हरियाणा भले ही विकास की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ता दिखे पर प्रदेश में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। खास तौर पर सरकारी स्कूलों की स्थिति चिंताजनक है। सवाल तब और ज्यादा उठे थे जब जांच के दौरान साबित हो गया कि अधिकतर बच्चे छोटी कक्षाओं के गणित के प्रश्न भी हल नहीं कर पा रहे। इसकी वजह साफ है कि शिक्षा अभी तक पहली प्राथमिकता नहीं पा सकी है। सरकारी स्कूलों में आधारभूत ढांचे व शिक्षकों की कमी बड़ी परेशानी का कारण बन रहे हैं। अधिकतर स्कूलों में बेंच व अन्य मूलभूत सुविधाएं ही नहीं हैं।

अधिकतर स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं और जहां हैं वहां पहुंच नहीं पा रहे हैं। ऐसे में इन विद्यार्थियों की निजी स्कूलों व बड़े शहरों के बच्चों को चुनौती दे पाने की कल्पना करना भी सहज नहीं है। आवश्यक है कि सरकार की नीतियों व सामाजिक जीवन में भी शिक्षा को पहली वरीयता पर रखा जाए। इस वर्ष भी बच्चों के मानसिक स्तर के मूल्यांकन का कार्य जारी है। प्रदेश में 22 ब्लॉक के करीब 36 हजार बच्चों की परीक्षा ली गई। प्रारंभिक परिणाम साबित करते हैं कि इस वर्ष स्थिति कुछ सुधरी है। करीब एक दर्जन ब्लॉक के बच्चों का मानसिक स्तर 80 फीसद के आसपास दिखा। इसे शुभ संकेत माना जा सकता है। पर इस पर खुश नहीं होकर रहा जा सकता। बोर्ड परिणाम के बाद इन आंकड़ों पर मुहर लग पाएगी। ग्रामीण बच्चों के समक्ष बड़े स्कूलों से मुकाबले की चुनौती है। इसके लिए एक तो सुविधाओं के मोर्चे पर लड़ाई लड़नी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]