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि वह भ्रष्टाचार के एक मामले में सजा काट चुके हैं और दूसरे मामले में उन्हें चार साल की सजा सुनाई जा चुकी है। एक ऐसे समय जब नेताओं का भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि कितने विपक्षी नेता ओमप्रकाश चौटाला का साथ देना पसंद करते हैं?

जो भी हो, वह जिस तरह तीसरे मोर्चे के गठन की बात कर रहे हैं, उससे यह स्पष्ट है कि वह गैर कांग्रेसी दलों को एकजुट करना चाह रहे हैं। आखिर नीतीश कुमार ऐसे किसी मोर्चे का हिस्सा कैसे बन सकते हैं, क्योंकि वह तो उस महागठबंधन का हिस्सा हैं, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है? एक समय विपक्षी एकता की पहल कर चुके राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार भी नए सिरे से विपक्ष को एक मंच पर लाने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

इसके लिए वह अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली में आयोजित करने जा रहे हैं। देश की राजधानी में इस आयोजन का उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा से मुकाबला करने के लिए विपक्षी एकता का संदेश देना बताया जा रहा है। पता नहीं राकांपा यह संदेश देने में सफल होंगी या नहीं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह भी उस महाविकास आघाड़ी का हिस्सा है, जिसमें कांग्रेस शामिल है।

इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान रहे कि कई क्षेत्रीय राजनीतिक दल ऐसे हैं, जिनका मुकाबला कांग्रेस से होता है। स्पष्ट है कि वे विपक्षी एका की ऐसी किसी पहल का हिस्सा नहीं बन सकते, जिसमें कांग्रेस भी शामिल हो। बेहतर हो कि विपक्षी एकता पर जोर देने वाले दल और उनके नेता यह समझें कि केवल मोदी हटाओ का नारा लगाने से बात बनने वाली नहीं है।